प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 28 और 29 मार्च को रैलियां संबोधित करेंगे। उनकी ये रैलियां उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, ओडिसा और तेलंगाना जैसे राज्यों में हो रही है। 28 मार्च को प्रधानमंत्री की रैली यूपी के मेरठ से हो रही है। इसे पश्चिमी यूपी का ह्रदय क्षेत्र कहा जा सकता है। पूरी सियासत पश्चिमी खित्ते की इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। 11 अप्रैल को हो रहे प्रथम चरण के मतदान में पश्चिमी यूपी के आठ जिले शामिल है। यहां 2014 में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। तब यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और तत्कालीन अखिलेश सरकार में मुजफ्फरनगर दंगे की अनुगूंज ने भाजपा के लिए जमीन तैयार कर दी थी। इसी के साथ मोदी के गुजरात मॉडल जैसी उम्मीद भी लोगों को अपनी तरफखीच रही थी और फिर वादों का ऐसा खूबसूरत संजाल भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा था कि लोगों में यह यकीन घर करने लगा था कि जो अब तक ना हो पाया, वो शायद मोदी के जरिये संभव हो सकता है।
लिहाजा ऐसे कारकों ने मिल-जुलकर भाजपा के लिए लाल कालीन बिछा दी। पर अब 2019 में स्थितियां बदली हुई हैं। मोदी के कार्यकाल के पांच साल पूरे हो रहे हैं। अब उन्हें जनता के सामने अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड रखना है। कितने वादे पूरे हुए और कितने रह गये इसका जवाब देना है। इसलिए यह चुनावी दौर 2019 के चुनावी दौरे से जुड़ा है। तब यूपीए पर सवाल था और अब खुद जवाब दे रही है। मोदी जानते हैं कि पश्चिमी यूपी में सियासी हालात बदले हुए हैं। सपा-बसपा और रालोद मिलकर चुनौती पेश कर रहे हैं। पिछले वर्षों में उप चुनाव में जीत के जरिये इसे गठबंधन ने अपनी ताकत का पहले ही एहसास करा दिया है। अब जाट भी पहले की तरह भाजपा के साथ नहीं रहे। जाटव, मुस्लिम और यादव के एक साथ होने से भाजपा के लिए चुनौती बड़ी हो गई है।
जमीनी हकीकत को समझाते हुए मोदी मेरठ के जरिये गुरुवार को पश्चिमी यूपी की सभी सीटों को साधने की शुरुआत कर रहे हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या गन्ना बकाये के भुगतान से जुड़ी है। भले ही मोदी सरकार यह दावा करें कि गन्ना किसानों अधिकतम बकाया दिया जा चुका है और इसी के साथ यह भी बताते चले कि पूर्ववर्ती सरकारों के दौर के बकाये को भी मौजूदा सरकार निपटा रही है। तब भी यह तो वास्तविकता है कि गन्ना किसानों का अब भी हजारों करोड़ रुपया बाकाया है, जिसका भुगतान सरकारी मिलो की तरह से नहीं हो पा रहा है जबकि निजी क्षेत्र की चीनी मिलें समय से भुगतान कर रही हैं। इसे लेकर लोगों में बड़ा आक्रोश है। इसके अलावा रोजगार बड़ी समस्या के रुप में पहले से है। मोदी सरकार ने प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, उसका क्या हुआ।
यह सवाल युवाओं की जुबान पर है। लखनऊ में इन्वेस्टर्स समिट के बाद भी मोदी सरकार रोजगार को अपेक्षित रफ्तार नहीं दे पायी है। इससे पश्चिमी यूपी में भी निराशा दोहरी हुई है। खाली हाथ युवा और बदहाल किसान इन दिनों बड़े नाराज चल रहे समुदायों को मोदी अपनी शैली में किस स्तर तक समझा पाते है, इस पर नजर रहेगी। विपक्ष तो पहले चरण में ही भाजपा के लिए उल्टी गिनती शुरू कर चुका है, पर मोदी की भाजपा के बारे में पूर्वानुमान लगा पाना आसान नहीं है। गरीबों को 72 हजार वार्षिक आय का ऐलान करके राहुल गांधी ने एक नई बहस छेड़ दी है। सपा अध्यक्ष भी कुछ दिनों के भीतर किसी लोकलुभावन पैकेज के साथ सामने आ सकते हैं। सबके एजेंडे पर गरीबी और किसान हैं। ऐसे में आचार संहिता की बंदिशों के बीच मोदी मेरठ से पश्चिम को किस तरह साधते -मथते हैं, इस पर खास नजर रहने वाली है।