कांग्रेस के प्रति शिव सेना का सद्भाव

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भारत की राजनीति में अक्सर दिलचस्प चीजें देखने को मिलती रहती हैं। महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार में शामिल तीन पार्टियों- शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस में जिस तेजी से समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं और इस समय की सबसे दिलचस्प घटना है। पहले लगता था कि शिव सेना हिंदुवादी पार्टी है तो कांग्रेस के साथ उसका तालमेल नहीं बैठेगे, जबकि एनसीपी के नेता शरद पवार पहले कांग्रेस में थे तो उनके साथ सहज तालमेल रहेगा। लेकिन अब उलटा हो रहा है। कांग्रेस और एनसीपी में शह-मात का खेल शुरू हो गया है तो दूसरी ओर कांग्रेस और शिव-सेना में कमाल का सद्भाव देखने को मिला है।

एक तरफ एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और उनकी पार्टी भाजपा विरोधी मोर्चे की कमान कांग्रेस के साथ निकाल कर अपने हाथ में लेने की तैयारी कर रहे हैं तो दूसरी ओर शिव सेना का कहना है कि भाजपा विरोधी मोर्चे की अगुवाई कांग्रेस को ही करनी चाहिए। शिव सेना ने तो तीसरे मोर्चे की संभावना को ही खत्म कर दिया है, जिसके बारे में ममता बनर्जी और दूसरे कई क्षत्रप बात कर रहे हैं। एनसीपी सुप्रीम शरद पवार भी तीसरे मोर्चे की राजनीति में शामिल हो सकते हैं। लेकिन शिव सेना ने दो टूक अंदाज में कहा है कि भाजपा विरोधी मोर्चे में कांग्रेस को अनिवार्य रूप से होना चाहिए। यानी कांग्रेस के बगैर मोर्चा संभव नहीं है। शिव सेना ने यह भी संकेत दिया है कि वह कांग्रेस के साथ रहने वाली है।

इससे पहले शिव सेना के प्रमुख और राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही देश की जंग में भी कांग्रेस पार्टी और गांधी-नेहरू के योगदान की तारीफ की। जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी बात हुई थी और मोदी ने उद्धव के काम की तारीफ की थी उसी दिन उन्होंने कहा था कि देश गांधी-नेहरू के बनाए सिस्टम के सहारे ही कोरोना वायरस का मुकाबला कर पा रहा है। यह बहुत बड़ी बात थी, जो अब तक कांग्रेस के नेता कह रहे थे। कांग्रेस के पुराने सहयोगी भी ऐसी बात नहीं कह रहे थे पर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस नेतृत्व को एकदम खुश कर दिया।

संदीप दीक्षित से भाजपा की उम्मीद: दिल्ली में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित से भाजपा ने कुछ उम्मीदें बांध रखी है। जब से संदीप दीक्षित कांग्रेस की सक्रिय राजनीति से दूर हुए हैं तब से भाजपा को उमीद है कि वे एक दिन उनकी पार्टी ज्वाइन करेंगे। पिछले चुनाव से पहले भी इस बात की चर्चा थी कि वे भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ेंगे। वे भाजपा में नहीं गए लेकिन कांग्रेस की टिकट पर भी चुनाव नहीं लड़े। इससे भी भाजपा की उम्मीदें बढ़ीं। अब फिर भाजपा के नेता उनके ऊपर डोरे डाल रहे हैं। भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख और पिछले कुछ दिनों से पार्टी प्रवक्ता की मुखर भूमिका निभा रहे अमित मालवीय ने संदीप दीक्षित का एक वीडियो ट्विट किया है। संदीप दीक्षित इस वीडियो में आम आदमी पार्टी के कोरोना प्रबंधन की पोल खोल रहे हैं।

उन्होंने बहुत विस्तार से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की कमियां बताई हैं। इसका दूसरा पहलू यह है कि संदीप अपनी इस वीडियो में एक तरह से केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे रहे हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से लेकर दूसरी तमाम परेशानियों में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है। तभी भाजपा की आईटी सेल के मुखिया ने उनकी वीडियो शेयर की, वरना केजरीवाल सरकार की पोल तो अजय माकन भी खोल रहे हैं और वे भी वीडियो डाल रहे हैं। बहरहाल, इस नई वीडियो के बाद नए सिरे से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि संदीप दीक्षित क्या करेंगे। असल में भाजपा को दिल्ली में एक गंभीर और साख वाले चेहरे की जरूरत है। संदीप दीक्षित ब्राह्मण और प्रवासी दोनों कसौटी पर सही बैठते हैं। सो, भाजपा उन्हें अपने साथ लाने के प्रयास करती रहेगी।

उनके भाजपा में जाने से शीला दीक्षित की विरासत भी ट्रांसफर होने की उमीद की जा रही है। रूड़ी अचानक यों आए निशाने पर: भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी अचानक निशाने पर आ गए हैं। उनके खिलाफ सोशल मीडिया में खूब प्रचार हो रहा है। बिहार के आपराधिक छवि वाले पूर्व सांसद पप्पू यादव ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें रूड़ी के चुनाव क्षेत्र में स्थित उनके कार्यालय के बाहर दर्जनों एंबुलेंस ढक कर खड़ी रखी गई थी। उससे पहले पप्पू यादव ने एक वीडियो में यह भी दिखाया कि एंबुलेंस में रेत की ढुलाई हो रही है। उसके बाद से दस तरह की कहानियां चर्चा में हैं। सांसद निधि से एंबुलेंस खरीदने से लेकर उसे चलवाने में होने वाली हेरा-फेरी तक की बातें लोग बता रहे हैं। ये सारी बातें अपनी जगह हैं पर सवाल है कि अचानक रूड़ी पर फोकस क्यों बना?

ध्यान रहे रूड़ी पिछले काफी समय से चर्चा से बाहर थे। उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया। उनको पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता जरूर बनाया गया लेकिन उस नाते भी टेलीविजन पर उनकी उपस्थिति बहुत कम दिखती है। पिछले दिनों जब भाजपा पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई तो टेलीविजन पर पार्टी का पक्ष रखने के लिए रूड़ी को उतारा गया। उन्होंने बहुत कायदे से पार्टी का बचाव किया। इस बीच यह भी खबर उडऩे लगी कि उनकी केंद्र सरकार में वापसी हो सकती है। जिस तरह से उनके दोस्त सैयद शाहनवाज हुसैन का मुख्यधारा में पुनर्वास हुआ है वैसा ही उनका भी होगा। तभी अचानक यह एंबुलेंस कांड सामने आ गया। जानकार सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे भाजपा के ही ऐसे लोग हैं, जो शुरू से रूड़ी विरोधी रहे हैं और नहीं चाहते हैं कि रूड़ी को पार्टी की मुख्यधारा में जगह मिले। ऐसे नेताओं ने ही पप्पू यादव को वीडियो उपलब्ध कराए हैं। इस खेल में कुछ बड़े नेता भी शामिल हैं। कैप्टेन बनाम सिद्धू की लड़ाई में आगे या: क्रिकेटर से नेता बने पंजाब सरकार के पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू क्या करेंगे?

वैसे तो राजनीति में किसी संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है लेकिन अभी ऐसा लग रहा है कि कैप्टेन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच समझौता होने की संभावना नहीं है। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया है कि पैचअप की संभावना खत्म हो गई है। कैप्टेन ने खुल कर सिद्धू की आलोचना की और यहां तक कह दिया कि वे जाएंगे कहां, उनको तो भाजपा वाले भी नहीं लेंगे और न अकाली दल वाले लेंगे। तभी इस संभावना पर चर्चा होने लगी है कि क्या सिद्धू आम आदमी पार्टी के साथ जा सकते हैं या अपनी पार्टी बना सकते हैं? हालांकि अब विधानसभा चुनाव में समय इतना कम रह गया है कि वे कोई भी क्रांतिकारी कदम उठाने की स्थिति में नहीं हैं। तभी यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस उनको प्रदेश की राजनीति से निकाल कर दिल्ली ला सकती है। हालांकि यह भी इस बात पर निर्भर करेगा कि सिद्धू इसके लिए तैयार होते हैं या नहीं। कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि अगर राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बन जाते हैं तो सिद्धू को उनकी टीम में शामिल किया जा सकता है।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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