बिन मौसम मल्हार गा रहे हैं हमारे जिम्मेदार लोग। ऐसा करना उनकी मजबूरी है। वादे झूठे हों तो दावे भी झूठे रखना पड़ते हैं। लोगों को साफ-साफ दिख रहा है कि क्या हो रहा है और क्या होने जा रहा है। रावण को उसके निकट के लोग कहा करते थेलंकेश, अब अवधेश होने का समय आ गया। इसका मतलब था- बहुत हो गया, अब थोड़ा राम जैसा आचरण करो। रावण पूरे समय माया रच रहा था। मानने को तैयार ही नहीं था कि हालात मेरे हाथ से निकल चुके हैं। राम की विशेषता थी स्थिति को स्वीकार कर लेना। लक्ष्मण को जब शक्ति लगी, हालात ऐसे बन चुके थे कि राम का पक्ष हार जाएगा, तो वे रोए।
राम का रुदन इस बात की स्वीकृति थी कि कहीं कोई चूक हो गई है। राम ने यथार्थ स्वीकार किया, रावण पूरे समय माया रचता रहा। आज कोरोना को लेकर भी ऐसा ही सब चल रहा है। जिम्मेदार लोग वास्तविकता स्वीकार करने को तैयार ही नहीं। देश के किसी भी प्रदेश का दृश्य देख लीजिए। सरकारी आंकड़े बताते हैं चार मौतें हुईं, पर जलते चालीस शव हैं। यह माया है। हमारे जीवन की नदी दो किनारों के बीच बहती है। एक किनारा चेतन है, दूसरा जड़ है। एक परमात्मा का, दूसरा संसार का है। समय आ गया है। परमात्मा की तरफ वाले किनारे पर चलिए, सच को स्वीकार करिए। यही शक्ति बनकर आपकी मदद करेगा।
पं. विजयशंकर मेहता