कोविड के दौर में सबकुछ बदल गया है। फिल्म उद्योग की दुनिया भी इससे अछूती नहीं रही। अभिनेताओं की ऑडिशन का ही उदाहरण लें। एक्टर्स ऑडिशन के लिए कास्टिंग डायरेक्टर के स्टूडियो नहीं जा रहे। डायरेक्टर्स ऑडिशन ऑनलाइन मंगा रहे हैं। देखा जाए तो इस नए तरीके के फायदे ही हैं। इधर महामारी को अब 15 महीने हो रहे हैं, किसी को नहीं पता कि कितनी फिल्मों की शूटिंग शुरू होगी। ऐसे में नए एक्टर्स को लग रहा होगा कि लाइफ के डेढ़ साल निकल गए। पता नहीं हमारा कुछ होगा कि नहीं।
मेरा मानना है कि इस वक्त को जाया मत होने दीजिए। आप जिस भी क्षेत्र में काम करते हों, निरंतर सीखते रहिए, पढ़ते रहिए, नए एक्टर ऑडिशन देते रहिए। अभी ऑडिशन कैसे भेजें, इसपर हमने कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी, टेस जोसेफ और नंदनी श्रीकेंत से बात की। उन्होंने कहा कि इन दिनों ऑडिशन के जो वीडियोज आ रहे हैं, उनमें तकनीकी समस्या आ रही है।
किसी में एक्टर की आवाज नहीं आती, तो कोई और समस्या। कोरोना के बाद से तकनीक पर निर्भरता हर क्षेत्र में बढ़ी है, ऐसे में एक्टर्स से लेकर विभिन्न पेशेवर लोगों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। अपने सोशल मीडिया अकाउंट को यूनीक बनाएं। सोशल मीडिया की वजह से किसी को कोई मौका तो नहीं मिलता, मगर इससे यह जरूर पता चलता है कि बंदे में कुछ अलग है। पता नहीं, कब कहां किस की नजर पड़े और आपको बुला लिया जाए।
सबसे अहम चीज ये कि आपको अपनी लाइनें याद रहनी चाहिए। वह एक एक्टर का आधार है। अभिषेक बनर्जी ने बताया कि वो हर मैसेज का जवाब देते हैं। यहां भी मैसेज सलीके का होना चाहिए। अच्छा कम्युनिकेशन हर क्षेत्र में बहुत मायने रखता है। सिर्फ ‘हैलो, आई एम फ्रॉम बनारस’ की बजाय मैसेज में छोटा सा बायोडेटा बनाएं। उसमें किए गए काम का जिक्र करें, रुचि बताएं। कहीं अप्लाई किया है, ऑडिशन दिया है तो जरा सब्र रखें। अगर आप उनके किसी प्रोजेक्ट में सूट होंगे, तो वो बुलाएंगे ही। यशराज की कास्टिंग डायरेक्टर ने तो बताया कि लोग गिफ्ट्स तक भेजने लगते हैं। इस सबकी कोई जरूरत नहीं है।
अभिषेक बनर्जी कहते हैं कि ऑडिशन देने वाले की जिज्ञासाओं पर भी उसका चयन निर्भर है। जैसे किरदार की बैकस्टोरी क्या है आदि, ऐसे सवालों से फर्क पड़ता है कि ऑडिशन देने वाले का ज्ञान कितना गहरा है। बाहर के कलाकारों की कास्टिंग करने वाली टेस जोसेफ कहती हैं कि उभरते एक्टर के लिए इंतजार मुश्किल होता है, मगर आप उतावले नहीं हो सकते। संतुलन जरूरी है।
मुझे राजकुमार राव ने बताया था कि संघर्ष के दिनों में वे हर दफ्तर के चक्कर लगाते, ऑडिशन देते रहते थे। शाम को मगर जब वो थके-हारे घर लौटते थे तो एक बार जरूर किसी नाटक की रीडिंग कर लेते थे। उस पर रियाज करते। या कुछ ऐसा करते थे, जिससे अगले दिन सुबह ऑडिशन पर जाने की प्रेरणा मिलती थी। यानी रोज कुछ न कुछ ऐसा करते रहें, जिससे भीतर का एक्टर जगा रहे।
बहरहाल, अब की परिस्थिति जरूर जरा चुनौतीपूर्ण है। पता नहीं कि कितनी फिल्में बनेंगी। कितनों की कास्टिंग होगी। ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप हिम्मत न हारें। खुद को मांजते रहें। दुनियाभर के ऑडिशन दें। वे आपको निखारेंगे। हिंदी फिल्मों में कास्टिंग डायरेक्टर्स की पकड़ तो मजबूत हुई है। साउथ में उसके मुकाबले कम है। उनके द्वारा पसंदीदा व्यक्ति को चुनने के थोड़े बहुत मामले हो सकते हैं, मगर संपूर्णता में देखें तो उन्होंने इंडस्ट्री को बेहतरीन एक्टर दिए हैं।
अनुपमा चोपड़ा
(लेखिका फिल्मी पत्रिका की संपादिका हैं ये उनके निजी विचार हैं)