तेल संकट: तय सरकार को करना है

0
1063

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि ईंधन तेल को जीएसटी के दायरे में लाने से प्रारंभ में कुछ नुकसान होगा लेकिन दीर्घकाल में लाभ होंगे। स्टेट बैंक आफ इंडिया के अनुसार यह प्रारंभिक नुकसान लगभग एक लाख करोड़ रुपये का होगा। वर्तमान में तेल पर केंद्र सरकार द्वारा एक्साइज ड्यूटी वसूल की जाती है और तेल के दाम में एक्साइज ड्यूटी जोड़कर उस पर राज्यों द्वारा वैट वसूल किया जाता है। जीएसटी के दायरे में लाने से ये दोनों टैक्स मिल जाएंगे और तेल पर वसूल किया जाने वाला कुल टैक्स कम होगा। लेकिन प्रश्न है कि राजस्व की जो हानि होगी उसकी भरपाई कहां से होगी? इसे यूं समझें कि जो एक लाख करोड़ रुपया आज तेल से वसूल किया जा रहा है वह कपड़े, कागज, कार या ऐसे ही किसी अन्य माल से वसूल किया जाएगा। यानि जीएसटी के दायरे में तेल को लाने से केवल वसूली का स्थान बदल जाएगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सरकार को तय सिर्फ यह करना है कि तेल पर टैक्स वसूल करना ज्यादा लाभप्रद है या कपड़े और कागज पर।

कौन है आम आदमी

तेल को जीएसटी में लाने से इसके दाम में गिरावट आएगी और आम आदमी को लाभ मिलेगा। लेकिन आम आदमी कौन है इस पर भी विचार करना चाहिए। अपने देश में ऊपरी और निचले वर्गों की तेल खपत के अलग-अलग आंकड़े मुझे उपलब्ध नहीं हुए हैं। अफ्रीका के देश माली में निचले तबके की 20 प्रतिशत जनता की तुलना में ऊपरी 20 प्रतिशत जनता द्वारा तेल की 16 गुना अधिक खपत होती है। अपने देश में स्थिति और ज्यादा विकट है क्योंकि माली की तुलना में हमारे यहां अमीर और गरीब में अंतर कहीं ज्यादा है। फिर भी इसको उतना ही मान लें तो मतलब यह हुआ कि यदि तेल के दामों में गिरावट आई और इससे 16 रुपये का लाभ ऊपरी वर्ग को हुआ तो निचले वर्ग को मात्र 1 रुपये का लाभ होगा। इसलिए कहा जा सकता है कि तेल को जीएसटी में लाने की मांग दरअसल ऊपरी वर्ग द्वारा आम आदमी को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश है।

इसमें कोई शक नहीं कि तेल को जीएसटी के अंतर्गत लाने से पूरे देश में तेल का दाम एक समान हो जाएगा लेकिन इसके साथ-साथ राज्यों के अपने विवेक के अनुसार तेल पर टैक्स वसूल करने की स्वायत्तता भी समाप्त हो जाएगी। वर्तमान में कुछ राज्य तेल पर अधिक दर से वैट वसूल करते हैं और उस रकम का उपयोग जनहित के कामों में करते हैं। जैसे जंगलों की रक्षा करना, जल संरक्षण करना अथवा टीकाकरण करना। अन्य राज्यों द्वारा तेल पर अपेक्षाकृत कम दर से टैक्स वसूला जा रहा है। इनका विचार है कि यदि हमारे राज्य में तेल के दाम कम होंगे तो उद्यमियों और व्यापारियों को हमारे यहां आकर व्यापार करने और उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और राज्य को लाभ होगा। दोनों ही तर्क ठीक हैं। अधिक टैक्स वसूल कर अधिक सरकारी खर्च से भी जनहित होता है और कम टैक्स रख कर उद्यमियों को आकर्षित करने से भी लाभ होता है। वर्तमान में राज्य सरकारों के पास स्वायत्तता है कि वे इन दोनों में से कोई भी नीति अपनाकर अपने राज्य का विकास सुनिश्चित करें।

तेल को जीएसटी के दायरे में लाने के बाद राज्यों की यह स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी क्योंकि हर राज्य में तेल पर एक ही दर से जीएसटी वसूल किया जाएगा। यह विषय आने वाले समय में गंभीर हो जाएगा। जीएसटी लागू करते समय केंद्र सरकार ने वादा किया था कि पांच वर्षों तक राज्यों को जीएसटी से मिलने वाली रकम में यदि 14 प्रतिशत से कम वृद्धि होती है तो उस कमी की भरपाई केंद्र करेगा। यह अवधि 30 जून 2022 को समाप्त हो रही है। इसके बाद कई राज्यों के सामने राजस्व का भयंकर संकट उत्पन्न होगा। उस समय इनके लिए एक रास्ता तेल पर अधिक टैक्स वसूल करना हो सकता है जो कि इसे जीएसटी के दायरे में लाने से बंद हो जाएगा। उस स्थिति में ये राज्य असहाय हो जाएंगे।

यह भी विचार करना चाहिए कि तेल के कम दाम देश के हित में हैं या नहीं। दाम कम होने से उपभोक्ताओं और उद्योगों को अधिक तेल का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। अपने देश में 85 प्रतिशत तेल आयात किया जाता है। इसलिए इसकी खपत बढ़ने से हमारी आर्थिक संप्रभुता पर संकट बढ़ेगा। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि तेल के दाम कम होने से तेल के क्षेत्र का विस्तार होगा। उदाहरण के लिए सोलर पैनल लगाकर बिजली उत्पादन करने के स्थान पर व्यक्ति तेल से चलने वाला जेनरेटर लगाएगा। लेकिन सवाल तो यह है कि क्या तेल के क्षेत्र का ऐसा विस्तार हमारे लिए लाभप्रद है?

खपत बढ़ने का सवाल

बारीकी से देखा जाए तो तेल के उपयोग की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए, खपत की मात्रा में वृद्धि नहीं करनी चाहिए। तेल का उपयोग केवल उन विशेष स्थानों पर कुशलतापूर्वक करना चाहिए जहां दूसरे ऊर्जा स्रोतों से काम नहीं चल सकता है। जैसे घर के अंदर तेल से चलने वाले जेनरेटर की तुलना में सोलर पैनल और इनवर्टर लगाना ज्यादा उचित है । कार अथवा ट्रक को भी बिजली से चलाना ज्यादा लाभप्रद है। लेकिन कुछ विशेष स्थान हैं जैसे दूर दराज के गांव जहां बिजली की कारें चलाना मुश्किल है। ऐसे ही हवाई जहाज के मामले में भी बिजली से काम नहीं चलेगा। केवल ऐसे ही मामलों में तेल का उपयोग होना चाहिए। अंतिम विश्लेषण में मुख्य दो बातें हैं जो मायने रखती हैं। एक यह कि जीएसटी के दायरे में लाने से तेल के दाम कम होंगे, तेल की खपत अधिक होगी और हमारी आर्थिक संप्रभुता पर संकट आएगा। दूसरा यह कि राज्यों की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी जो कि अंततः राज्यों में असंतोष पैदा करेगी, जिससे देश की एकता पर भी आंच आ सकती है।

भरत झुनझुनवाला
(लेखक आर्थिक विशेषज्ञ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here