सोशल मीडिया कंपनियों को भारत सरकार के कानून व नियमों को मानना ही होगा। यदि विदेश की सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में काम करना है, तो सरकार के नियमों का समानपूर्वक पालन करना होगा। यह नहीं हो सकता कि किसी को भारत का बड़ा बाजार भी चाहिए और यहां के नियमों में छूट भी चाहिए। किसी भी अगर-मगर के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। भारत सरकार को सोशल मीडिया कंपनियों के पेंच कराने ही चाहिए। यह पहले ही होना चाहिए, जब कंपनी भारत में आई थी। व्हाट्सएप जिस तरह प्राइवेसी पॉलिसी के नाम पर लोगों से अनुचित सहमति कासित कर रही है, उस पर नकेल जरूरी है। मारको लॉगिंग साइट ट्विटर का भारत सरकार के नए नियमों को मानने से इनकार करना एक संप्रभु राष्ट्र की अवज्ञा करना है। भारत सरकार की चेतावनी सटीक है कि ट्विटर भारतीय कानून को माने, नहीं तो वह सख्त कार्रवाई करेगी। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और संघ प्रमुख मोहन भागवत के अकाउंट से बलू टिक हटाना दिवटर का एक कदम नहीं था।
उपनाष्ट्रपति के पर्सनल अकाउंट पर ट्विटर की सफाई कि जुलाई 2020 से अकाउंट को लॉगइन नहीं किए जाने के कारण ऐसा हुआ है, पचने वाली बात नहीं है। दिवटर विवाद किसान आंदोलन से जुड़ा हुआ है। गणतंत्र दिवस पर किसानों ने टै्रक्टर परेड निकाली थी। उस दौरान ऐतिहासिक लाल किले पर हिंसा हुई थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिवटर को 1100 अकाउंट लॉक करने और कई विवादित अकाउंट हटाने के निर्देश दिए थे। दिवटर ने कुछ अकाउंट लॉक कर दिए और विवादित है। टैग हटा दिए, लेकिन बाद में कई अकाउंट फिर से बहाल दिया। कुछ समय बाद भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के कांग्रेस टूलकिट पर ट्विटर की जवाबी प्रतिक्रिया ने सरकार व ट्विटर के बीच विवाद को और गहरा कर दिया। सोशल मीडिया कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट भारतीय नियमों के अनुसरण की हिदायत दे चुके है। फेसबुक, वहास्ट्सएप व ट्रिवटर के लाखों यूजर भारत में हैं। गूगल भी खुद को सर्च इंजन बताकर भारतीय आईटी कानून को मानने में अपनी आनाकानी कर चुकी है, हालांकि केंद्र सरकार के सख्त रवैये के बाद गूगल ने भारतीय कानून मानने परनामी भरी है। कायदे से इन कंपनियों को भारत में अपना सर्वर रखने, शिकायत अधिकारी नियुक्त करने और भारतीय राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक ताने-बाने का नुकसान नहीं पहुंचाने की शर्त पर ही काम करने दिया जाना चाहिए।
एक तो 80 के दशक से शुरू इंटरनेट क्रांति में भारत बहुत पिछड़ गया है, जब यूरोप-अमेरिका अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे थे। हम केवल उपभोक्ता बने थे। 21वीं सदी डिजिटल व नैनो टेक्नोलॉजी अर्थव्यवस्था की है, जिसमें इंटरनेट स्टोरेज, क्लाउड कंप्युटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थाट बनैनो साइंस के क्षेत्र में निवेश करने वाले देश फायदे में रहेंगे। दुर्भाग्य से भारत के नीति नियंता दुरदी नहीं साबित हुए हैं, हालांकि आज भी पर्याप्त अवसर है। अभी सरकार को अपनी नीतियों में डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारी निवेश करना चाहिए। अगर हमें आत्मनिर्भर बनना है तो हमें फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, गूगल जैसे कंपनियां भारत में शुरू करनी होगी। भारतीया प्रतिभाओं के दम पर ही ये कंपनियां फली-फूली हैं। भारत जैसे विशाल देश के अपने सर्च इंजन होने चाहिए, अपने मायनो लागिंग व सोशल प्लेटफॉर्म होने चाहिए। सरकार को स्वदेशी कंपनियों को आगे बढ़ाना चालिए। हम अपने डाटा को जितना सुरक्षित रख पाएंगे, हम उतना तो मजबूत रहेगे। हमें नॉलेज उपनिवेश से बाहर आना होगा।