रशियन दार्शनिक गुरजिएफ का आश्रम निराला था और गुरजिएफ का आचरण भी हैरान करने वाला रहता था। एक दिन उनके आश्रम में एक व्यति आया तो उसने बाहर डिस्प्ले बोर्ड देखा। बोर्ड पर लिखा था, जो लोग अपने माता-पिता के साथ रहने में दिकत महसूस करते हों, वो लोग इस आश्रम में प्रवेश न करें। डिस्प्ले बोर्ड का संदेश पढ़कर वह व्यति गुरजिएफ के पास पहुंचा और बोला, कि आप संत हैं, हम लोग आपके पास मानसिक शांति के लिए आते हैं। क्या
आपने समाज सुधार करने का ठेका ले रखा है? जो ये शब्द लिख दिया कि माता-पिता की सेवा करें। मातापिता की सेवा करना एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसे करना है, वो करेगा, जिसे नहीं करना है, वह नहीं करेगा। आपका क्या लेना-देना? हम तो आपके पास आत्मबोध के लिए आए हैं। परमात्मा के रूप को जानने के लिए। गुरजिएफ बोले, कि बस उसी परमात्मा की ये शर्त है, क्योंकि जो लोग अपने माता-पिता के साथ नहीं रह सकते, वो परम पिता के साथ कैसे रह सकते हैं? सभी माता-पिता ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं।
भगवान ने तुहें संसार में भेजा है, माध्यम इन्हें बनाया है। अब उस व्यति को बात समझ में आ गई। ये कहानी संदेश दे रही है कि हमें अपने घर-परिवार और खासतौर पर माता-पिता का समान करना चाहिए। जन्मदाता के प्रति समान का भाव रखने वाले लोगों को बहुत अधिक भगवान को खोजने की जरूरत नहीं है। जिन्होंने हमें जन्म दिया है, उनका चयन परमात्मा ने किया है और उनके प्रति जब हम समान का भाव रखते हैं तो परमात्मा की कृपा जरूर मिलती है।