ज्योति मन की, शुचिता तन की, समाहित हो अंतर्मन में। प्रकाश का उत्सव, मेरे भीतर भी, आलोकित है मेरी संवेदनाएं, मिट गए है,
भेद के भाव, सूा गए है वे घाव, जो उन लोगों ने दिए, जोअहंकार की मदिरा पिए, हत्या करते हैं सत्य की, नहीं करते स्वीकार, साक्ष्य तथ्य की।
है प्रकाश बाहर, चलता है काल का काहर, भयभीत न करे, समय का चक्र,
परिस्थिति न हो जाएं वक्र, हम ले प्रकाश, हम दे प्रकाश।