ताजा खबर है कि न्यूयॉर्क में लोग गर्मी के प्रकोप से परेशान हैं। आलम यह है कि वहां पर गर्मी से त्रस्त लोग नेकटाई को भी अनावश्यक वस्त्र मान रहे हैं। दूसरी ओर जर्मनी और बेल्जियम में कहीं तापमान अधिक होने के कारण लोग मर रहे हैं, तो कहीं बाढ़ में डूब रहे हैं। गोयाकि मौसम का मिजाज तो रूठी हुई प्रेमिका से भी अधिक बौरा गया है।
मौसम के प्रकोप से त्रस्त लोग तरह-तरह के जतन कर रहे हैं और बचने के उपाय खोज रहे हैं। कुछ स्थानों पर लोग लकड़ी की ऊंची कुर्सियां बनवा रहे हैं, ताकि बाढ़ का पानी घर में घुस आए तो वे ऊंची कुर्सी पर बैठकर खुद को बाढ़ के पानी से काफी हद तक बचा सकें। यही नहीं कहीं-कहीं तो पेड़ों पर भी मचाननुमा मकान बनाए जा रहे हैं ताकि ऊंचाई पर उनके बचने की उम्मीदें बढ़ सकें।
बहरहाल, मौसम दुनिया के सभी देशों में बदल रहे हैं। कहीं-कहीं ऋतु चक्र विपरीत दिशा में घूम रहा है। गांधी जी के सूत कातने के चरखे के साथ भी यही प्रायोजित किया गया है। मौसम के इस परिवर्तन पर वर्षों पूर्व अनुपम मिश्र ने दो किताबें लिखी थीं, ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ और ‘ आज भी खरे हैं तालाब।’ गौरतलब है कि कुओं में सीढ़ियां बनाई जाती थीं ताकि जलस्तर घटने पर नीचे उतरकर जल लाया जा सके। आधुनिकीकरण के जोश में मकानों की आवश्यकता को देखते हुए, कुछ सूखे हुए कुओं को पाटकर उन पर मकान बना लिए गए। रिकार्ड बुक्स में कुएं थे ही नहीं ऐसी इबारत दर्ज की गई है।
पानी की परेशानी को समझ कर एक प्रांतीय सरकार ने जिलाधीशों को आदेश दिया कि वे अपने क्षेत्र में तालाब बनवाएं और पुराने सूख गए तालाबों के स्थान पर मजदूरों से खुदाई करवा कर उन्हें पुन: प्राण दें। एक भ्रष्ट अधिकारी द्वारा यह फर्जी काम किया गया। फर्जी मजदूरों के अंगूठों के निशान कागज पर लेकर उन्हें भुगतान किया गया, यह दिखाया गया। कुछ बाबुओं और चपरासियों ने कई बार अपने अंगूठों के निशान बनाए। उनके हाथ बार-बार धोने की व्यवस्था की गई।
गौरतलब है कि इस काम में लगभग उतना ही जल खर्च हुआ जितना उस काल्पनिक तालाब से मिलने की उम्मीद थी। कुछ समय बाद जिलाधीश महोदय का तबादला अन्य शहर में किया गया, जिसका कारण उनका भ्रष्टाचार नहीं था, वरन तबादले किए ही जाते हैं वजह यह थी। नए आए जिलाधीश ने चार्ज लेते समय रिकार्ड देखा और जांच में पाया कि वह तालाब तो मात्र कागज पर ही रचा गया है असल में बना ही नहीं था।
नए जिलाधीश को यह बताया गया कि अब आप यह रपट दर्ज करें कि उस तालाब से जल पीने वाले पशु मर गए। अत: तालाब को जनहित में पाटने के लिए मजदूर लगाए गए। इस तरह नया जिलाधीश भी धन कमा सकता है। इस कथा को शरद जोशी ने लिखा था। हरिशंकर परसाई और शरद जोशी ने व्यंग्य विधा के हिमालय खड़े किए हैं। वर्तमान में इस विधा में वह धार नहीं है।
इसी तरह कार्टून विधा के पितामह आर.के लक्ष्मण की तरह का महान काम वर्तमान में नहीं हो रहा है। अगर लक्ष्मण के कार्टून वर्तमान में पुन: प्रकाशित किए जाएं, तो वे आज के समाज का विवरण भी दे सकते हैं। मौसम के मिजाज की तरह व्यवस्था का ढर्रा नहीं बदलता। वह अटल प्रमाणित दस्तावेज की तरह रहता है। कुछ गांवों में लोग वृक्ष इस तरह लगाते हैं कि नदी के दोनों किनारों पर लगे वृक्ष नदी पर एक नैसर्गिक पुल सा बना देते हैं।
आज फ्लाईओवर के निर्माण में लगा हुआ धन व्यर्थ खर्च लगने लगा है। वर्तमान में आर्किटेक्चर विधा में आमूल परिवर्तन करना आवश्यक हो गया है। संगमरमरी बहुमंजिला इमारतें धरती की छाती में खंजर के समान धंस गई हैं। कत्ल हुए हैं, परंतु कहीं रक्त नजर नहीं आता।
थ्रिलर एक दवा का काम करता है: दूसरे विश्व युद्ध के समय हिटलर की सेना फ्रांस पर विजय प्राप्त कर चुकी थी। फ्रांस के देशभत हिटलर की फौजी टुकडिय़ों पर गोरिल्ला शैली में आक्रमण करते थे। साधनों का अभाव था परंतु उनका जोश काम नहीं था। एक दिन उनके साथी कुछ हथियार अपने अंडर ग्राउंड कैंप तक भेजना चाहते थे। उन्होंने अपने दल के एक साथी से ट्रक के जुगाड़ के लिए कहा। किसी तरह ट्रक जुगाड़ा गया। निचली सतह पर हथियार रखे और ऊपर मांस भर दिया गया। ट्रक पर तारपोलीन लगा दिया गया। कुछ दूर जाने पर सामने से आते हुए नाजी सैनिकों को साइड दी गई। इसी समय हथियार वाला ट्रक और नाजी सैनिकों का ट्रक आपस में सटकर निकले, जिससे तारपोलीन थोड़ा सा फट गया। उसमें भरे मांस के टुकड़े नीचे गिरने लगे। कुो पीछे पड़ गए। नाजी ट्रक ड्राइवर ने यह देखा और ट्रक का पीछा किया। सारे हथियार और ट्रक ड्राइवर नाजी सैनिकों के हाथ लग गया। इस प्रसंग पर फिल्म बनी। इस तरह सिनेमा में थ्रिलर फॉर्मेट का उदय हुआ।
अल्फ्रेड हिचकॉक के रहस्य-रोमांच से अलग है थ्रिलर विधा। भारत में नीरज पांडे और उनके निकट रहे सहयोगी शिवम नायर ने थ्रिलर बनाए। नीरज की ‘बेबी’ सराही गई। शिवम नायर की तरफ से तापसी पन्नू अभिनीत ‘नाम शबाना’ भी सफल रही। ज्ञातव्य है कि शिवम नायर, राज कपूर पर लगभग 4 घंटे के वृाचित्र की तैयारी कर रहे हैं। शिवम नायर ने सिमी ग्रेवाल द्वारा बनाया गया वृाचित्र देखा है। दूरदर्शन के लिए एक अन्य व्यति ने भी वृाचित्र बनाया है। शिवम नायर नए दृष्टिकोण से वृाचित्र बनाना चाहते हैं। ज्ञातव्य है कि भारतीय संसद पर पांच आतंकवादियों ने आक्रमण किया था। वे पांचों मार गिराए गए। शिवम नायर ने ‘स्पेशल ऑप्स’ में एक काल्पनिक रचना इस तरह की कि आतंकवादियों की संख्या 6 थी। यही व्यति बच गया। बाद में इसी व्यति ने अन्य साथियों की मदद से 26/11 को मुंबई में एक आतंकवादी आक्रमण कराया और इस बार वह भी मारा गया।
1993 में मुंबई धमाकों पर अनुराग कश्यप ने ‘ब्लैक फ्राईडे’ नामक डॉयू ड्रामा बनाया। ‘नाम शबाना’ की अगली कड़ी पर विचार किया जा रहा है। आदित्य चोपड़ा ने थ्रिलर विधा में नए ढंग में ‘एक था टाइगर’ बनाई। जिसमें प्रेम कथा भी गूंथी गई। अलग-अलग ढंग से बनाई जाने वाली फिल्मों के बीच कोई कटीले तार बिछाए नहीं जाते कि इधर से उधर नहीं हो सकते। वर्तमान समय के फिल्मकार विविध विषयों पर फिल्में बनाते हैं। शुजित सरकार ने प्रयोग किए हैं। अजय बहल, अनीस बज्मी, कबीर खान और रोहित शेट्टी भी विविध फिल्में बनाते हैं। रोहित शेट्टी की ‘चेन्नई एसप्रेस’ में शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया है। विगत कुछ वर्षों में राजकुमार हिरानी की सभी फिल्में लोकप्रिय हुई हैं। खबर है कि शाहरुख खान के साथ वे शीघ्र ही नई फिल्म की शूटिंग प्रारंभ करने जा रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के लिए हिरानी ने पहले शाहरुख से ही बात की थी। शाहरुख को भय था कि फिल्म के निर्माता विधु विनोद चोपड़ा से उनकी पटेगी नहीं। इसलिए शाहरुख नहीं चाहते थे कि नए निर्देशक का नुकसान हो। बहरहाल इस समय कहीं कोई अनबन नहीं है। बोमन ईरानी भी राजकुमार हिरानी की सभी फिल्मों में अहम पात्र अभिनीत करते हैं। महामारी से सभी लोग आहत हैं। नैराश्य के इस दौर में थ्रिलर एक दवा का काम करता है। शीघ्र ही सिनेमाघर प्रारंभ करने की इजाजत मिल जाएगी। कुछ शहरों में प्रदर्शन जारी हुआ है परंतु दर्शक संख्या बहुत ही कम है। टेलीविजन पर प्रसारित तथाकथित हास्य समझने वालों की नादानी पर रोना आता है। बहरहाल थ्रिलर ही बनाए जा रहे हैं। संगीत में प्रेम कथा कोई नहीं बना रहा है। दौर बदलते रहते हैं।
जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)