पितरों के श्राद्धकृत्य से मिलेगी सुख – समृद्धि, खुशहाली

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हिन्दु धर्म के अनुसार पौराणिक मान्यता के मुताबिक पूर्वजों की स्मृति में प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष में श्राद्ध करने की परम्परा है। ऐसी मान्यता है कि पितरों के आर्शीवाद से जीवन में आरोग्य, सौभाग्य, वैभव एवं ऐश्वर्य बना रहता है। पितरों को याद करके उनकी पुण्यतिथि पर उनकी प्रसन्नता के लिए श्रद्धा के साथ श्राद्धकृत्य करना उत्तम फलदायी रहता है, जिससे जीवन में खुशहाली बनी रहती है। इस बार पितृपक्ष 21 सितम्बर, मंगलवार से प्रारम्भ हो रहा है,6 अक्टूबर, बुधवार को समापन हो रहा है।

तिथि के अनुसार श्राद्ध का फल- पितृपक्ष में तिथियों के अनुसार श्राद्ध करने की विशेष महिमा है। पितरों की पूजा-अर्चना का विशिष्ट माह आश्विन कृष्ण पक्ष निश्चित है। इस माह के कृष्ण पक्ष में श्रद्धा के साथ परदादा-परदादी, दादा-दादी, पिता-माता एवं अन्य सगे परिजनों को याद करके उनके निमित्त श्राद्ध किया जाता है। पितृगण प्रसन्न होकर अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं, जिससे जीवन खुशहाल रहता है। प्रख्यात् ज्यातिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक हर तिथि के श्राद्ध का अपना अलग महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तिथि तथा पूर्णिमा तिथि के श्राद्ध का अलग-अलग फल बताया गया है। इस क्रम में

प्रौष्ठपदी श्राद्ध- 20 सितम्बर, सोमवार पूर्वा भाद्र.
प्रतिपदा का श्राद्ध- 21 सितम्बर, मंगलवार उत्त.भाद्र.
द्वितीया का श्राद्ध- 22 सितम्बर, बुधवार रेवती धनसम्पत्ति व ऐश्वर्य का योग। ऐश्वर्य की प्राप्ति।
तृतीया का श्राद्ध- 23 सितम्बर, गुरुवार रेवती शत्रुओं से मुक्ति, सुख-समृद्धि।
चतुर्थी का श्राद्ध- 24 सितम्बर, शुक्रवार अश्विनी अभीष्ट एवं धन-सम्पत्ति-वैभव प्राप्ति का योग।
पंचमी का श्राद्ध- 25 सितम्बर, शनिवार भरणी देशाचारेण
पंचमी का श्राद्ध- 26 सितम्बर, रविवार कृत्तिका इस दिन अविवाहित व्यक्ति का श्राद्ध करना चाहिए।
षष्ठी का श्राद्ध- 27 सितम्बर, सोमवार रोहिणी देवी-देवताओं के आर्शीवाद से मिलती है खुशहाली।
सप्तमी का श्राद्ध- 28 सितम्बर, मंगलवार मृगशिरा यज्ञ के समान पुण्यफल का योग।
अष्टमी का श्राद्ध- 29 सितम्बर, बुधवार आर्द्रा सुख-समृद्धि की प्राप्ति।
नवमी का श्राद्ध- 30 सितम्बर, गुरुवार पुनर्वसु मातृनवमी, सुपत्नी की प्राप्ति।
सौभाग्यवती (सुहागिन) का श्राद्ध।
दशमी का श्राद्ध- 01 अक्टूबर, शुक्रवार पुष्य । लक्ष्मी की प्राप्ति।
एकादशी का श्राद्ध- 02 अक्टूबर, शनिवार आश्लेषा भगवान् विष्णु का सानिध्य, वेद-पुराण के ज्ञानार्जन। वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध।
द्वादशी का श्राद्ध- 03 अक्टूबर, रविवार प्रचुर अन्न-धन की प्राप्ति । समस्त संन्यासियों का श्राद्ध।
त्रयोदशी का श्राद्ध- 04 अक्टूबर, सोमवार पूर्वाफाल्गुनी दीर्घायु व प्रज्ञा प्राप्त । बालकों का श्राद्ध।
चर्तुदशी का श्राद्ध- 05 अक्टूबर, मंगलवार उत्त.फाल्गुनी दीर्घाय, शत्रुओं से रक्षा। जिन्होंने आत्महत्या की हो या जिनकी । मृत्यु किसी शस्त्र से, दुर्घटना में अथवा विषपान से हुई हो। अमावस्या का श्राद्ध- 06 अक्टूबर, बुधवार हस्त सर्वमनोरथ पूर्ण।

(अज्ञात तिथि वालों का)
स्नान-दान एवं श्राद्ध की अमावस्या 6 अक्टूबर, बुधवार को रहेगी। अमावस्या तिथि के दिन महालया का विसर्जन किया जाता है। इस बार 6 अक्टूबर, बुधवार को महालया सम्बन्धित समस्त धार्मिक अनुष्ठान विधि-विधानपूर्वक सम्पादित किया जाएगा। आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि के दिन सर्वपितरों का विसर्जन किया जाता है। तर्पण आदि पिण्डदान करने के लिए सफेद या पीतवर्ण के वस्त्र धारण करने चाहिए। जो व्यक्ति श्राद्ध करने हेतु सामर्थ्य न रखता हो, उन्हें मात्र जल में काला तिल लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने पितरों को याद करके तिलांजलि देनी चाहिए। अपने दोनों हाथों को ऊपर करके पितरों से कहना चाहिए कि मेरे पास श्राद्ध करने की सामर्थ्य नहीं है, मुझे क्षमा करें। अथवा योग्य ब्राह्मण को एक मुट्ठी काला तिल दान कर देना चाहिए, ताकि पितृगण प्रसन्न रहें। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि श्राद्धकर्ता को पूर्ण श्रद्धा के साथ श्राद्धकृत्य विधि-विधानपूर्वक कर्मकाण्डी विद्वान ब्राह्मण द्वारा ही उपयुक्त समय पर करवाना लाभकारी रहता है। श्राद्धकर्ता को श्राद्ध के निमित्त बने भोजन को अवश्य ग्रहण करना चाहिए। पितरों के श्राद्ध करने से जीवनभर सुख-शान्ति बनी रहती है।

ज्योर्तिविद् श्री विमल जैन

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