जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियों के साथ हुई प्रधानमंत्री मोदी की बैठक के बाद से ही राज्य में आर्टिकल 371 लागू किए जाने को लेकर चर्चा जोरों पर है। यह चर्चा 24 जून को केंद्र और जम्मू-कश्मीर की पार्टियों के बीच हुई बैठक के दौरान राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग के सुझाव के बाद से शुरू हुई है। लेकिन, बैठक में मौजूद नेताओं के मुताबिक केंद्र ने इस सुझाव को सुना तो, लेकिन केंद्र ने इस सुझाव पर न बैठक के दौरान कोई प्रतिक्रिया दी और न उसके बाद। फिलहाल, राज्य के राजनीतिक दलों को केंद्र की तरफ से मिलने वाले प्रस्ताव का इंतजार है।
जम्मू-कश्मीर के सियासी प्रस्ताव आने पर करेंगे विचार
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) के को-ऑर्डिनेटर हसनैन मसूदी ने दैनिक भास्कर से कहा कि ‘जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 371 लागू किया जा सकता है इसको लेकर घाटी में भी चर्चा सुनने को मिल रही है। लेकिन, ताज्जुब यह है कि जिसे यानी केंद्र को राज्य को लेकर फैसला करना है, उनकी तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, मीडिया में भी केंद्र की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया हमने न सुनी न देखी, और न ही केंद्र ने जम्मू-कश्मीर के सियासी दलों को इसका कोई प्रस्ताव दिया।’
उनसे यह पूछने पर की क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस और फिर PAGD ने इसको लेकर कोई चर्चा की है? वे कहते हैं कि ‘चर्चा तो तब होगी न जब हमें केंद्र प्रस्ताव भेजेगा। पर अभी तो यह बात सिर्फ मीडिया की खबरों तक ही सीमित है। अगर ऐसा कोई प्रस्ताव केंद्र ने भेजा तो उस पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और PAGD की पार्टियों का रुख क्या होगा? इस सवाल पर हसनैन ने कहा कि ‘यहां की सभी पार्टियां शांति चाहती हैं। आर्टिकल 370 और 35A फिर से लागू करवाना चाहती हैं। केंद्र की तरफ से हमें कुछ भी प्रस्ताव मिला तो उस पर विचार जरूर करेंगे।’
उधर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के वाइस प्रेसिडेंट और PAGD के चेयरपर्सन पहले ही कह चुके हैं कि ‘अपना पॉलिटिकल एजेंडा पूरा करने यानी जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने में भाजपा को 70 साल लगे। हमारा संघर्ष तो बस शुरू ही हुआ है। इसलिए हम अपने लोगों को यह कहकर छलना नहीं चाहते कि एक बैठक के बाद हम राज्य में दोबारा आर्टिकल 370 लागू करवा लेंगे। बैठक के दौरान केंद्र की तरफ से हमें ऐसा कोई इशारा नहीं मिला जिससे लगे कि वर्तमान सरकार ऐसा करेगी। लिहाजा संघर्ष लंबा है, यह चलता रहेगा।’
नेशनल कॉन्फ्रेंस दे सकती है आर्टिकल 371 पर पॉजिटिव रिस्पॉन्स
सवाल उठता है कि क्या इस लंबे संघर्ष के दौरान राज्य की स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी? सूत्रों की मानें तो केंद्र अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 371 के साथ 35A जोड़कर कोई प्रस्ताव भेजता है तो इस पर पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलने की उम्मीद है। यही नहीं भले ही कोई औपचारिक मीटिंग न हुई हो, लेकिन अनौपचारिक तौर पर राज्य के कई दल आर्टिकल 371 को गतिरोध खत्म करने का माध्यम मान रहे हैं।
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन यह जता चुके हैं कि उनका पहला मकसद राज्य को मौजूदा स्थिति से बाहर निकालना है। आर्टिकल 370 और 35A की मांग जारी रहेगी, लेकिन इस बीच राज्य में सरकार की बहाली के लिए किसी बीच के रास्ते पर विचार करने से गुरेज नहीं करेंगे।
पार्टी प्रवक्ता अदनान अशरफ ने बताया कि ‘राज्य में राष्ट्रपति शासन की वजह से लोगों के काम अटके हुए हैं। लोग इस स्थिति से छुटकारा चाहते हैं, ताकि सामान्य तरह से राज्य का कामकाज हो। लिहाजा अगर आर्टिकल 371 का प्रस्ताव आता है तो हम उस पर विचार करेंगे।’ वे कहते हैं कि ‘हमारा दल गुपकार अलायंस में शामिल नहीं है, लेकिन राज्य की सभी पार्टियां केंद्र के प्रस्ताव पर एक साथ विचार करेंगी। हमारी मांग एक ही है, वह रहेगी भी। लेकिन यह सोचना की हमारी मांग कुछ दिन, कुछ महीनों या फिर कुछ सालों में पूरी नहीं होगी, वास्तविकता से काफी दूर है। हमें वास्तविकता को स्वीकारते हुए किसी हल तक पहुंचना होगा।’
क्या चाहती है, राज्य की आवाम और सियासी दल?
डाउनटाउन में रहने वाले तनवीर हसन कहते हैं कि ‘जनता अपना जॉब और लैंड सुरक्षित करना चाहती है। 5 अगस्त 2019 के बाद से यहां लगातार चर्चा है कि घाटी से बाहर के लोग यहां आकर जॉब करेंगे, अपने घर बनाएंगे। यहां लोगों के पास जॉब के नाम पर सरकारी नौकरियां ही हैं। कोई बड़ी इंडस्ट्री तो है नहीं जो जॉब खूब हों। इन दो सालों में भी यहां किसी इंडस्ट्री की शुरुआत नहीं हुई। दूसरी बात यहां जम्मू के मुकाबले जमीन कम है और जनसंख्या ज्यादा, लिहाजा लोग चाहते हैं कि उन जमीन पर बाहर के किसी व्यक्ति का कब्जा न हो। इसलिए वे अपनी लैंड सुरक्षित करना चाहते हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि पिछले तकरीबन दो सालों से यहां सरकार नहीं है। ब्यूरोक्रेसी हावी है। लोग अपने छोटे-छोटे काम भी नहीं करा पा रहे हैं। मानवाधिकार लगभग खत्म हैं। लिहाजा अब लोग भी इस गतिरोध को खत्म करना चाहते हैं।’
क्या 371 इस गतिरोध को तोड़ने का एक जरिया साबित हो सकता है? यहां के वरिष्ठ रिपोर्टर समन लतीफ कहते हैं कि ‘यहां सिसायी दलों के बीच इस बात को लेकर काफी चर्चा है। वे 371 के साथ 35A जोड़कर कोई प्रस्ताव चाहते हैं। लगातार राजनीतिक निर्वासन झेल रहीं यहां की पार्टियां और आवाम दोनों केंद्र की तरफ से किसी ठोस प्रस्ताव के आने का इंतजार कर रहे हैं। केंद्र ने दो साल पहले जो कहा था लगभग वही 24 जून को भी कहा।’
आर्टिकल-371 क्या है?
आर्टिकल-371 अभी देश के 11 राज्यों के विशिष्ट क्षेत्रों में लागू है। इसके तहत राज्य की स्थिति के हिसाब से सभी जगह अलग-अलग प्रावधान हैं। हिमाचल में इस कानून के तहत कोई भी गैर-हिमाचली खेती की जमीन नहीं खरीद सकता। मिजोरम में कोई गैर-मिजो आदिवासी जमीन नहीं खरीद सकता, लेकिन सरकार उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। स्थानीय आबादी को शिक्षा और नौकरियों में विशेष अधिकार मिलते हैं। जम्मू-कश्मीर के कुछ विशिष्ट इलाकों में ऐसे प्रावधान लागू किए जा सकते हैं।
संध्या द्विवेदी
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)