पारंपरिक ज्ञान यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ‘लघु सरकार का युग’ और निरंकुश मुक्त बाजार पूंजीवाद को खत्म कर रहे हैं, जो रोनाल्ड रीगन और मार्गरेट थेचर के दौर से चल रहा है। लेकिन वह युग मिथक है। 1980 से सरकारी खर्च स्थिर बना हुआ है, भले ही अमेरिका, यूके और अन्य विकसित देशों में इसकी जीडीपी में हिस्सेदारी थोड़ी बड़ी हो। घाटा दुर्लभ से सामान्य हो गया है। विकसित देशों में सार्वजनिक ऋण बढ़ा है।
अमेरिका में तो जीडीपी का 120% हो गया है। सरकार अब ज्यादा बड़ी और हस्तक्षेप करने वाली हो गई है। सरकार की आर्थिक भूमिका घाटे और कर्ज से आगे निकल गई है। अमेरिका में जनकल्याण पर खर्च 1980 से 2020 के बीच 10% से बढ़कर जीडीपी के 17% तक पहुंच गया है। कल्याणकारी राज्य लगातार बढ़ा है।
इधर नियामक राज्य भी बढ़ा है। अमेरिकी नियामक एजेंसियों पर खर्च रीगन के बाद से हर राष्ट्रपति के शासन में बढ़ा। ऐसा ही ट्रेंड यूके में रहा। कॉर्पोरेट बेलआउट मानक प्रक्रिया हो गए हैं। महामारी के दौरान, बेलआउट लगभग हर उस कंपनी को दिया, जिसने आवेदन किया। विकसित देशों में सरकारों ने जीडीपी के हिस्से के रूप में वित्तीय प्रोत्साहन जारी किए।
अमेरिका में यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद रिकॉर्ड वित्तीय प्रोत्साहन है। यह मानना भी मुश्किल है कि केंद्रीय बैंक भी ‘बिग गवर्नमेंट’ का हिस्सा नहीं हैं। सरकारें केंद्रीय बैंक की मदद के बिना घाटे व कर्ज को इतनी तेजी से नहीं बढ़ा सकतीं। पिछले साल मैंने गणना की थी कि वित्तीय और मौद्रिक प्रोत्साहन अमेरिका में जीडीपी के 28% तक और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में औसतन 40% तक पहुंच गया था, जो रिकॉर्ड है।
तो यह लघु या कमजोर सरकार का मिथक क्यों बढ़ रहा है? कहानी आमतौर में विचारों के इतिहास में बताई जाती है, जो रीगन और थैचर के शासन में अविनियमन, कर कटौती, निजीकरण से लेकर राज्य विरोधी नीति तक जाते हैं। उनके बाद आए टोनी ब्लेयर और बिल क्लिंटन से लेकर ओबामा तक को उनका अनुसरणकर्ता बताया जाता है, जिन्होंने ‘नवउदारवादी’ विचारधारा को दुनिया में फैलाने में मदद की। नवउदारवादी सोच ने नीति को आकार देने के कई घटनाक्रमों को एकसाथ बुनकर टिप्पणीकारों ने स्थिर सरकार के पीछे हटने की तस्वीर बनाई।
लेकिन कुछ सरकारी कंपनियों के निजीकरण को छोड़कर, मुक्त बाजार के विचार ने राज्य के महत्व को कम नहीं किया। कई रिपब्लिकन्स ने रीगन के मत को दोहराया कि ‘सरकार ही समस्या है’ लेकिन उनका मुख्य समाधान कर कटौती रहा है, जो खर्च कटौती से मेल नहीं खाता। 1980 के बाद से क्लिंटन को छोड़कर हर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट राष्ट्रपति ने हर साल घाटा दिखाया है।
सरकारों के पीछे हटकर बाजार को आजाद भागने देने का मत स्टॉक और बॉन्ड की बेलगाम कीमतों से भी प्रभावित है। वैश्विक स्टॉक्स और बॉन्ड की कीमत 1980 में 12 ट्रिलियन डॉलर थी, अब 370 ट्रिलियन डॉलर है। लेकिन इस बढ़त के पीछे अविनियमन के रूप में सरकार का पीछे हटना कम और बेलआउट तथा केंद्रीय बैंकों से आसान पैसे के रूप में राज्य की मदद ज्यादा है।
मुक्त बाजार विचारधारा ने कभी समाजवादी रहे चीन, भारत और यूरोप को बदला है, जहां राज्य अब 40 वर्ष पहले की तुलना में कम आर्थिक भूमिका निभाते हैं। लेकिन इस वास्तविकता ने यह गलतफहमी बढ़ाई है कि सरकारें हर जगह से पीछे हट रही हैं।
अब बाइडेन समर्थक उस लघु सरकार के युग को खत्म करने पर सराहना कर रहे हैं, जिसकी पकड़ कभी अमेरिका पर थी ही नहीं। कई ट्रिलियन डॉलर के खर्च के पैकेज और नए नियमन आदि की बाइडेन की योजनाएं बताती हैं कि वे बहुत सुधारवादी राष्ट्रपति हैं। लेकिन ये योजनाएं अंत नहीं बतातीं। वे बताती हैं कि ‘बिग गवर्नमेंट’ में तेजी आ रही है।
रुचिर शर्मा
(लेखक और ग्लोबल इंवेस्टर हैं ये उनके निजी विचार हैं)