एक प्रकार से इस विषय को समझते हैं। आपकी तन्ख्वाह 20,000 रुपये मासिक है। आपने सोचा कि मैं नौकरी कर रहा हूं, मैं कमा रहा हूं तो सारे धन को खर्च अपने ऊपर करने का मेरा अधिकार है। आप शाही ढंग से 20,000 रुपये की राशि महिने भर में अपने ऊपर खर्च कर रहे हैं। कुछ दिन बाद ध्यान आया कि मेरी पत्नी भी तो मेरी है। उसका भी तो बराबर का हक है। अतः दोनों पर 10-10 हजार खर्च की सीमा बांध ली।
अब आप बताइये कि आपका भौतिक सुख तो कम हो गया किन्तु मानसिक आनन्द पहले की तुलना में कम हुआ या बढ़ा? उसी प्रकार आपने अपने बच्चों को अपना माना, सब पर बराबर खर्च या फिर परिवार के बाकी सब सदस्यों को अपना माना कि आप पर व्यक्तिगत खर्च की सीमा कम हो रही है। भौतिक सुख की मात्रा कम हो रही है। किन्तु मानसिक आनन्द उसी गति से नहीं उससे कहीं अधिक गति से बढ़ रहा है। इसे ही बडी सोच कहते है और सुभाषित में कहा भी गया है।