जहां कुछ लोगों को कोरोना की दूसरी और पहली लहर के दौरान ज्यादा नींद मिली, वहीं कुछ की नींद और कम हो गई। आंकड़े बताते हैं कि 40% वयस्क हफ्ते में कम से कम एक बार नींद के लिए संघर्ष करते हैं। फिर मेरे जैसे लोग हैं जो सो तो आसानी से जाते हैं लेकिन सुबह 3 बजे उठ जाते हैं। अगर सोने के लिए लेटते ही विचारों में डूब जाते हैं तो आप अकेले नहीं हैं। टेक्सास की बेलर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक इसका मुख्य कारण एंग्जायटी है। आप सोने की जितनी कोशिश करेंगे, उतनी मुश्किल होगी और आप उतने ही चिंतित होंगे।
ब्रिटेन में करीब 36% युवा और वयस्क समय पर सोने में संघर्ष करते हैं। वहां के युवाओं का तनावग्रस्त होने का शायद यही कारण है। यूके में बीबीसी का हिस्सा, ‘रेडियो 1 रिलेक्स’ ने कार्यक्रमों का 24 घंटे का ऐसा शेड्यूल शुरू किया है जो मिलेनियल और जेन ज़ेड श्रोताओं को आराम पाने में मदद कर रहा है। इसमें लो-फाई म्यूजिक, सेहत के सुझाव और स्लीप स्केप (नींद लाने वाले संगीत, ध्यान, बातें आदि) शामिल हैं। स्टेशन पर रोजाना एक घंटे एएसएमआर (ऑटोनोमस सेंसरी मेरिडियन रिस्पॉन्स जो यूट्यूब पर काफी मशहूर है) भी आता है, जिसमें सुकून देने वाली आवाजें दोहराते हैं, जैसे फुसफुसाहट, जो मस्तिष्क में सिहरन पैदा करती है। जिन्हें नींद नहीं आती, वे दो घंटे ‘डीप स्लीप स्केप’ सुनकर नींद ला सकेंगे।
अगर आप इनमें से किसी भी श्रेणी में आते हैं तो आगे पढ़ें। सबसे पहले यह मिथक भूलें कि उम्र के साथ नींद की जरूरत कम होती है। हमारी नींद की जरूरत कम नहीं होती, बल्कि वयस्कता की शुरुआत में काफी हद तक जीवनभर के लिए तय हो जाती है। हालांकि कॅरिअर के आधार पर हमारी नींद का पैटर्न बदल सकता है। मुख्यतः आपको 85 की उम्र में भी उतनी ही नींद जरूरी है, जितनी 25 की उम्र में।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि हम बिस्तर पर जाने से पहले जानकारी का बोझ कम करना शुरू करें। न सिर्फ टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाली किताबें भी सोने की क्षमता प्रभावित कर सकती हैं। अगले दिन के लिए ‘टू-डू’ लिस्ट बनाने से मदद मिल सकती है। इसमें तनाव लगे तो आप ‘पूरे हुए कार्यों’ की सूची बना सकते हैं। इससे जल्दी सोने में मदद मिलेगी क्योंकि आपका दिन संतोषजनक लगेगा। धीरे-धीरे यह संतुष्टि ‘टू-डू’ लिस्ट बनाने की ओर ले जाएगी।
मीनोपॉज (रजोनिवृत्ति) से गुजरते हुए या इसके बाद महिलाओं में खराब नींद के लिए अक्सर हार्मोन को दोष दिया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक रजोनिवृत्ति में खराब नींद का संबंध सीधे हार्मोन्स से नहीं होता, बल्कि शारीरिक तापमान बदलने से होता है, जो हार्मोन से प्रभावित हो सकता है। चूंकि शरीर को नींद के लिए गर्मी छोड़ना जरूरी है, विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सोने से पहले भारी खाना या शराब न लें और भारी एक्सरसाइज न करें।
मासट्रिश्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने पाया कि आम आबादी की तुलना में महिलाओं में लंबे समय तक अस्थिर या टुकड़ों में नींद से हृदय रोगों की आशंका दोगुनी हो सकती है। अन्य शोध के मुताबिक 30% लोग, जो रोजाना 6 घंटे से कम सोते हैं, उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में डेमेंशिया जल्दी होने की आशंका है। फंडा यह है कि गहरी नींद मायने रखती है। सुनिश्चित करें कि यह आपके शरीर को मिले ताकि बुढ़ापे में मस्तिष्क स्वस्थ बना रहे।
एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)