टीका उत्सव से लेकर सेवा सप्ताह तक

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कोरोना के दूसरे लहर के भीषण प्रकोप के लगभग एक पखवाड़े के बाद भाजपा और संघ के बौद्धिक रणनीतिकारों ने सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों के पटल पर एक मुहिम की शुरुआत की जिसका नाम दिया सकारात्म सोच। निश्चित तौर पर सकारात्मकता अच्छी चीज है, जीवन में बेहतर करने के लिए सकारात्मक होना और परिस्थितियों के बारे में आशावादी दृष्टिकोण जरूरी है। देश में महामारी के वर्तमान संकट के समय सकारात्मक सोच को जिस दृष्टिकोण में प्रस्तुत किया जा रहा उस नीयत पर सवाल खड़ा हो रहा है। जब किसी के परिजन को कोरोना से दवा औरइलाज न मिलने के कारण मौत हुई हो, जब किसी को अपने मां- बाप, भाई-बहन, पुत्र को लेकर अस्पताल दर अस्पताल बेड के लिए भटकने के बाद भी बेड न मिला हो और आंखों के सामने बिना इलाज के तड़पते हुए परिजन की मौत का मंजर हो तब उससे आशावादी दृष्टिकोण की बात करना न सिर्फ बेमानी है, अमानवीय भी है। सकारात्मक सोच की मुहिम चलाने वाले यही कर रहे हैं।

जब देश के आधा दर्जन राज्यो में ऑक्सीजन की कमी हो, राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए हाईकोर्ट को लगातार केंद्र के अधिकारियों को फटकार लगानी पड़ी हो, जब बत्रा हॉस्पिटल जैसे प्रख्यात चिकित्सा संस्थान के निदेशक यह कहें कि उनके पास सिर्फ दो घंटे की ऑक्सीजन बची है। जब गंगा में अनगिनत शव बहाने की मजबूरियां हों उस समय सकारात्मकता की विचार गोष्ठियां जले पर नमक छिड़कने से ज्यादा वीभत्स और क्रूर लग रही थीं। प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को टीका लगाया जाएगा। इस घोषणा के पहले किसी भी प्रकार का होमवर्क नहीं किया किया गया। इतने बड़े पैमाने पर टीके कहां से आएंगे? देश में टीकों की कुल उत्पादन क्षमता कितनी है? टीकाकरण के लिए आतुर सभी लोगों के लिए वैक्सीन कैसे और कब मिलेगा कोई कार्य योजना नहीं।

इन सारे सवालों के बीच वैक्सिनेशन की घोषणा के साथ मोदी जी ने टीका उत्सव मनाने की घोषणा भी कर दी। प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार भाजपाई देशभर में नाच-गाकर टीका उत्सव मनाने लगे लेकिन यह उत्सव भी औपचारिकता मात्र बन कर रह गई क्योंकि वैक्सीन के अभाव में देश के अधिकांश राज्यों में टीकाकरण शुरू नहीं हो पाया, जहां शुरू भी हुआ, वहां भी दो चार दिनों में बन्द हो गया। टीकाकरण संबंधी केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट के सवाल और कोर्ट में दी गई दलीलों के साथ कोर्ट की टिप्पणियां मोदी सरकार को टीकाकरण नीति और नीयत दोनों को कठघरे में खड़ा करते हैं।

ऑक्सीजन की कमी से लेकर टीकाकरण के मामले में देश के विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जितनी फटकार पिछले कुछ दिनों में मोदी सरकार को लगाई गई आजादी के बाद शायद ही किसी भी सरकार को कोर्ट में इतनी नकारात्मक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा होगा। इतनी छीछालेदर और विफलता के बाद भी यदि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को देश भर में गांव-गांव जाकर मोदी सरकार की उपलधियां बताने भेज रही तो यह भाजपा नेतृव की 2004 वाली फील गुड और इंडिया शाइनिंग वाले मुगालते की पुनरावृात्ति है या फिर सब कुछ जानने-समझने के बाद भी मोदी सरकार की विफलता पर पर्दा डालने की संघ और भाजपा की कोशिश। कृत्रिम मायाजाल बुनकर हकीकत से ध्यान भटकाने की प्रयोगधर्मिता में भाजपा और उसके पितृ संगठन को महारथ हासिल है।

-सुशील आनंद शुला

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