अमेरिका और रुस के बीच शिखर वार्ता ऐसे समय में हुई जब दोनों मुल्कों के संबंध सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। अमेरिका के राट्रपति जो बाइडेन की रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन से स्विट्जरलैंड के जेनेवा स्थित 8 वीं सदी के एतिहासिक ला ग्रेंजे मेंशन में हुई वार्ता महत्व विश्व व भारत के लिए इसलिए अहम् है कि यूएस व रूस के बीच तनाव का वैश्विक संतुलन पर असर पड़ रहा है। ला ग्रेंजे में इससे पहले शीतयुद्ध के दौर में 1955 में तत्कालीन यूएस राष्ट्रपति डीडीआईजनहावर और सेवियत संघ समकक्ष निकिता खुश्चेव व 1985 में यूएस नेता रोनाल्ड रीगन व यूएसएसआर नेता मिखाइल गोर्बाचेव के बीच के शिखर वार्ता हुई, दोनों में ही कुछ नही निष्कर्ष नहीं निकले थे। अभी जब यह वार्ता हुई है, जो विश्व एक बार फिर शीत युद्ध के दौर में लौटता दिखाई दे रहा है। अमेरिका से तनाव के चलते रूस चीन के नजदीक जा रहा है और अमेरिकी बादशाहत के खिलाफ रूस व चीन की मिश्रित शति आकार ले रही है। अमेरिका को रुस-चीनी की नजदीकी खल रही है।
वैश्विक गतिविधियों से अमेरिका जितना हाथ खींच रहा है, रणनीतिक रूप से चीन उतना ही अपना हाथ बढ़ा रहा है। उच्च रक्षा तकनीक में रूस अमेरिका से जरा भी कमतर नहीं है, इसलिए अगर वह चीन के साथ मजबूती से रहता है तो विश्व में अमेरिका के लिए मुश्किल खड़ी होगी। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ टे्रडवार को हवा देकर उसे अमेरिका से बहुत दूर कर दिया है। वर्तमान परिस्थिति में भी चीन के प्रति अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नही आया है, अभी यूएन ड्रेगन के सत्तितल्ख बना रहेगा। चीन रूस के साथ विश्व में नई धुरी कायम कर अपने विस्तारवाद की नीति को मजबूत कर रहा है। अमेरिका यह जानता है, इसलिए रूस के साथ वह संबंध सुधारने की पहल कर रहा है। भारत के अमेरिका व रूस दोनों से अच्छे संबंध हैं, लेकिन अगर वाशिंगटन व मास्को के बीच खटास जारी होगी, तो इससे भारत के यूएस व रूस के साथ रक्षा, सामरिक व ट्रेड संबंध प्रभावित होंगे। रूस के साथ भारत की एंटी मिसाल डिफेंस सिस्टम एस-400 डील पर अमेरिका ऐतराज जता चुका है।
भारत अमेरिकी दबाव में नहीं है और रूस से डील जारी है, लेकिन भारत-चीन से जारी तनाव के बीच अमेरिका से अपने संबंधों को खराब नहीं करना चाहता। केंद्र में जब से मोदी की सरकार है। भारत की कोशिश विश्व की हर बड़ी शति के साथ संतुलन बनाके चलने की है। भारत, क्योंकि सीमा पर चीन की आक्रमकता का सामना कर रहा है, इसलिए भारत के लिए कूटनीतिक रूप से जरूरी भी है कि उसके रूस व अमेरिका से संबंध बेहतर बने रहें। भारत रूस का उपयोग चीन को साधने में कर सकता है। वैश्विक स्तर पर यह अच्छी बात है कि अमेरिका व रूस के नेतृत्व को अहसास है उनके आपसी रिश्ते सुधरने चाहिए। दोनों देश परमाणु हथियार नियंत्रण संधि को पुनर्जीवित करने के लिए बातचीत शुरू करेंगे।
इससे दुनिया में परमाणु हथियारों का खतरा कम जाएगा। दोनों देश मिलकर साइबर सियुरिटी का फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए कार्य करेंगे। यूएस व रूस अपने राजदूतों की पुन: नियुति भी करेंगे। दोनों देशों के ये पॉश्चर सही सकत है, लेकिन यूएस राष्ट्रपति जो बाइडेन की पुतिन को जेल में बंद रूसी विपक्षी नेता एलेस नवलनी को लेकर चेतावनी सहज संदेश नहीं है। इस बात को यूएस व रूस के बीच जारी तनाव को कम होने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। आगे दोनों देश फिर मिलेंगे तो बर्फ और पिघलेगी। दोनों देश बेशक दोस्त न बनें पर सामान्य रिश्ते भी रखेंगे तो विश्व में शति संतुलन बना रहेगा।