शनि जयन्ती

0
539

शनिदेव की आराधना से खुलेंगे किस्मत के दरवाजे
शनिदेव की पूजा से मिलेगा सुख-सौभाग्य

सृष्टि के संचालक प्रत्यक्षदेव भगवान सूर्यदेव के सुपुत्र श्रीशनिदेव जी की आराधना की विशेष महिमा है। वैसे तो शनिदेव जी की पूजा प्रत्येक शनिवार को विधि-विधानपूर्वक की जाती है। परन्तु शनि जयन्ती पर की गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है। शनि जयन्ती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि के दिन धूमधाम से मनाई जाती है। इस बार शनि जयन्ति 3 जून, सोमवार को मनाई जाएगी। प्रख्यात ज्योतिर्विद श्री विमलजैन ने बताया कि अमावस्या तिथि 2 जून, रविवार की सायं 4 बजकर 40 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 3 जून, सोमवार को दिन में 3 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के मुताबिक 3 जून, सोमवार को अमावस्या तिथि का मान रहेगा, फलस्वरूप इसी दिन शनि जयन्ति का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।

ऐसे करें पूजा – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि शनि जयन्ती के पावन पर्व पर व्रत उपवास रखकर शनिदेव की पूजा अर्चना करने से कठिनाइयों का निवारण होता है। साथ ही सुख समृद्धि खुशहाली मिलती है। श्रद्धालु व्रतकर्ता को प्रातःकाल स्नान ध्यान व अपने आराघ्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात शनिवार का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत रखना चाहिए।

शनिवेद को क्या-क्या करें अर्पित – सायंकाल पुनः स्नान करके शनिदेव का श्रृंगार कर उनकी विधि-विधान से पूजा करने के प्रश्चात काले रंग की वस्तुएं जैसे- काला वस्त्र, काला साबूत उड़द, काला तिल, सरसों का तेल या तिल का तेल, काला छाता, लोहे का बर्तन एवं अन्य काले रंग की वस्तुएं अर्पित करना लाभकारी रहता है। इस दिन शनिदेव के मंदिर में सरसों के तेल से शनिदेव का अभिषेक करना रथा तेल की अखण्ड ज्योति जलाना उत्तम फलदायी माना गया है। सायंकाल शनिदेव के मन्दिर में पूजा करके दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। सायंकाल में शनिग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करने का विधान है। शनि जयन्ती होने के फलस्वरूप पूजा-अर्चना दान सम्पूर्ण दिन भी किया जा सकता है। दान करने से शनिजनित कष्टों का निवारण होता है। तथा शनि भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर व्रत की मनोकामना को पूर्ण कर सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि करते हैं।
जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार शनिग्रह प्रतिकूल हों या शनिग्रह की महादशा, अन्तर्दशा, प्रयन्तरदशा या शनिग्रह की अढ़ैया अथवा साढ़ेसाती हो, उन्हें आज के दिन व्रत रखकर शनिदेव की पूजा का संकल्प लेकर अपनी दिनचर्या व्यवस्थित रखते हुए शनिदेव की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करके लाभान्वित होना चाहिए।

किस पाठ, मंत्र से होंगे शनिदेव प्रसन्न- शनिग्रह से सम्बन्धित मन्त्रों का जप विशेष लाभकारी रहता है। शनिदेव के मन्त्र –
1. ऊँ शं शनैश्चराय नम:
2. ऊँ प्रां प्री, प्रौं सः शनये नमः
3. ऊँ प्रां प्री, प्रौं सं शनैश्चराय नम:
4. ऊण भगवते शनैश्चराय सूर्यपुत्राय नमः
5. ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः

शनि भगवान से सम्बन्धित राजा दशरथ कृत शनिस्तोत्र, शनि चालीसा का पाठ व शनिदेव की आरती करनी चाहिए। इस दिन काले उड़द के दाल की खिचड़ी गरीबों में अवश्य वितरित करनी चाहिए। साथ ही काले रंग की वस्तुओं का दान भी करना चाहिए।

किन-किन राशि को शनिग्रह की अढ़ैया व साढ़ेसाती ? – श्री विमल जैन जी ने बतया कि वर्तमान समय में शनिग्रह धनु राशि में विराजमान हैं। जिसके फलस्वरूप वृश्चिक, धनु एवं मकर राशि वालों को शनि की शनिग्रह की साढ़ेसाती तथा वृष एवं कन्या वालों को गनिग्रह की अढ़ैया चल रही है। जिनको शनिग्रह की साढ़ेसाती या अढ़ैया का प्रभाव हो, या शनिग्रह का उत्तम फल प्राप्त न हो रहा हो, उन्हें शनि जयन्ती के दिन शनिवेद की प्रसन्नता के लिए व्रत उपवास रखकर शनिदेव की विशेष पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए।

जन्मकुण्डली के बाहर भावों की परिक्रमा करते हुए तीस वर्ष लग जाते हैं। वक्री व मार्गी गति के अनुसार यह अवधि कम अधिक भी हो जाती है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के मुताबिक जन्मकुण्डली में शनि की उत्तम स्थिति राजयोग कारक होती है। व्यक्ति की निजी चाहत भाग्य व समयानुसार पूर्ण होती रहती है। उसका जीवन सुख-समृद्धि सफलता से युक्त होता है। विश्व में उसका नाम भी रोशन होता है। शनि की प्रतिकूल स्थिति व्यक्ति को अस्त-व्यस्त कर देती है। व्यक्ति भयंकर मुसीबतों में फंसकर कष्टदायक जीवन बिताने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए व्यक्ति को अस्त-व्यस्त कर देती है। व्यक्ति भयंकर मुसीबतों में फंसकर कष्टदायक जीवन बिताने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए व्यक्ति को सात्विक वृत्ति के साथ परोपकार के कृत्य करते हुए अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखना चाहिए। शनिदेव की पूजा-अर्चना शनिदेव के मंदिर में ही करनी चाहिए। शनिग्रह के निमित्त जरूरी उपाय समय-समय पर अवश्य करनी चाहिए, जिससे जीवन में चल रही बाधा का शमन हो सके।

विशेष – श्री जैन जी ने बताया कि धार्मिक पौराणिक मान्यता के अनुसार शनि भाग्यविधाता हैं। शनि से मनुष्य को डरना नहीं चाहिए, डरना तो मात्र अपने कर्मों से है। जब कर्म न्याय व नीति के विरुद्ध होते हैं तो जीवन में मुश्किलों का दौर शुरु हो जाता है। मुश्किलें आते ही शनिग्रह याद आ जाते हैं। शनि न्यायप्रिय ग्रह हैं, शनि को अन्याय बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। सभी ग्रहों में शनि महान ग्रह है। शनिग्रह ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति के हर कर्मों की हर पल खबर रखता है। शनिग्रह के बुध व शुक्र मित्रग्रह हैं। सूर्य, चन्द्रमा व मंगल को शत्रुग्रह माना गया है। राहु व केतु ग्रह को सम की संज्ञा दी गई है। कहीं-कहीं पर राहु व केतु ग्रह को इनका रक्षक बताया जाता है। शनि की मकर व कुम्भ स्वराशि है। कुम्भ राशि इनकी मूल त्रिकोण राशि मानी गई है। शनिग्रह तुला राशि में उच्च के माने जाते हैं, जबकि मेष राशि में नीचे के माने गए हैं। शनिग्रह नवग्रहों में सबसे मन्दगति वाला ग्रह माना गया है। नवग्रहों में सबसे मन्दगति वाला शनि एक राशि पर लगभग 30 महीने तक रहता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here