मधेपुरा के कुरुक्षेत्र में तीन यादव

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पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से राजद के टिकट पर निर्वाचित सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार हैं। उन्हें उस समय जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के शरद यादव को पराजित किया था लेकिन अब जेडीयू छोड़ चुके शरद यादव आरजेडी के प्रत्याशी हैं।

बिहार के यादव बाहुल मधेपुरा संसदीय क्षेत्र में उभरे सियासी अवसरवाद ने इस बार जातीय गणित के कुछ आजमाए हुए सूत्र भी उलट-पलट दिए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से राजद के टिकट पर निर्वाचित सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार हैं। उन्हें उस समय जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के शरद यादव को पराजित किया था लेकिन अब जेडीयू छोड़ चुके शरद यादव आरजेडी के प्रत्याशी हैं। उसूलों को मारो गोगी वाले सियासी दौर में नेताओं के लिए स्वार्थ तो सर्वोपरि होता ही है। सियासत की इस उलटचाल से जहां पप्पू यादव के चेहरे का चुनावी रंग उड़ा हुआ है, वहीं शरद यादव के ही शिष्य दिनेश चंद्र यादव को जेडीयू प्रत्याशी बन जाने का अच्छा मौका हाथ लगा है।

दरअगसल हुआ ये कि आरजेडी कांग्रेस और कुछ अन्य दलों के महागठबंधन से जुड़ कर चुनाव लड़ने की चाहत पाल रहे पप्पू यादव को तेजस्वी यादव ने अतंत झटका दे दिया। इसके पीछे की कहानी ये है कि मधेपुरा से सांसद चुने जाने के कुछ ही समय बाद पप्पू यादव को तेजस्वी यादव ने अतंत झटका दे दिया। इसके पीछे की कहानी ये है कि मधेपुरा से सांसद चुने जाने के कुछ ही समय बाद पप्पू यादव द्वारा अपनी अगल पार्टी बना लेने को आरजेडी ने विश्वासघात माना है। उधर, नीतीश कुमार से रिश्ता तोड़ने के बाद लालू यादव की तरफ रुख कर चूके शरद यादव आरजेडी के ज्यादा अनुकूल हो गए हैं। ऐसे में कांग्रेस से बेहतर रिश्ते के बावजूद पप्पू यादव अपने जन अधिका पार्टी को महागठबंधन के साथ नहीं जोड़ पाए। इसलिए उन्हें निर्दलीय हो कर चुनाव मैदान में उतरना पड़ा है।

बगल के सुपौल लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस की निवर्तमान सांसद और पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन को पार्टी ने फिर से उम्मीदवार बनाया है। लेकिन सूपौल की अंदरूनी राजनीति समझने वाले यही मानते है कि इसबार रंजीत रंजन अपनी सीट शायद ही निकाल पाएंगी। मधेपुरा में फंसा विवाद इसका मुख्य कारण बना है। यानी पति पत्नी दोनों को जिन चुनौतियों से सामना करना पड़ रहा है, उनके सूत्र मुख्यतः यादव मतदाताओं से ही जुड़े हुए हैं। आरजेडी समर्थक यादव मतदाताओं के स्थानीय प्रवक्ता खुल कर बयान दे रहे हैं कि आरजेडी प्रत्याशी शरद यादव को नुकसान पहुंचाना पप्पू यादव और रंजीत रंजन दोनों को महंगा पडे़गा। दूसरी तरफ पप्पू यादव के विरोधी भी ये कबूल करते हैं कि इस इलाके का ये अकेला नेता है, जो अपने क्षेत्र में ही नहीं, क्षेत्र से बाहर भी लोगों को रोग-शोक या संकट के समय हर तरह से मदद करने को तत्पर रहता है।

उनके एक पुराने राजनीतिक सहकर्मी ने मुझसे कहा कि पप्पू यादव ज्यादा बोलने के क्रम में अक्सर कुछ उटपटांग बोल कर बहुतों को अपने विरुद्ध कर लेते हैं। बावजूद कुछ खूबियों के, पप्पू यादव की बाहुबली वाली पुरानी आपराधिक छवि उनका पीछा नहीं छोड़ रही है। आज भी कई लोग उन्हें लंपट-छाप युवाओं का झुंड लेकर चलने वाला गरम मिजाज नेता करार देते है। इस बीच मामला कुछ और बिगड़ा है। लालू यादव से मुस्लिम मतदाताओं का भी समर्थन मिलना मुश्किल है। जाहिर है कि अब लालू-खेमा ज्वॉइन कर लेने वाले शरद यादव का पलड़ा भारी करने में यादव और मुस्लिम के अलावा कोइरी-कुशवाहा और मल्लाह वाला जातीय पर महागठबंधन पूरा जोर लगाएगा। जेडीयू के उम्मीदवार दिनेश यादव नीतीश सरकार में मंत्री है और कोशी क्षेत्र के ही निवासी होने के नाते यहां कई तबकों में इनकी इच्छी पैठ है। लेकिन इनके पक्ष में जो सबसे अनुकूल चुनावी समीकरण उभरने लगे हैं, उनकी जातिगत और भावनात्मक एकजुटता वाली ताकत महागठबंधन के मुकाबले काफी बढ़ी हुई दिखती है।

मणिकांत ठाकुर
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके निजी विचार हैं

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