अमेरिक कंपनी पेप्सिको ने गुजरात किसानों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। अब उसने समझौते का प्रस्ताव रखा है। गौरतलब है कि कंपनी ने गुजरात के चार किसानों 1.05 करोड़ का मुकदमा ठोका। कंपनी का कहना है कि इन किसानों ने उनके नाम पर पंजीकृत आलू की एक किस्म को व्यापारिक इस्तेमाल लिए उगाया।
कड़ी आलोचना के बाद पेप्सीकों कंपनी का रुख नरम हुआ है। लेकिन उसने जो कदम उठाया, उससे देश के कृषि जगत में गहरी चिंता पैदा हुई है। इससे वो आशंकाएं सच होती लग रही है, जो 1990 के दशक में मोनसैटो कंपनी के भारत आने पर जताई गई थी। अमेरिक कंपनी पेप्सिको ने गुजरात किसानों के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। अब उसने समझौते का प्रस्ताव रखा है। गौरतलब है कि कंपनी ने गुजरात के चार किसानों 1.05 करोड़ का मुकदमा ठोका। कंपनी का कहना है कि इन किसानों ने उनके नाम पर पंजीकृत आलू की एक किस्म को व्यापारिक इस्तेमाल लिए उगाया। पेप्सिको ने इस मामले में विपिन पटेल, विनोद पटेल, छबिल पटेल और हरि पटेल पर पांच अप्रैल को मुकदमा दायर कराया था।
ये चारों छोटे किसान गुजरा के साबरकांठा जिले के है। सुनवाई के दौरान पेप्सको ने सलाह दी कि किसान ये लिखित रूप से कहें कि ये कंपनी की इजाजत के बिना इस फसल को नहीं उगाएंगे। या तो वे बाय बैक सिस्टम पर हस्ताक्षर करें। इसके तहत उन्हें फसल की उपज सिर्फ कंपनी को बेचनी होगी। पेप्सी की तरफ से कहा गया है कि इस प्रस्ताव पर किसानों के साथ चर्चा करेंगे। कंपनी ने इन किसानों पर आरोप लगया था कि उन्होंने एफसी-5 के नाम से जाने वाली आलू की एक किस्म को अवैध तरीके से बिना कंपनी की इजाजत के उगाया है। इस बारे में कंपनी का दावा था कि ये किस्म प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेरायटीज और फारमर्स राइट एक्ट 2001 के तरह उसके नाम पर पंजीकृत है। कोर्ट ने 12 जून तक इस फसल को उगाने और बाजार में बेचने पर रोक लगा दी थी।
जज ने मामले में कमिश्नर की नियुक्ति करते हुए, पूरी सूची के साथ फसल के सैंपल केन्द्रीय लैब में भेजने का आदेश दिया। पेप्सिको ने प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेरायटीड एंड फारमर्स राइट एक्ट 2001 के सेक्शन 64 के तहत अधिकारों के उल्लंघन का मामला दर्ज किया है। वहीं मामले में सामने आए किसान संगठनों ने इसी अधिकार के सेक्शन 39 के तहत अपना बचाव किया है। एक्ट के सेक्शन 39 में कहा गया है कि ब्रांडेड बीजों को छोड़कर एक्ट किसानों को पंजीकृत बीजों और फसलों को बचाने, दोबारा बुवाई, बांटने और बेचने की छूट देता है। पिलहाल पेप्सीको बचाव की मुद्रा में आ गया है, लेकिन जरूरत इस बात की है इन मामले में कानूनी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट की जाए।
अरुण सिंह
लेखक पत्रकार हैं, ये निजी विचार हैं