नौकरियां कम-युवा बेदम

0
1306

पिछला पूरा साल कई अनिश्चितताओं के डर में गुजरा। 2019-20 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था सबकुछ बंद होने से धड़ाम हो गई। उसके बाद लॉकडाउन हटने से अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ। पर, इस उतार- चढ़ाव ने भारतीय गृहस्थी को कई तरीकों से गरीब बना दिया। सीएमआईई ने रोजगार और घरेलू आय जैसे पैमाने के आधार पर लॉकडाउन से भारतीय घरों की स्थिति का लेखा-जोखा किया है। हमने देखा कि 2019-20 में जहां बेरोजगारी दर 7-8 फीसद के इर्द-गिर्द रहती थी, अप्रैल में 24 पहुंच गई। बाद से इसमें सुधार हुआ है। फरवरी 2021 में यह 6.9 फीसद थी। पर दूसरे ज्यादा महत्वपूर्ण संकेतकों में सुधार नहीं हुआ। उदाहरण के लिए, 2019-20 में जो श्रम बल भागीदारी दर औसतन 42-43 फीसद थी, अप्रैल में 35.6 तक गिर गई थी, उसमें फरवरी 2021 तक 40.5 का आंशिक सुधार ही हुआ है। श्रम भागीदारी दर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 15 साल या उससे ज्यादा की उम्र के काम करने के इच्छुक लोगों का अनुपात मापती है। यह देखने में आया कि लॉकडाउन के एक साल बाद, काम करने की उम्र वाले काम करने के इच्छुक लोगों का अनुपात 2 फीसदी कम हुआ है। यह अनुपात यों कम हुआ? इसका सिर्फ एक ही कारण है कि नौकरियां कम हैं।

बेरोजगारी दर में सुधार का सिर्फ यही मतलब है कि काम करने के इच्छुक लोगों में 7 फीसद को काम नहीं मिला। पर, जैसा हम देख रहे हैं कि खुद काम करने के इच्छुक लोगों की संख्या में गिरावट आई है। ऐसे में बेरोजगारी दर अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर बयां नहीं करती। इससे कहीं अधिक मौजूं और काम का संकेतक रोजगार दर है। यह रोजगार से लगी कामकाजी आबादी (15 साल या उससे ज्यादा की वर्किंग एज) का अनुपात है। 2019-20 में महामारी से अर्थव्यवस्था पर असर के पहले, इस वर्किंग एज आबादी में 39.4 फीसदी के पास रोजगार था। रोजगार दर का यह अनुपात अप्रैल 2020 में 27 फीसद तक गिर गया। फरवरी 2021 तक यह महज 37.7 फीसद तक ही ऊपर उठा। रोजगार लॉकडाउन से पहले की तुलना में 1.7 फीसद कम है। यह चिंताजनक है कि इसमें सुधार होना बंद हो गया है। बेरोजगारी दर का लॉकडाउन से पहले के समय के बराबर हो जाना कोई जश्न की बात नहीं योंकि यह बेरोजगारों की संख्या में कमी की तुलना में, सिकुड़ती श्रम शक्ति का प्रतिबिंब ज्यादा है। पिछले वित्त वर्ष में जुलाई-फरवरी के दौरान 7.6 फीसद बेरोजगारी दर, 43.85 करोड़ श्रम बल में से 3.32 करोड़ बेरोजगार लोगों का अनुपात थी। वहीं, इस वित्तीय वर्ष में जुलाईफरवरी के दौरान लगभग वही 7.3 फीसद बेरोजगारी दर, काफी कम श्रम बल 42.63 करोड़ में से 3.12 करोड़ बेरोजगार लोगों का अनुपात थी।

बेरोजगारी में मामूली गिरावट का यह मतलब नहीं है कि ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। इसका मतलब है कि बेरोजगार लोगों ने नौकरी ढूंढना बंद कर दिया है। यह नौकरियों की कमी के कारण श्रम बाजारों से श्रमिकों के पलायन को दर्शाता है। लेबर फोर्स का बड़ा हिस्सा, रोजगार लोगों की संख्या तेजी से गिरी है। हम गंभीर लॉकडाउन के बाद 8 महीनों, इस वित्तीय वर्ष में जैसे जुलाई 2020 से फरवरी 2021 की तुलना करते हैं। पिछले वित्तीय वर्ष जुलाईफरवरी में औसतन 40.5 करोड़ लोगों के पास रोजगार था। इस वित्तीय वर्ष में उसी समय की तुलना करें तो 39.5 करोड़ लोगों के पास रोजगार है। इसका मतलब है कि इस साल पिछले साल की तुलना में एक करोड़ नौकरियां कम हैं। भारत में रोजगार दर लगातार गिर रही है। यह वित्तीय वर्ष 2020-21 के शुरुआती दौर में गिरावट के बाद से सुधरी है, पर यह लॉकडाउन के पहले के अपने गिरावट वाले ट्रेंड पर वापस आ गई है। और चलते- चलते…अप्रैल 2020 में गिरावट के बाद रोजगार में हुआ आंशिक सुधार घरेलू आय में उसी तरह सुधार की कहानी नहीं कहता। घरेलू आय में गिरावट से कई चीज़ें जुड़ी हुई हैं। इससे भयंकर कर्ज, घरेलू मांग में कमी और स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित बुनियादी आवश्यकताओं से परे सेवाओं की हानि हो सकती है।

महेश व्यास
(लेखक एमडी एंड सीईओ, सीएमआईई हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here