अब ज्यादा कहानियां सुनाने के अवसर

0
235

पिछले हफ्ते मुझे एक दर्शक का ई-मेल मिला, जिसने त्रिभंगा फिल्म देखी थी। उसका कहना था कि फिल्म में काजोल के किरदार को देखकर मुझे ऐसा लगा, जैसे कि मैं अपनी ही शख्सियत को देख रही हूं। इस फिल्म में काजोल ने मां के साथ बेटी का किरदार भी निभाया है। उन्होंने महसूस किया कि वह अपनी जिंदगी की ही कहानी देख रही है। अच्छी कहानी की यही पहचान होती है कि उसमें कहानी के किरदार आपको अपनी जिंदगी से मिलते-जुलते लगते हैं। जब कोई कहानी अपनी कहानी सी महसूस होने लगे तो वही एक अच्छी कहानी की पहचान है।

भारत में मनोरंजन के सुनहरे दौर ने कई संभावनाओं के दरवाजे खोले हैं और कई महिला कहानीकारों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया है। अब ज्यादा से ज्यादा कहानीकार महिलाओं पर केंद्रित कहानियों को लेकर आगे आने लगे हैं। स्ट्रीमिंग सर्विसेज ने महिलाओं की महिलाओं के द्वारा और महिलाओं के लिए कहानियां सुनाने के नए दरवाजे खोले हैं। हमारे पास पहले से ज्यादा कहानियां सुनाने के अवसर हैं। अब पहले से भी ज्यादा दिलचस्प और तरोताजा संदर्भों में कहानियां सुनाई जाने लगी हैं। दुनिया भर में अब इन कहानियों में दिलचस्पी लेने वाले लोग भी सामने आ गए हैं। आखिरकार अच्छी कहानियां कहीं से भी आ सकती हैं और इन्हें कही भी पसंद किया जा सकता है।

भारत में कहानियां सुनाने की शानदार संस्कृति रही है। हमारी कहानियों ने देश के सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन कहानियों ने न केवल मनोरंजन की दुनिया, बल्कि हमारे इर्द-गिर्द की दुनिया में महिलाओं की उभरती हुई भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा को छेड़ दिया है। दिल्ली क्राइम में वर्तिका चतुर्वेदी, सोनी जैसी फिल्म और लेडीज फर्स्ट जैसे वृत्तचित्र महिलाओं को आगे बढ़कर कमान संभलने को प्रोत्साहित करती है।

नीना गुप्ता और मसाबा गुप्ता ‘मसाबा मसाबा’ में हमें बताती हैं, ‘जिंदगी में उलझनें रहना ठीक है।’ या ‘चोक्ड पैसा : बोलता है’ में हमें ऐसी मां की कहानी मिलती है, जो अपना परिवार चलाने के लिए कड़ी मेहनत करती है। स्ट्रीमिंग से अलग-अलग थीम पर आधारित विभिन्न कथाओं को परदे पर कहानीकारों द्वारा लाया जा रहा है। स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर चाहे वह पारंपरिक हो या कोई नया, अनूठा किरदार हो, उनकी पूरी गहराई से दर्शकों के सामने लाने का अवसर मिलता है क्योंकि इसमें कहानीकार अपना फॉर्मेट चुनने में सक्षम होते हैं, जिससे वह जिंदगी के बहुत करीब या असली लगने वाली कहानी पर्दे पर पेश कर पाते हैं। आज निर्माताओं के पास देश के अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग कहानियों को दर्शकों के सामने पेश करने के अनगिनत मौके हैं। इन कहानियों में ऐसे दिलचस्प और यादगार किरदार होते हैं, जो हमें प्रोत्साहित करते हैं।

पर्दे के पीछे की बात करें तो मनोरंजन में प्रतिनिधित्व समान रूप से जरूरी है। यह उन आवाजों को गहराई से उभार कर हमारे सामने पेश करती है, जो शायद अभी तक हमने सुनी न हो। इससे कहानीकारों को उन किरदारों की आवाज दर्शकों के सामने पेश करने के मौके मिलता है, जो इस तरह के माहौल में हमें कहीं सुनाई नहीं देतीं। हम आज देश में वुमन क्रिएटर्स को आगे आते देख सकते हैं। आज कई महिलाएं निर्माता, निर्देशक और लेखिका बनकर आगे आई हैं। पर्दे के पीछे कई महिलाओं को टेक्निकल रोल्स में देखते हैं।

हमें इन शानदार महिलाओं को शुक्रिया कहना चाहिए कि आज लोग यहाँ और पूरी दुनिया में उनकी कहानियों सुनाने की कला की ताकत को महसूस कर रहे हैं। हम मनोरंजन की दुनिया में महिलाओं के लिए बहुत आशावादी है। हम उस जादू और कमाल को देखने के लिए और इंतजार नहीं कर सकते, जो महिलाएं कैमरे के पीछे और सामने दिखाती हैं।

मोनिका शेरगिल
(लेखिका वाइस प्रेसिडेंट-कंटेंट नेटफ्लिक्स इंडिया हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here