आज देश में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती मनाई जा रही है उनके अनुयायियों के अलावा सामाजिक राजनीतिक संस्थाएं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देखकर उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प ले रही हैं। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विषय में बहुत कुछ लिखा गया, बहुत कुछ पढ़ा गया, लेकिन उनका वास्तविक दर्शन जो उन्होंने दलितों को ही नहीं सर्व समाज को दिखाने का प्रयास किया है उस पर आज भी समाज खरा नहीं उतर रहा है। कारण यह नजर आता है, कि देश के महान पुरुषों को भी हमने संकीर्ण मानसिकता होने के कारण जाति वर्गों में बांट दिया है। परिणाम स्वरूप देश के आम जन को उन महान पुरुषों द्वारा दिया गया। सामाजिक दर्शन राजनीतिक दर्शन शैक्षिक दर्शन के बारे में किसी ने सही और वास्तविक स्थिति से समाज को अवगत नहीं कराया है। यह व्यवस्था का दोष है इसलिए देश के महापुरुषों की जयंती अपने-अपने समाजों द्वारा मनाई जाने लगी है। केवल राजनीतिज्ञ लोग राजनीति लाभ लेने के लिए केवल औपचारिकताएं निभाते हैं। यह दुख और अफसोस का विषय है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर थे और धर्म की उन आधारभूत मान्यताओं के विरुद्ध थे, जिसके कारण अस्पृश्यता जैसी संकीर्णता का जन्म होता है।
उन्होंने स्वतंत्रता समानता और न्याय आधारित व्यवस्था के पक्षधर थे, डॉक्टर बीआर अंबेडकर के राजनीतिक विचार उदारवादी राजनीति दर्शन से प्रेरित हैं। उन्होंने कहा था सकारात्मक दृष्टि से मेरा सामाजिक दर्शन तीन तत्वों से अंतर्निहित कहा जा सकता है। स्वतंत्रता समानता भा तत्व प्रजातंत्र के कट्टर समर्थक थे। इसलिए संसदीय प्रजातंत्र की सफलता हेतु राजनीतिक दलों का होना आवश्यक बताया विरोधी दल के अभाव में कार्य पालिका निरंकुश हो जाएगी, उनका विचार था कि प्रजातंत्र में जब तक जनता के साथ समानता का अस्तित्व नहीं होगा तब तक प्रजातंत्र को पूर्ण नहीं कहा जा सकता है कहा जा सकता है उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा स्वीकार करने का समर्थन किया था। शिक्षाविद दार्शनिक अर्थशास्त्री कानून विद विश्व स्तर पर देश का गौरव बढ़ाने वाले डा. बीआर अंबेडकर की एक सौ पच्चीस वी जयंती पर अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने एक सर्वे कराया कि उस विश्वविद्यालय में पढऩे वाले छात्रों में सबसे योग्य और उच्च स्थान पर कौन हैं तो यह गौरव डॉक्टर बीआर अंबेडकर को हासिल हुआ इसलिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने यूनिवर्सिटी के गेट पर डॉक्टर बीआर अंबेडकर की कांस्य प्रतिमा का अनावरण कर करके यह समान डॉक्टर बीआर अंबेडकर के रूप में देशवासियों को मिला।
डॉक्टर बीआर अंबेडकर ने अपने द्वारा लिखे गए साहित्य से देश की सामाजिक राजनीतिक आर्थिक स्थिति का उस समय वर्णन किया था और देश को एक सामाजिक न्याय का रास्ता दिखाया था। डॉक्टर बीआर अंबेडकर की सोच कार्यशैली सामाजिक राजनीतिक आर्थिक चिंतन को ध्यान रखते हुए संविधान की ड्राफ्ट कमेटी का उन्हें चेयरमैन बनाया गया था। आज वही सविधान हमें हमारे दायित्व और कर्तव्य का बोध कराता है, लेकिन अफसोस है कि भारतीय राजनीतिक और राजनीतिज्ञों जो सत्तासीन होने के लिए लोकतंत्र की मर्यादाओं को भूलकर कर केवल स्वार्थ की राजनीति में संलिप्त हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप लोकतंत्र दूषित हो जाता है। संकीर्ण मानसिकता के लोग आरक्षण को लेकर जब चर्चा या बहस करते हैं तो भूल जाते हैं की पांच हजार वर्ष पुरानी जातीय व्यवस्था से पीडि़त वर्ग को अग्रिम पंक्ति में लाने के लिए इस व्यवस्था को किया गया था, लेकिन वास्तविकता यह भी है कि आरक्षण का लाभ लेकर अग्रिम पंक्ति में पहुंचने वाले लोगों ने अपने ही समाज के अन्य लोगों को इसका लाभ आज भी नहीं मिल पा रहा है।
सवाल यह उठता है कि यह दोष किसका तो यहां यह कहना न्याय संगत होगा कि यह दोष व्यवस्था का है यदि सही मॉनिटरिंग की जाए तो जो आरक्षण का वास्तविक पात्र है। उसको आरक्षण का लाभ मिलना ही चाहिए। सरकार ने आर्थिक दृष्टि से कमजोर उच्च वर्ग को दस प्रतिशत आरक्षण देकर उस वर्ग को आगे लाने का प्रयास किया है, जो सरकार का सराहनीय कदम है। डॉ बीआर अंबेडकर ने सामाजिक समानता और जाति व्यवस्था को समाप्त करने पर बल दिया था। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर उनके अनुयाई राजनीतिक दल सामाजिक संस्थाएं तरह-तरह के संकल्प लेकर उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लेते हैं यदि समाज में समरसता और सामाजिक न्याय पर सामाजिक चिंतन के तहत कार्य किया जाए और करनी और कथनी को राजनीतिक लोग सही रूप दें तब ही महापुरुषों की जयंती मनाने का सही अर्थ है महान पुरुष को सच्ची श्रद्धांजलि वह होगी, जब हम सब मिलकर सकारात्मक सोच के साथ राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर सामाजिक न्याय और समरसता के कार्य करें और महान पुरुषों द्वारा दिए गए दर्शन को अपना कर उस पर चलें यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
जगत पाल सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)