जिसकी जितनी संया भारी, उसकी उतनी भागीदारी पर ही कोई गठबंधन बनेगा

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पिछले कुछ वर्षों के दौरान दलित पॉलिटिक्स में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं। नेतृत्व करने वाले कई चेहरे सामने आए। हिंदी भाषी राज्यों में भीम आर्मी के जरिए हमने अपनी पहचान बनाई। आजाद समाज पार्टी का गठन भी किया है। जिन पांच राज्यों में अगले छह महीने के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से तीन राज्ययूपी, पंजाब और उत्तराखंड ऐसे हैं, जिनमें दलित वोटर्स निर्णायक साबित होते हैं। इस बार हम किसी के पाले में नहीं खड़े होने वाले हैं। आजाद समाज पार्टी सभी पांच राज्यों में अपने उमीदवार उतारेगी। हां, मैं कांशीराम जी का चेला रहा हूं, आज भी उनके सिद्धांत मेरे आदर्श हैं। वह कहा करते थे- जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी। इस सिद्धांत के आधार पर समान विचार दलों के साथ अगर कोई गुंजाइश बनती है तो गठबंधन हो सकता है।

ओवैसी साहब से मेरी जो मुलाकात हुई, वह कोई टेबल टॉक नहीं थी। वह एक टीवी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे और मुझे भी उस कार्यक्रम में बुलाया गया था। इस तरह की मुलाकात तो तमाम नेताओं के साथ हुआ करती है। रही बात गठबंधन की तो मैंने पहले ही कहा, मैं जिस नजरिये के साथ समाज के वंचित तबके की लड़ाई लड़ रहा हूं, उसके दायरे में अगर न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ समान विचार वाले दलों के गठबंधन की कोई गुंजाइश बनती है तो गठबंधन हो सकता है, उसमें कोई भी दल हो सकता है। किसी का नाम अभी तय नहीं है। हां बीजेपी की विचारधारा हमसे मेल नहीं खाती। धर्म की आंधी के साथ जब बहुसंख्यक समाज बहा तो उसमें दलित भी बह गया, हालांकि उसमें गैर-जाटव ज्यादा थे।

यहां चूक यह हुई कि आंबेडकर जी, कांशीराम जी के विचारों पर राजनीति करने वाली जो कॉडर बेस पार्टियां थीं, वे खुद बीजेपी के अजेंडे पर राजनीति करने लगीं। इसकी वजह जहां तक मैं समझ पाया हूं, वह यह है कि दोनों दलों के नेताओं के बीच तो गठबंधन हो गया था, लेकिन कार्यकर्ताओं और उनके वोटर्स के बीच नहीं हो सका। मैं उनके नेतृत्व में काम कर चुका हूं। मैंने कभी यह नहीं कहा कि मैं मायावती को माइनस कर रहा हूं या मैं उस पाले में नहीं रहूंगा, जिसमें वह होंगी। किसी को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि वह प्लस, माइनस कर सकता है। नेता समाज नहीं बनाते हैं बल्कि समाज नेता बनाता है। समाज जिसको चाहेगा, नेता बना देगा। मेरा एक ही कोशिश है कि वंचित समाज के लोगों को राजनीतिक ताकत दी जाए। ताकत इस हद तक हो, जिसमें वह कानून बना सकते हों।

चंद्रशेखर आजाद रावण
(लेखक भीम आर्मी के चीफ हैं उनसे बातचीत में जो सार निकलकर आया है वो उनके निजी विचार हैं)

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