समय से पहले जीत का जश्न

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वायरस हमारे शरीर में घुस रहा है, हजारों को लील रहा है, कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली को कुचल रहा है, डॉक्टरों, नर्सों, दवाओं और यहां तक कि ऑक्सीजन की भारी किल्लत हो गई है। संकट गहराने के साथ-साथ एकजुट होने की मांग बढ़ती जाएगी। लेकिन लोकतंत्र में न तो राजनीति रुकती है, न ही राजनीतिक विश्लेषण और सवालों की बौछार।

किसी भी लोकतंत्र में सशक्त नेता कुछ चीजें कभी नहीं करते। मसलन वह कभी असफलता या ऐसे किसी झटके को स्वीकार नहीं करते जो हार की तरह नजर आता हो। उसका आखिरी मुकाम जीत के रूप में ही सामने आना चाहिए और बतौर मास्टर स्ट्रोक उसकी सराहना होनी चाहिए। पिछले हफ्ते के शुरू में प्रधानमंत्री ने इस दिशा में तीन असामान्य बदलाव किए। राष्ट्र के नाम उनका संक्षिप्त टेलीविजन संबोधन निराशाजनक था।

दूसरा, यह कि मनमोहन सिंह के एक छोटे से पत्र ने सरकार को झकझोर दिया, यह बात इससे भी जाहिर है कि स्वास्थ्य मंत्री ने इस पर आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं दी। ऐसा करना सामान्य होता। लेकिन बात ये है कि अगले ही दिन सरकार ने टीकाकरण पर कमोबेश वही घोषणाएं कीं, जिसका सुझाव मनमोहन सिंह ने दिया था। यह एक मजबूत सरकार की तरफ से उठाया गया कदम नहीं था। और तीसरा, प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल में अपने अभियान का अंतिम चरण रद्द कर दिया।

मैं यहां जनवरी में विश्व आर्थिक मंच, दावोस में प्रधानमंत्री का संबोधन साझा कर रहा हूं। मोदी ने कहा था- ‘जब महामारी शुरू हुई तो दुनिया भारत के बारे में इतनी चिंतित थी, जैसे संक्रमण की सुनामी हमारे यहां आने वाली है। लोग भविष्यवाणी कर रहे थे कि 70-80 करोड़ भारतीय संक्रमित होंगे और 20 लाख से अधिक मरने वाले हैं।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन भारत ने ऐसा नहीं होने दिया और मानवता को आपदा से बचा लिया।’

उन्होंने बताया कि कैसे कुछ ही समय में भारत ने अपनी क्षमताओं को बढ़ा लिया, दो ‘मेड इन इंडिया’ वैक्सीन के साथ दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम लॉन्च किया जा चुका है और भारत अब इनका निर्यात करके दुनिया को बचाने के लिए आगे आया है।

फरवरी में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा पारित प्रस्ताव को देखिए। यह वायरस के खिलाफ जीत का ऐलान था। इसमें लिखा था, ‘गर्व के साथ कहा जा सकता है कि भारत ने न केवल प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कोविड को हरा दिया है, बल्कि अपने सभी नागरिकों को आत्मनिर्भर भारत बनाने के प्रति विश्वास से भी भर दिया है। पार्टी कोविड के खिलाफ जंग के मामले में भारत को दुनिया के सामने एक गौरवशाली और विजेता देश के रूप में पेश करने के लिए निर्विवाद रूप से अपने नेतृत्व को सलाम करती है।’

इसमें कहा गया कि ‘दुनिया ने भारत की उपलब्धि को सराहा है और साथ ही ताली और थाली बजाने, दीये जलाने, अस्पतालों पर फूलों की बारिश जैसी गतिविधियों की अपील की भी प्रशंसा की है।’ साथ ही जोड़ा कि भारत ने खासकर ‘वैक्सीन विक्ट्री’ और ‘कोविड पर पूरी तरह काबू पाने की दिशा में बढ़ने’ के साथ अपना कद काफी बड़ा कर लिया है।’

अगर हम इस तरह जश्न मनाने में न डूबे होते तो शायद आने वाले संकट को देख पाते और उससे निपटने की बेहतर तैयारी करते। सुधार की कोशिशें जारी हैं। लेकिन फिर भी लोगों की जानें बचाई जा सकती थीं, अगर हम टीकाकरण को बेहतर गति से आगे बढ़ाते, समय पर ऑर्डर जारी करते, ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं की कमी न होने देते। मोदी को, ब्रिटेन में जैसा बोरिस जॉनसन ने महामारी को कुचलने के लिए तेज गति से टीकाकरण किया, वैसा करने की जरूरत है।

शेखर गुप्ता
(लेखक एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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