माचिस में, लाइटर में दावानल समेटे इंसा, अपने नौनिहालों को तंदूर में सेंकते बेरहम बेगैरत इंसा! आग पानी तूफान आतंक … सब पर विकसित देशों में आम नागरिकों को सुरक्षा के प्रति जानकारी दी जाती है, उन्हें लगातार खतरों से आगाह किया जाता है और उन खतरों से बचने की प्रैक्टिस करवाई जाती है, मॉक ड्रिल्स होती हैं, अधिकारी अथॉरिटीज सब सतत जागरूक और अपनी जिम्मेदारियां निबाहते हैं लेकिन ? कितनी बार आपके बच्चों के स्कूल में फायर ड्रिल होती है? आप अपने नौनिहालों को जिन गैस ओवन्स में अर्थात मिनी बसों, कारों में स्कुल ठूंस ठूंस कर भेजते हैं, कभी सोचा उसके बारे में ? अगर स्कूल में आग लग जाए तो क्या करना चाहिए? कहां से बचकर निकलने के रास्ते हैं? और अगर बचने की रास्तों में भी आग लगी हो तो उस समय क्या करें जिससे सहायता आने तक जिंदगी को मदद मिलती रहे ?
उदाहरण के लिए, आग लगने पर ऊपर की तरफ भागने की बजाय निकटतम द्वार खिडक़ी या खुली जगह की तरफ सर नीचे करते हुए जाना चाहिए, अगर पानी उपलब्ध हो तो खुद को पानी से भिगो लेना चाहिए, गीले टॉवल चद्दर शरीर पर डाल लेना चाहिए और रुमाल या कपडे गीले कर अपने मुंह पर रखना चाहिए ! बिजली के सभी स्विच बंद किये जाएँ और लिफ्ट में हरगिज ना घुसने की कोशिश करें… इसी प्रकार की फायर ड्रिल संयुक्त राष्ट्र मुगयालय में हर 3 महीने में एक बार होती है। हर मंजिल पर आग्निशमन विभाग के अधिकारी आते हैं सारे स्टाफ को लाउडस्पीकर से एक जगह इकट्ठे होने को बोला जाता है और फायर ड्रिल के बारे में बतलाया जाता है। इसी प्रकार की सावधानी कार या स्कूटर चलाने में करनी चाहिए। सीट बेल्ट, लेन में ड्राइव करना, स्टॉप साइन पर क जाना, लाल बत्ती को जंप न करना, कुछ सौ मीटर बचाने के लिए गलत दिशा में गाड़ी न चलाना, यह उसी सुरक्षा के आवश्यक नियम है।
भारत में किसी भी रिहायशी या व्यावसायिक बिल्डिंग में सुरक्षा के नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा कर अतिरिक्त कमरे बनवा लिया जाते हैं। सीडिया और वैकल्पिक निकास तो मानो इनके लिए सामान रखने और कचराघर बनाने की जगहें हैं, या फिर उनमे ताले लगा कर रख दिए जाएंगे ! जो जगह खुली होनी चाहिए थी उसे कवर कर दिया जाता है तथा दुकान के आगे सार्वजानिक स्थल पे सामान लगा कर, गलत पार्किंग कर मुख्य मार्ग पर भी बांधा डाल दी जाती है। अगर कभी आग लग जाए तो, मार्ग पर अतिक्र मण होने के कारण फायर ब्रिगेड की गाडिय़ों को वहां तक आने काफी दिक्कत आती है और जान बचाने का कुछ मिनट मूल्यवान समय बर्बाद हो जाता है। जब नियमानुसार बेसमेंट नहीं बनवाया जा सकता तब भी दुकानदार गैरकानूनी तरीके से बेसमेंट बनवा देते हैं। उन्हें यह समझ में नहीं आता कि बेसमेंट पर प्रतिबंध किन्ही कारणों से लगाया गया है।
अगर बरसात से पानी भर गया तो बेसमेंट में रखे सामान को नु सान होगा ही तथा वहां पर लगे हुए बिजली के उपकरणों से करंट फैलने और आग लगने का भी खतरा है। लेकिन हर शहर में लालची उज्जड मुर्ख दुकानदारों ने गैरकानूनी तरीके से ना सिर्फ बेसमेंट बनवा रखे हैं बल्कि हर बरामदा, कौन यहाँ तक की छज्जे तक हथिया रखे हैं ! अमेरिका में हर 50 से 100 मीटर की दूरी पर फायर हाइड्रेंट लगे हुए हैं जहां से आग लगने की स्थिति में फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां पानी खींच सकती है। भारत देश के कितने घरों में फायर हाइड्रेंट लगे मिलेंगे फायर अलार्म तथा कार्बन मोनोऑक्साइड का अलार्म तो बहुत दूर की बात है . … कई इमारतों में शोपीस बने ये यंत्र आपको मुसीबत में मुंह चिढ़ाते नजर आते होंगे ! तीन चार मंजिला बिल्डिंगों से मानव चेन बना कर, रस्सियों के सहारे, स्लिपिंग डक्ट्स के सहारे, गद्दे चादरों के सहारे निकला और निकाला जा सकता है, और ये बहुत छोटे छोटे उपाय हैं ! फायर फाइटर उपकरणों को नुमाइश के तौर पर सजा कर रखने वाले अपनी ही नहीं, सबकी जिंदगियां नीगल जाते हैं।
डॉ. भुवनेश्वर गर्ग
(लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)