फूड डिलिवरी टेक्नलॉजी कंपनी जोमैटो ने इन दिनों शेयर बाजार में हंगामा मचा रखा है। एक हंगामेदार आईपीओ के बाद शेयर बाजार में लिस्टिंग पर उसके शेयर 65 फीसदी ऊपर खुले। जोमैटो के एक रुपये की कीमत के शेयर पहले तो आईपीओ के दौरान 76 रुपये प्रति शेयर की कीमत पर 40 गुना ज्यादा सब्सक्राइब हुए और उसकी कीमत 125-133 रुपये के बीच चल रही है। इस तरह जोमैटो ने एक झटके में देश की कई बड़ी और जानी-मानी ब्रिक-मोर्टार कंपनियों को बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) के मामले में पीछे छोड़ दिया और आज एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कंपनी बन चुकी है। यह इस मामले में एक चमत्कार है कि जोमैटो खुद कुछ नहीं बनाती। यानी उसका अपना कोई रेस्तरां या किचन नहीं है। वह हम-आप जैसे शहरी उपभोक्ताओं को सिर्फ छोटे-बड़े और जाने-माने रेस्तरां से लजीज पकवानों को घर बैठे ऑर्डर करने और फिर उसे जल्दी से जल्दी आपके घर डिलिवर करने का प्लैटफॉर्म देती है।
इसके बावजूद कंपनी की ऐसी ‘सफलता’ हैरान करती है क्योंकि सिर्फ कुछ सालों की उम्र वाली इस कंपनी को फूड ऑर्डर और डिलिवरी के इस कारोबार में अब तक कोई मुनाफा नहीं हुआ है। सच तो यह है कि कंपनी को विाीय वर्ष 17-18 से लेकर विाीय वर्ष 20-21 के पहले नौ महीने में अब तक 4,185 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हो चुका है। उसे कब तक मुनाफा होगा, यह भी कोई नहीं जानता। इस बारे में जोमैटो ने भी कुछ नहीं बताया है। उलटे कंपनी ने कहा कि आने वाले वर्षों में भी इसका घाटा बढ़ सकता है क्योंकि वह धंधे में और निवेश बढ़ाने जा रही है। इसके बावजूद कंपनी के शेयरों के लिए मारामारी मची है। कई विश्लेषकों को लगता है कि जोमैटो के शेयरों की ऐसी मारामारी और कुछ नहीं बल्कि बाजार और तेजडिय़ों का ‘अतार्किक उत्साह’ है, जो इन दिनों दुनिया भर में टेक्नलॉजी कंपनियों की अतिरेकपूर्ण संभावनाओं का बाजा बजाने में लगे हुए हैं। असल में, यह महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को संभालने के नाम पर विकसित और विकासशील देशों के केंद्रीय/रिजर्व बैकों की अति उदार मौद्रिक नीति के तहत दोनों हाथों से झोंकी गई रकम (ईजी मनी) का नतीजा भी है।
इस पैसे को कहीं और उत्पादक सेक्टर में निवेश करने के बजाय शेयर बाजार में लगाकर एक तरह की सट्टेबाजी हो रही है और पैसे से पैसा बनाया जा रहा है। ऐसा सिर्फ जोमैटो के शेयरों के साथ ही नहीं हो रहा है। पिछले कुछ महीनों में कई जानी-अनजानी कंपनियां आईपीओ लेकर आईं और प्राइमरी मार्केट और शेयर बाजार से भारी रकम उगाहने में कामयाब हुईं। खुद भारतीय शेयर बाजार भी इन दिनों सुर्खियों में है। वह हर दिन-सप्ताह-महीने ऊंचाई पर चढऩे के नए रेकॉर्ड बना रहा है। मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 53000 अंकों तक पहुंच चुका है। याद रहे कि पिछले साल फरवरी में 41000 अंकों तक पहुंचने के बाद यह कोरोना महामारी और राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान मार्च-अप्रैल में औंधे मुंह गिरकर 28000 अंकों से नीचे आ गया था। लेकिन उसके बाद जानकारों को हैरान करते हुए यह पिछले एक साल से ब्रेकनेक स्पीड से लगातार ऊपर चढ़ रहा है। पहले इस साल फरवरी में 50000 अंकों की मनोवैज्ञानिक रेखा पार करने के बाद चढ़ता हुआ अब 53000 अंकों के आसपास आ पहुंचा है।
इस तरह 12-14 महीनों में शेयर बाजार ने 90 फीसदी से ज्यादा की छलांग लगाई है। यह तब हो रहा है जब वास्तविक अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है। महामारी के कारण बीते वर्ष (20-21) जीडीपी की वृद्धि दर नकारात्मक (-) 7.3 फीसदी रही। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में कोरोना की दूसरी और ज्यादा घातक लहर के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अनुमान कम करने पड़े हैं। शेयर बाजार में एक तरह का ‘मैनिया’ छाया हुआ है, जिसे खासकर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और तेजडिय़ों ने मिलकर बनाया है। बाजार की तेजी से ऐसा माहौल बन गया है, जैसे इस महामारी में भी शेयर बाजार में सोना बरस रहा है। नतीजा यह कि छोटे और खुदरा निवेशक भी दौड़े चले आ रहे हैं कि एक का दस बनाने की इस पार्टी में कहीं पीछे न छूट जाएं। पिछले कुछ वर्षों में एक आम ढर्रा बन गया है कि छोटे और खुदरा निवेशक शेयर बाजार में तब आते हैं, जब वह काफी चढ़ चुका हो।
जब बुलबुला फूटता है तो वे घबराहट में नुकसान उठाकर भी निवेश से निकलने की कोशिश करते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि चाहे जोमैटो के शेयरों की मौजूदा कीमत हो या संवेदी सूचकांक, यह बुलबुला है जिसे लेकर बाजार के गंभीर विश्लेषक और अर्थशास्त्री ही नहीं, खुद भारतीय रिजर्व बैंक तक चिंतित है। असल में, दुनिया के प्रमुख शेयर बाजारों में तेजडिय़ों का इन दिनों दबदबा है और वहां भी बाजार आसमान छू रहे हैं। मुंबई शेयर बाजार भी इसका अपवाद नहीं है। इसके पीछे वे विदेशी संस्थागत निवेशक हैं, जिन्होंने वर्ष 20- 21 में बाजार में शुद्ध 2.7 लाख करोड़ का निवेश किया है और वे अभी भी पैसा लगा रहे हैं। दूसरे, वे छोटे निवेशक हैं जो बैंकों में एफडी और निवेश के दूसरे सुरक्षित माध्यमों में अत्यधिक कम रिटर्न के कारण शेयर बाजार में निवेश के लिए मजबूर हो गए हैं।
पिछले साल (20- 21) में 1.43 करोड़ नए डीमैट एकाउंट खुले हैं, जबकि वर्ष 19-20 में सिर्फ 50 लाख एकाउंट खुले थे। लेकिन जैसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कहता है कि जो चीज ऊपर जाती है, वह नीचे भी आती है, ठीक उसी तरह शेयर बाजार का भी नियम है कि जो ‘अतार्किक उत्साह’ के साथ उछलता हुआ आसमान में पहुंच जाता है, वह फिर जमीन पर भी आता है। ऐसा कई बार हो चुका है। दो दशक पहले डॉटकाम और 2008-09 के वैश्विक विाीय संकट के वक्त फूटे बुलबुले को कौन भूला है? देखना यह है कि यह बुलबुला खुद फूटेगा या अमेरिका और भारत समेत कई देशों में बढ़ती महंगाई दर से चिंतित केंद्रीय बैकों की ‘ईजी मनी’ की नीति के रोलबैक और ब्याज दरों में वृद्धि के बाद फूटेगा।
आनंद प्रधान
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद हैं ये उनके निजी विचार हैं)