पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास यतिराज ने टोयो पैरालंपिस के आखिरी दिन भारत के लिए मेडल जीता है। सुहास पिछले कई महीनों से पैरालंपिक की तैयारी में जुटे रहे थे। बढिय़ा स्ट्रोस से अपने प्रतिद्वंदियों को मात देना पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास यतिराज का समझो पसंदीदा काम है। टोयो पैरालंपिस में मेडल जीतने वाले चैंपियन खिलाड़ी, ये सुहास की सिफऱ् एक पहचान है। उनकी दूसरी पहचान ये है कि वो आईएएस अफसर हैं। सुहास यतिराज दिल्ली से सटे सटे गौतम बुद्धनगर (नोएडा) के जिला मजिस्ट्रेट हैं। वे 2007 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। सुहास के कंधों पर नोएडा के जिला मजिस्ट्रेट की जि़म्मेदारी ऐसे वत में थी जब कोरोना में दूसरी लहर के दौरान नोएडा बहुत खऱाब स्थिति में था और पैरालंपिस के लिए वालिफ़ाई भी करना था। वैसे सामान्य दिनों में भी एक आएईएस अधिकारी की जि़म्मेदारी संभालना और साथ में एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी होना आसान काम नहीं है।
पर सुहास के पास अपना फ़ॉर्मूला है। वो जि़ंदगी में कई उतार चढ़ाव देख चुके हैं और ऐसा करने के अभ्यस्त हैं। सुहास ने कोविड-19 पर कंट्रोल के साथ पैरालांपिक की तैयारी भी की है। दिन भर बतौर डीएम सबको निर्देश देता एक अधिकारी और शाम को एक खिलाड़ी बन अपने कोच से टिप्स लेता नजऱ आता था। टोयो जाने से पहले सुहास ने बीबीसी से ख़ास बात की थी। उन्होंने बताया था, दो अलग तरह के कामों के बीच तालमेल बिठाना तब मुश्किल लगता है जब आपको अपना जॉब पसंद न हो। मुझे अपना काम बहुत अच्छा लगता है। वहीं बैडमिंटन मेरा पैशन है, इसलिए न मैं कभी थकता हूँ , न बोर होता हूँ और दोनों के लिए टाइम भी निकाल लेता हूँ। सुहास के बैकग्राउंड की बात करें तो उनका जन्म कर्नाटक में हुआ। पिता की सरकारी नौकरी के कारण अकसर तबादले होते रहते। सुहास ने बताया था, गाँव से जब शहर बदली हुई तो कई बार स्कूल वाले एडमिशन नहीं देते थे। तब भी पिताजी यही कहते थे कि तुम अपनी मेहनत करते रहो। इंजीनियरिंग की पढ़ाई लिखाई के बाद आईटी सेटर में काम करने मैं विदेश चला गया लेकिन कहीं न कहीं लगा कि समाज के लिए कुछ करना चाहिए.
और समाज के लिए काम करना के सबसे बेहतर मौका तो सिविल सर्विसिस में है। मैं ख़ुशकिस्मत था कि आईएएस अधिकारी बन पाया। जब मैं आईएएस की ट्रेनिंग ले रहा था तभी से मैं एकेडमी में जाकर ख़ूब प्रेटिस करता, प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेता। मेरी पोस्टिंग जहाँ भी हुई मैंने बैडमिंटन खेलना नहीं छोड़ा। ये मेरी जि़ंदगी की दूसरी धारा है। सुहास ने एक दिलचस्प बात बताई थी, स्कूल और कॉलेज के दिनों में क्रिकेट खेलता था। क्रिकेट में अच्छी बैटिंग करता था और कई मैच भी खेले। बैडमिंटन के प्रति रुझान आईएएस में सिलेट होने के बाद प्रशिक्षण के दौरान हुआ। एक पैर में दिक्कत की वजह से सुहास पैराएथलीट की कैटेगिरी में आते हैं। बैडमिंटन के लिए ही नहीं, सुहास के पास जि़ंदगी जीने के टिप्स भी अपने टिप्स हैं। सुहास स्टीफऩ हॉकिंन्स की मिसाल देते हुए कहते हैं, प्रोफ़सर हॉकिन्स से विकलांग शायद ही कोई होगा। वो चल नहीं सकते थे, बोल नहीं सकते थे। फिर भी उन्होंने कितना कुछ किया।
फिर अगर मैं पैराखिलाड़ी हूँ तो मेरे पास तो कोई बहाना होना ही नहीं चाहिए आगे न बढऩा का।करियर की बात करें तो सुहास नेशनल चैपिंयन तो रह ही चुके हैं साथ में भारत के पहले नौकरशाह हैं जो एशियाई चैंपियन भी बने जब वो आज़मगढ़ के डीएम थे। उस दौर को याद करते हुए सुहास ने बताया था, मैं 2016 में एशियन पैरा चैंपियनशिप में खेल रहा था। इस गेम में दरअसल मैं पीछे था। मैं डर डरकर खेल रहा था। इसी बीच पानी पीने के लिए छोटा सा ब्रेक था। अचानक मैंने सोचा कि मैं डर यों रहा हूँ। हार जाऊं क्या जीतूँ मेरे पास वापस लौटकर अच्छी ख़ासी नौकरी है यों न मैं दिल खोल कर खेलूँ। उसके बाद न सिफऱ् मैं वो मैच जीता बल्कि एशियाई चैंपियन भी बना। मुश्किलों के बीच हार से यूँ जीत चुरा लेना ही शायद सुहास की सबसे बड़ी ताकत है। भारत में ऐसे बहुत ही कम अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी होंगे जो अपनी गेम के चैंपियन भी हैं और भारतीय प्रशासनिक सेवा का आला अफ़सर भी।
वंदना
(लेखिका बीबीसी की पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)