अहंकार का इलाज तो ऐसे ही किया जाता है

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दो विश्व-विख्यात अमीरों ने गजब की मिसाल कायम की है। बिल गेट्स और वारेन बफेट का नाम किसने नहीं सुना है ? गेट्स माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक हैं और उनकी संपदा 7.14 लाख करोड़ है। वारेन बफेट डेरी क्वीन रेस्टारेंट की चैन के मालिक हैं। इनकी संपदा 5.84 लाख करोड़ मानी जाती है। गेटस 63 साल के हैं अैर बफेट 88 के ! अब सुनिए, दोनों ने क्या किया ?

दोनों डेरी क्वीन रेस्टोरेंट में गए। पहले उन्होंने वहां लंच किया और फिर वेटरों का चोंगा पहनकर ग्राहकों की सेवा में लग गए। उन्होंने मिल्क शेक और काफी खुद बनाई और साधारण बैरों के तरह वे ग्राहकों को परोसने लगे। बाद में मुनीम बनकर उन्होंने केश काउंटर भी सम्हाला। यह सब किया

उन्होंने खुशी-खुशी और ग्राहकों के साथ वे ठहाके भी लगाते रहे। क्या हम सोच सकते हैं कि उन्होंने यह सब क्यों किया? क्या छपास और दिखास के लिए ? क्या अखबारों में नाम छपवाने और टीवी चैनलों पर खुद को दिखवाने के लिए ? नहीं। यह उन्होंने किया, अपने आप को निर्भर करने के लिए!

अरबपति होने का जो भार दिमाग पर भारी पड़ता जा रहा था, उसे हटाने के लिए ! दूसरे शब्दों में यह अहंकार-मुक्ति का सबसे सरल उपाय है। हमारे भारतीय सिख गुरुद्वारों में बड़े-बड़े सेठों, नेताओं, विद्वानों और शक्तिशाली लोगों को आम आदमियों के जूते साफ करते देखकर मैं बचपन में चकित हो जाता था लेकिन बड़े होने पर मुझे समझ में आया कि मनुष्य के सबसे सूक्ष्म लेकिन भयंकर रोग का यह सबसे बढ़िया और सस्ता इलाज है। वह रोग क्या है ?

वह है अहंकार ! लोगों को इसी बात का अहंकार हो जाता है कि उन्हें अहंकार नहीं है। इतना सूक्ष्म है, यह रोग ! अहंकार के चलते ऊंच-नीच, गरीब-अमीर, छोटे-बड़े की खाई खिंचती चली जाती है। ऐसा नहीं है कि अहंकार सिर्फ व्यक्तियों को ही होता है। इसके शिकार राष्ट्र, वर्ग, जातियां और कई संगठन भी हो जाते हैं। यह भयंकर हिंसा और युद्ध का कारण भी बन जाता है।

गेटस और बफेट ने रेस्टोरेंट में परोसगारी करके दुनिया को यह बताया है कि कोई काम छोटा नहीं होता। जिस काम को आप छोटा समझते हैं, उसे भी यदि ढंग से किया जाए तो वह भी बड़े से बड़ा हो सकता है। ईसा मसीह कोढ़ियों के घाव साफ करते थे और गांधीजी मजदूरो के पाखाने साफ करते थे।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , ये उनके निजी विचार हैं )

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