वैक्सीन की कीमत क्या होगी?

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भारत सरकार तीन और वैक्सीन को मंजूरी देने जा रही है। तीन वैक्सीन को पहले मंजूरी मिल चुकी है, जिनमें से दो का इस्तेमाल अभी हो रहा है। कोवीशील्ड और कोवैक्सीन का टीका निजी अस्पतालों में ढाई सौ रुपये में और सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में लगाया जा रहा है। तीसरी वैक्सीन रूस की स्पुतनिक- वी है, जिसे मंजूरी मिल गई है और जल्दी ही इसके टीके लगने लगेंगे। इसी महीने स्पुतनिक के टीके भारत में लोगों को लगने लगेंगे। इस बीच भारत सरकार तीन और वैक्सीन- फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन को मंजूरी दे रही है। इन तीनों वैक्सीन को अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डलूएचओ ने मंजूरी दी हुई है। सो, अब सवाल है कि ये जो चार नई वैक्सीन भारत में आ रही है इनकी कीमत या होगी? या स्पुतनिक-वी की वैक्सीन, जिसके आयात या उत्पादन का करार डॉटर रेड्डीज लैब के साथ हुआ है वह भी ढाई सौ रुपये की कीमत पर लगेगी? भारत में कोवैक्सीन और कोवीशील्ड निजी अस्पतालों में ढाई सौ रुपये में इसलिए लग रहा है क्योंकि वैक्सीन की डोज उनको डेढ़ सौ रुपये में मिल रही है। इनका उत्पादन भारत में हो रहा है, इसलिए डेढ़ सौ रुपये की कीमत पर भी कंपनियों को मुनाफा है। लेकिन बाकी चार वैक्सीन के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती है।

फाइजर की वैक्सीन यूरोपीय संघ के देशों में 14.70 यूरो यानी करीब 13 सौ रुपये के आसपास में मिल रही है, जबकि अमेरिका में इसकी कीमत 19 डॉलर यानी 14 सौ रुपए से कुछ ज्यादा है। यूरोपीय संघ में कीमत इसलिए कम है क्योंकि उसने वैक्सीन के डेवलपमेंट के समय उसमें निवेश किया था। इसी तरह मॉडर्ना की वैक्सीन की कीमत यूरोपीय संघ में 15 और अमेरिका में 18 डॉलर है। इनके मुकाबले जॉनसन एंड जॉनसन की कीमत कम है। उसकी एक डोज साढ़े आठ डॉलर की है। ध्यान रहे ये तीनों वैक्सीन एक डोज वाले हैं। स्पुतनिक-वी की कीमत 10 डॉलर के आसपास है और 21 दिन के अंदर इसकी दो डोज लेनी होगी। इसकी दो डोज पर 20 डॉलर यानी डेढ़ हजार रुपये के करीब खर्च होंगे। स्पुतनिक-वी पहले आएगी और उसके तुरंत बाद तीन और वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो जाएंगे। सो, सरकार को इन चारों की कीमत तय करने का काम जल्दी करना होगा ताकि किसी किस्म का कंफ्यूजन न रहे। यह भी ध्यान रखने की बात है कि भारत में इन चारों में से किसी वैक्सीन के डेवलपमेंट के समय कोई निवेश नहीं किया है। इसलिए अमेरिका, रूस या यूरोपीय संघ और ब्रिटेन को कीमत में जो छूट मिल रही है वह भारत को नहीं मिलेगी।

ऐसे में अगर फाइजर या मॉडर्ना की एक डोज की कीमत डेढ़ हजार के आसपास रहती है तो इसके सहारे मास वैक्सीनेशन चलाने की संभावना खत्म हो जाएगी। जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन सस्ती है पर पिछले दिनों वैक्सीन लगाने के बाद खून का थका जमने की शिकायत के बाद अमेरिका ने इस पर रोक लगाई है। इसलिए इस पर लोगों का कितना भरोसा होगा यह कहना मुश्किल है। फैसला पहले क्यों नहीं हुआ: यह गजब बात है कि देश में फरवरी के आखिरी हफ्ते में कोरोना वायरस का संक्रमण बढऩे लगा था और मार्च का मध्य आते आते महामारी की दूसरी लहर के पूरे देश में फैलने की पुष्टि हो गई थी। फिर भी केंद्रीय माध्यमिक बोर्ड यानी सीबीएसई की परीक्षाएं टालने का फैसला अप्रैल के मध्य में आकर किया गया। सवाल है कि जब मार्च में साफ दिखने लगा था कि महामारी फैल रही है तो उसी समय परीक्षा के बारे में फैसला क्यों नहीं किया गया? प्रधानमंत्री, केंद्रीय शिक्षा मंत्री और सीबीएसई के अधिकारी किस बात का इंतजार कर रहे थे? या किसी को इस बारे में विचार करने की फुर्सत नहीं थी?

सोचें, चार मई से बोर्ड की परीक्षा शुरू होनी है तो 14 अप्रैल को इस बारे में फैसला किया गया, जबकि कोरोना की महामारी पूरे मार्च देश भर में फैलती रही! अब जब 14 अप्रैल को फैसला हुआ तो कहा गया कि इतना समय नहीं बचा है कि चार मई से 12 वीं की परीक्षा ऑनलाइन कराई जा सके। इसलिए एक जून को विचार किया जाएगा कि किस तरह से परीक्षा हो और छात्रों को 15 दिन का समय दिया जाएगा। या जो तैयारी बोर्ड के अधिकारी अगले डेढ़ महीने में करेंगे वह तैयारी पहले नहीं हो सकती थी? अगर मार्च में ही 10 वीं की परीक्षा रद्द करने और 12 वीं की परीक्षा ऑनलाइन कराने का फैसला हो जाता तो चार मई से परीक्षा का आयोजन हो सकता था। वैसे भी बोर्ड की परीक्षाएं मार्च-अप्रैल में ही होती थीं। इस बार तो कोरोना की वजह से परीक्षा मई से शुरू करने का फैसला हुआ था। दूसरी अहम बात यह है कि पिछले पूरे साल एक दिन भी ऑफलाइन लास नहीं हुई है। बच्चे एक दिन स्कूल नहीं गए। सारी पढ़ाई ऑनलाइन मोड में हुई। तो या इस एक साल में बोर्ड ने ऑनलाइन परीक्षा कराने के मॉडल पर चर्चा नहीं की या तैयारी नहीं की? जाहिर है कि किसी ने बच्चों की पढ़ाई या परीक्षा को गंभीरता से नहीं लिया। अप्रैल के मध्य में जब लगा कि अब बच्चों को बुलाकर परीक्षा लेना मुश्किल है तो उसे रद्द करने या स्थगित करने का फैसला हुआ।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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