महंगाई की मार : नाक में दम सरकार के प्रयास हैं कम

0
174

यह संतोष का विषय है कि देश में आई कोरोना की दूसरी लहर अब लौटती हुई दिखाई पड़ रही है. लोग आशावान हो रहे हैं. हताहतों की संख्या कम होती जा रही है और अपने बंद काम-धंधों को लोग फिर शुरू कर रहे हैं. लेकिन महंगाई की मार ने आम जनता की नाक में दम कर दिया है.

ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक थोक महंगाई दर 12.94 प्रतिशत हो गई है. सरल भाषा में कहें तो यों कहेंगे कि जो चीज पहले एक हजार रु. में मिलती थी, वह अब 1294 रु. में मिलेगी. ऐसा नहीं है कि हर चीज के दाम इतने बढ़े हैं. किसी के कम और किसी के ज्यादा बढ़ते हैं. जैसे सब्जियों के दाम यदि 10 प्रतिशत बढ़ते हैं तो पेट्रोल के दाम 35 प्रतिशत बढ़ गए.

कुल मिलाकर सभी चीजों के औसत दाम बढ़ गए हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई की यह छलांग पिछले 30 साल की सबसे ऊंची छलांग है. यहां तकलीफ की बात यह नहीं है कि महंगाई बढ़ गई है बल्कि यह है कि लोगों की आमदनी घट गई है. जिस अनुपात में महंगाई बढ़ती है, यदि उसी अनुपात में आमदनी भी बढ़ती है तो उस महंगाई को बर्दाश्त कर लिया जाता है लेकिन आज स्थिति क्या है?

करोड़ों लोग बेरोजगार होकर अपने घरों में बैठे हैं. ज्यादातर निजी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों का वेतन आधा कर दिया है. कई दुकानें और कारखाने बंद हो गए हैं. छोटे-मोटे अखबार भी बंद हो गए हैं. कई बड़े अखबारों को पिछले साल भर में इतने कम विज्ञापन मिले हैं कि उनकी पृष्ठ संख्या घट गई, पत्रकारों का वेतन आधा हो गया और लेखकों का पारिश्रमिक बंद हो गया.

राष्ट्र का कोई काम-धंधा ऐसा नहीं है, जिसकी रफ्तार धीमी नहीं हुई है लेकिन सरकार की जेबें फूल रही हैं. उसका विदेशी-मुद्रा भंडार लबालब है, जीएसटी और टैक्स बरस रहा है, उसके नेताओं और कर्मचारियों को किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं है लेकिन आम आदमी अपनी रोजमर्रा की न्यूनतम जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहा है.

कोरोना की महामारी के दौरान शहरों के मध्यमवर्गीय परिवार तो बिल्कुल लुट-पिट चुके हैं. अस्पतालों ने उनका दीवाला पीट दिया है. यह ठीक है कि भारत सरकार ने गरीबी-रेखा के नीचेवाले 80 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न की व्यवस्था कर रखी है लेकिन आदमी को जिंदा रहने के लिए खाद्यान्न के अलावा भी कई चीजों की जरूरत होती है.

पेट्रोल और डीजल के दाम सुरसा के बदन की तरह बढ़ गए हैं. उनके कारण हर चीज महंगी हो गई है. गांवों में शहरों के मुकाबले महंगाई की मार ज्यादा सख्त है. महंगाई पर काबू होगा तो लोगों की खपत बढ़ेगी. खपत बढ़ेगी तो उत्पादन ज्यादा होगा, अर्थव्यवस्था अपने आप पटरी पर आ जाएगी.

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here