कोरोना वायरस: मृत्यु को लेकर यमराज का मंथन

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यमराज मुर्दो की बैठकर रहे थे। वे जानना चाह रहे थे कि उनके पास इतने मुर्दे अचानक कैसे से आ रहे हैं। वे अपने मातहत कर्मचारियों और मुर्दो से पूछ रहे थे कि वे आखिर इतनी बड़ी संख्या में यों और कैसे आ रहे हैं। इससे पूर्व उनके पास आने वालों की संख्या कम होती थी। इसी के आधार पर वे स्वर्ग और नरक का निपटारा करते थे। मुर्दो की संख्या के आधार पर ही उनके पास कर्मचारियों की भी संख्या है। तभी एक मातहत कर्मचारी ने उन्हें बताया कि महाराज ज्यादातर मुर्दे कोरोना महामारी की वजह से यहां आ रहे हैं। कुछ लोग कोरोना के डर से मौत के शिकार हुए हैं तो कुछ लोग लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण। यह सुनकर यमराज दंग रह गए। वे बोले जिन राज्य से ये लोग आ रहे हैं वहां की सरकारों ने लगता है इन्हें बचाने का कोई प्रयास नहीं किया।

उन्होंने सोचा उनकी धरती का बोझ उतर गया। तभी एक अर्दली राज्यों की सूची लेकर आया और यमराज को दिखाने लगा। कहा सर कई राज्यों ने मौत के जो आंकड़े जारी किए हैं। उससे ज्यादा संख्या में हमारे पास मुर्दे हैं। इससे जाहिर होता है कि या तो ये मुर्दे सरकारी योजनाओं को धता बताकर हमारे पास आ गए हैं या सरकार खुद मौत के आंकड़ों को छिपा रही है। तभी एक मुर्दे ने कहा महाराज मैं तो घर पर ही कोरोना की मौत मरा था, लेकिन चिकित्सकों ने मेरा जो डेथ सर्टिफिकेट जारी किया उसमें लिखा है कार्डियाक अरेस्ट। इऊपर से जो लोग मर रहे हैं उनके आंकड़े भी छिपा रही है। सरकारें सोचती हैं कि अपनी अव्यवस्था का ठीकरा यमराज पर फोड़ दो ताकि लोग यमराज को कोस कर रोते रहें।

लोग कहें कि कोरोना की वजह भी यमराज हैं। आखिर मेरे पास भी तो मुर्दो को रखने के लिए जगह कम है। मुझे तो लगता है कि स्वर्ग और नरक के अलावा कोई अन्य जगह की तलाश करनी होगी ताकि इतने मुर्दो को रखा जा सके। इसी बीच एक दूसरा मुर्दा खड़ा हो गया और कहा महाराज मैं तो श्मशान में मुर्दो की सूची तैयार करते हुए यहां तक पहुंच गया। सरकार ने मुझे मुर्दो की सूची तैयार करने का जिख्मा सौंपा था, लेकिन महंगाई डायन की तरह कोरोना डायन मुझे भी निगल गई। मैंने ऑक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़पकर जान दे दी, लेकिन मुझे ऑक्सीजन नहीं मिली। इस पर यमराज ने अफसोस जाहिर किया और अपने अर्दली को कहा कि आज ही ट्विट कर दो कि राज्य सरकारें कोरोना की मौत पर हवाबाजी न करें बल्कि मरीजों को हवा उपलध कराएं। हवा है तो लोग हैं। लोग हैं तो सरकारें हैं।

नवेन्दु उन्मेष
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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