मोदी सरकार नेधान समेत अन्य खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी में बढ़ोतरी करके किसानों को खुश करने की जो कोशिश की है, उसका मूल मकसद तो किसी तरह से किसान आंदोलन को ख़त्म करना ही है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि एमएसपी को तो सरकार अमूमन हर साल ही बढ़ाती है, तो फिर क्या किसान सिर्फ इस एक बात को मानकर अपना आंदोलन खत्म कर देंगे?
किसानों के तेवरों से तो नहीं लगता कि वे अपनी शर्तों से पीछे हटने को तैयार हो जाएंगे. लेकिन यह भी सच है कि सरकार चाहे कोई भी हो, उसकी पहली प्राथमिकता यही होती है कि उसके ख़िलाफ़ होने वाले किसी भी आंदोलन को हर मुमकिन तरीके से पहले कमजोर किया जाए. लिहाज़ा सरकार को लगता है कि एमएसपी की कीमतें बढ़ाने से आंदोलनकारी किसानों के बीच कुछ फूट अवश्य ही पड़ेगी क्योंकि हर किसान चाहता है कि उसे अपनी फसल का अच्छा मूल्य मिले.
ऐसे में,आम किसान यह सोचने पर मजबूर होगा कि जब सरकार यह वचन दे चुकी है कि तीन कृषि कानून लागू होने के बाद भी एमएसपी की व्यवस्था और सरकारी खरीद जारी रहेगी और आज एमएसपी भी बढ़ा दी गई, तो फिर इस आंदोलन को लंबा खिंचने का भला क्या मतलब है. लेकिन सरकार और किसानों के बीच एक पेंच ऐसा फंसा हुआ है,जिस पर सरकार ने अभी तक कोई गारंटी नहीं दी है और किसान उस पर अड़े हुए हैं.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक़ उनकी अहम मांगों में से एक है कि “सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर ख़रीद को अपराध घोषित करे और एमएसपी पर सरकारी ख़रीद लागू रहे.” अब सरकार ने एमएसपी बढ़ाकर यह तो साबित कर दिया कि सरकारी खरीद जारी रहेगी लेकिन वह कम कीमत पर खरीद को अपराध घोषित नहीं करना चाहती. यही वो पेंच है जिसके कारण किसान डरे हुए हैं कि अपराध न होने की सूरत में बड़े पूंजीपति अपने हिसाब से ओने-पौने दाम पर फसलों की खरीद करेंगे जिससे उन्हें खासा नुकसान होगा. हालांकि किसानों की शंका दूर करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार ट्वीट कर चुके हैं.
एमएसपी पर प्रधानमंत्री ने पिछले साल 20 सितंबर को अपने ट्वीट में कहा था कि “मैं पहले भी कह चुका हू और एक बार फिर कहता हूं, MSP की व्यवस्था जारी रहेगी, सरकारी ख़रीद जारी रहेगी. हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं. हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे.”
उसके बाद 30 नवंबर 2020 को उन्होंने दोबारा एक ट्वीट किया,जिसमें लिखा था कि “MSP तो घोषित होता था लेकिन MSP पर खरीद बहुत कम की जाती थी. सालों तक MSP को लेकर छल किया गया. किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्जमाफी के पैकेज घोषित किए जाते थे लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक ये पहुंचते ही नहीं थे.यानि कर्ज़माफी को लेकर भी छल किया गया.” लेकिन किसान नेताओं को पीएम की इन बातों पर भी ऐतबार न होने से यही लगता है कि उनका आंदोलन खत्म होने के आसार कम ही हैं. एक अनुमान के अनुसार देश में केवल 6 फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता है, जिनमें से सबसे ज्यादा किसान पंजाब हरियाणा के हैं. और इस वजह से नए बिल का विरोध भी इन इलाकों में ज्यादा हो रहा है.
नरेन्द्र भल्ला
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार हैं)