ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस मसूद अजहर के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आए थे। ऐसे में चीन इसका विरोध करता तो ऐसा संदेश जाता कि वह आतंकवाद का समर्थन कर रहा है। चीन के लिए अंतरराष्ट्रीय छवि का मसला था पाकिस्तान में चीन की कई परियोजनाएं चल रही हैं कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान चीन के दौरे पर आए तो वहां दोनों देशों के नेताओं के बीच मसूद-अजहर पर बातचीत हुई होगी।
पुलवामा हमले की घटना के बाद मसूद अजहर ने दावा किया था कि उनके संगठन ने इस घटना को अंजाम दिया है। इसके बाद ब्रिटेन, अमरीका और फ्रांस मसूद अज़हर के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आए थे। ऐसे में चीन इसका विरोध करता तो ऐसा संदेश जाता कि वह आतंक वाद का समर्थन कर रहा है। चीन के लिए यह अंतरराष्ट्रीय छवि का मसला था। पाकिस्तान में चीन की कई परियोजनाएं चल रही हैं कुछ दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान चीन के दौरे पर आए तो वहां दोनों देशों के नेताओं के बीच मसूद अज़हर पर बातचीत हुई होगी। चीन इस नतीजे पर पहुंचा कि मसूद अज़हर अब पाकिस्तान में बहुत अधिक प्रभाव नहीं रखता उसके विरुद्ध कुछ होने पर बहुत ज़्यादा विरोध का सामना करना पड़ेगा। यह भी माना जा सकता है कि पाकिस्तान और चीन की सेना के बीच भी इस मसले पर बातचीत हुई होगी।
वैसे भी साल 2011 में ही जैश-ए-मोहम्मद को एक आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है सिर्फ, इस संगठन के नेता की आतंकी घोषित किया जाना था। दुनिया में कोई आपको कुछ दे और बदले में कुछ ना मांगे ऐसा संभव नहीं होता। अमरीका ने भारत और चीन दोनों से कहा कि ईरान से तेल ना खरीदें। चीन ने अमेरिका की बात नहीं सुनी जबकि भारत ने नुकसान उठाने के बावजूद ईरान से तेल लेना बंद कर दिया। तो भारत ने इतना बड़ा बलिदान इसी वजह से दिया था ताकि अमरीका मसूद अजहर वाले मामले में भारत का समर्थन करेगा। मीडिया भले यह बताती रहे कि भारत ने अपनी सच्चाई के दम पर मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी साबित करना दिया जबकि हकीकत में कूटनीति सच्चाई से बढ़कर लेन-देन का विषय होता है। यहां हर देश को दूसरे देश से कुछ लेने के लिए कुछ न कुछ देना ही पड़ता है।
इसिलिए अगर हम यह सेच ले कि आज चीन ने मसूद अजहर पर अपना वीटो ताकत का इस्तेमाल नहीं किया, इसके बदले में भारत के चीन के लिए कुछ नहीं करना पड़ेगा। यह तो कुचनीति की मासूमियत समझी जाएगी। दूसरी तरफ पाकिस्तान पर दबाव पड़ेगा कि वो मसूद अजहर के खिलाफ कदम उठाए। पाकिस्तान ऐसा नहीं करेगा तो सीधा संदेश जाएका कि वह संयुक्त राष्ट्र के खिलाफ जा रहा है। साथ ही साथ चीन पर भी दबाब पड़ेगा कि वह पाकिस्तान जैसे देश की मदद क्यों कर रहा है? है? यह बात तो सर्वज्ञात है कि अगर चीन हमेशा भारत का बाज़ार चाहता रहा है, लेकिन दूसरी तरफ भारत में राजनीतिक तौर पर हमेशा चीन का विरोध दिखाया जाता है। कोई भी सरकार नहीं चाहेगी कि उसके कार्यकाल के दौरान चीन वन रोड वन बेल्ट में कामयाब हो सके।
खुद विपक्ष के नेता राहुल गांधी कई बार बोल चुके हैं कि मोदी जी चीन से डरते हैं। आज भले ही भारत में इस बात का शोर मचाया जा रहा है कि मसूद अज़हर पर बड़ी कामयाबी प्राप्त कर ली है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि साल 2009 से भारत इसकी मांग कर रहा था। भारत को अपनी यह मांग मनवाने में पूरे 10 साल लग गए। इसलिए यह भारत के लिए खुश होने का विषय जरूर हो सकता है, लेकिन यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि भी नहीं है। हम सभी जानते है कि नरेन्द्र मोदी बहुत ही कुशल वक्ता हैं, वो किसी भी बात को अपने भाषण में शामिल करने की कला जानते हैं। अपने चुनावी भाषणों में कह चुके हैं कि उनकी सरकार घर में घुसकर मारती है इसलिए मोदी इस पूरे मामले का फायदा उठाने से बिलकुल भी नहीं चूकेंगे। मसूद अज़हर के मामले में चीन के इस कदम का विरोध पाकि स्तान नहीं कर पाएगा क्योंकि वह कभी यह नहीं दर्शाना चाहेगा कि चीन के साथ पाकिस्तान के रिश्तों में कि सी भी तरह की खटास आई है। चीन और पाकि स्तान एक दूसरे को लोहे के भाई बोलते हैं, उनका मानना है कि उनके रिश्ते समुंदर से भी गहरे हैं। इस तरह दो प्रेमी भी एक दूसरे को नहीं बोलते। इसलिए पाकि स्तान कभी भी चीन के इस क दम का विरोध नहीं क रेगा। हालांकि पाकि स्तान की सरकार से ज़्यादा यह मामला आईएसआई के लिए चिंता का विषय बनेगा।
एसडी गुप्ता
लेखक पत्रकार हैं और फिलहाल बीजिंग में हैं…