डॉक्टरों से ऊंची उम्मीद करना बेमानी नहीं

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कोलकाता के डॉक्टरों ने हड़ताल का जो नारा दिया तो वह सारे देश में फैल गई। छोटी-मोटी हड़तालें तो पहले भी होती रही हैं लेकिन डॉक्टरों की ऐसी देश-व्यापी हड़ताल तो मेरे देखने में पहले बार आई है। पं. बंगाल के सैकड़ों सरकारी डॉक्टरों ने इस्तीफे तक दे दिए हैं। देश के लगभग सभी प्रांतों के डॉक्टरों ने अपने बंगाली डाक्टरों का साथ देकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की फजीहत कर दी है।

यह सब क्यों हो रहा ह ? क्योंकि 10 जून को एक कनिष्ट डॉक्टर की कोलकाता में कुछ लोगों ने इसलिए पिटाई कर दी कि एक 75 साल के व्यक्ति की हृदयाघात से मौत हो गई थी। मृत व्यक्ति मुसलमान था। उसके रिश्तेदारों ने डॉक्टर परिभा मुखर्जी पर लापरवाही और गलत इलाज का आरोप लगाया और उस पर जानलेवा हमला कर दिया।

इस सारे मामले ने इतना तूल क्यों पकड़ा ? क्योंकि उसे सांप्रदायिक रंग दे दिया गया। मरीज मुसलमान और डॉक्टर हिंदू ! डॉक्टरी के धंधे में यह भेदभाव तो कभी नहीं होता है लेकिन बंगाल में ममता की तृणमूल कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इतनी जोर का धक्का लगाया है कि इस मामले को सांप्रदायिक चश्मे से देखा जाने लगा है। इसका नतीजा क्या हुआ है? दर्जनों मरीज मौत के मुंह में चले गए हैं और हजारों अस्पतालों के बाहर दम तोड़ रहे हैं। डॉक्टरों और मुख्यमंत्री के बीच युद्ध ठन गया है। ममता को अपनी अकड़ छोड़कर डॉक्टरों की सुरक्षा का इंतजाम करना चाहिए। खासतौर से सरकारी डॉक्टरों का त्याग और परिश्रम बहुत ही सम्मान के योग्य है।

हो सकता है कि आज यह मामला सुलझ जाए, क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने दोनों पक्षों के नाम संयम की अपील जारी की है और राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी भी संतोषजनक समाधान की कोशिश कर रहे हैं। उच्च न्यायालय ने भी सरकार से कहा है कि वह डॉक्टरों को मनाने की कोशिश करे। यह मामला तो जल्दी सुलझेगा ही लेकिन मूल प्रश्न यह है कि क्या डॉक्टरों को इतना सख्त कदम उठाना चाहिए ? मेरी राय है कि ऐसा करना उचित नहीं है। आम तौर से डॉक्टरों को भगवान का दूसरा रुप ही समझा जाता है। उनकी भयंकर भूल और लापरवाही को भी लोग अनदेखा कर देते हैं और आजकल इस धंधे में जितनी लूट-पाट मचती है, किसी अन्य धंधे में नहीं मचती।

इसका अर्थ यह नहीं कि डॉक्टरों को पूर्ण सुरक्षा न मिले। उन पर आक्रमण तो घोर निंदनीय है ही लेकिन ऐसी किसी एकाध घटना के बहाने हजारों-लाखों डॉक्टर हड़ताल कर दें, यह तो अकल्पनीय है। ऐसा करके वे अपना अपमान खुद कर रहे हैं। वे डॉक्टर बनते समय जो सेवा की प्रतिज्ञा करते हैं, उसका वे उल्लंघन कर रहे हैं। समाज में उनका पद और उत्तरदायित्व बहुत ऊंचा है। उसकी वे रक्षा अवश्य करें। डॉक्टरों से समाज ऊंची अपेक्षा रखता है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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