जब मन में मृत्य का भाव होगा तो नहीं होंगे झगड़े

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मृत्यु अटल है। सभी को एक दिन मरना ही है। जो लोग ये बात समझ जाते हैं, वे सभी बुराइयों से दूर हो जाते हैं और सभी के साथ प्रेम से रहने लगते हैं। इस बारे में एक प्रसंग है कि महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत एकनाथजी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था और जन्म के बाद इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इस वजह से लोग इन्हें अशुभ मानते थे। एकनाथजी मृत्यु के संबंध में गहरी समझ रखते थे। उन्होंने सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए बहुत काम किया था, वे संत भानुदास के शिष्य थे और गृहस्थ थे। एक दिन एकनाथजी के एक भत ने इनसे पूछा, आप इतनी परेशानियों के बाद भी खुश कैसे रहते हैं? अगर आपके पास खुश रहने का कोई मंत्र हो तो हमें भी दे दीजिए। एकनाथजी ने कहा कि वो मंत्र, वो सूत्र तो अपनी जगह है, लेकिन अभी मैं तुम्हें एक बात कहना चाहता हूं, आज से सात दिन बाद तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। ये बात सुनते ही वह भत घबरा गया। घर पहुंचकर उसने अपनी पत्नी को पूरी बात बताई।

भक्त ने सोचा कि अब जो होगा सो होगा। इसके बाद उसने अपने व्यवहार को एकदम बदल दिया। वह सभी से प्रेम से बात करने लगाए सभी की मदद करने लगा। उस व्यति के व्यवहार में बदलाव होने से घर-परिवार और समाज के लोग बहुत हैरान थे। सात दिन बहुत अच्छी तरह बीत गए। सातवें दिन उसने स्नान किया, अच्छे वस्त्र पहने और आंगन में लेट गया। वह अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगा। उसी समय वहां एकनाथजी पहुंच गए। उन्होंने अपने भत से पूछा, तुम्हारे ये सात दिन कैसे बीते? भक्त ने कहा कि मेरे ये सात दिन तो बहुत अच्छी तरह बीते हैं। किसी से कोई झगड़ा नहीं, सभी के साथ बहुत प्रेम से रहा। एकनाथजी ने पूछा कि ऐसा कैसे संभव हुआ? भक्त ने कहा कि आपने कहा था कि सात दिन बाद जाना है। मैंने सोचा जब जाना ही है तो किसी से किस बात का झगड़ा करूं? एकनाथजी ने कहा, कि मैंने तुम्हें सात दिन का समय दिया था, लेकिन अगर तुम ये मान लो कि जाना है, अगले 50-60 साल बाद ही जाना है तो संसार का झगड़ा किस बात का है। आनंद से रहो। उस आनंद से रहो जो तुम्हारे भीतर है।

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