चिदंबरम ने की तारीफ

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हर सरकार अपने लिहाज से योजनाएं बनाती और जनहित में लागू करने का प्रयास करती है। किसी ने ठीक कहा है कि कुछ न कुछ उपलब्धि सबके हिस्से में आती है, बस उसे रेखांकित करने की जरूरत होती है। यह कवायद जब धुर विरोधी शख्स की तरफ से हो तो फिर बहुत से सवाल एकबारगी ठहर जाते हैं। कांग्रेस के कद्दावर नेता जाने माने वकील पी. चिदंबरम ने बीते शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि गंगा सफाई मोदी सरकार की उपलब्धि उल्लेखनीय है। पहली बात तो उन्होंने गंगा सफाई अभियान की शुरूआत की लेकिन अपेक्षित नतीने तक नहीं पहुंचा जा सका। इस लिहाज से मोदी सरकार का गंगा सफाई से जुड़ा कामकाज प्रशंसनीय है और इससे उन्हें गर्व की अनुभूति होती है। दूसरी तारीफ उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण की रफ्तार को लकेर की।

उन्होंने माना कि मोदी सरकार में सड़कों के निर्माण की गति पिछली सरकारों की तुलना में तेज है। आधार योजना को लागू करने के लिए भी सराहना की। हां, यह बताना नहीं भूले कि आधार योजना यूपीए सरकार के समय की थी। पी. चिदंबरम को मोदी सरकार का धुर विरोधी माना जाता है और खास तोर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर उसकी नापसंदगी जग जाहिर है। जीएसटी लागू करने के तरीकों और नोटबंदी के ऐलान को चिदंबरम उतावलेपन में लिया निर्णय बताते हैं। उनकी दृष्टि में इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी गहरी चोट पहुंची, जिसका दर्द बीते दो साल में देशवासी महसूस कर रहे हैं। एक किताब के विमोचन अवसर पर पूर्व मंत्री पी. चिदंबरम मोदी सरकार की तारीफ कर रहे थे तो उस पर सरसरी दृष्टि से भले कुछ खास ना लगा हो लेकिन अधेड़बुन के बाद समझ में आया कि मोदी सरकार के बहाने चिदंबरम, नितिन गडकरी की तारीफ कर रहे थे।

लोकसभा में भी उनके बयान के बाद कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने मेज थपथपाया था। एक तरफ से कांग्रेस को गडकरी काफी रास आने लगे। मोदी के बरक्स भाजपा के भीतर कोई दूसरा चुनौती देता दिखने-लगे तो कांग्रेस को सुकून पहुंचता है। गडकरी भी खूब हैं कुछ न कुछ बोलते रहते हैं। 2013 में भाजपा के भीरत 160 के आस-पास पहने पर गडकरी और राजनाथ सरीखे नेताओं को 2014 की संभावित सरकार का चेहरा बनाये जाने की चर्चा चल पड़ी थी। यह बात और कि 2014 में अप्रत्याशित हो गया। भाजपा अपने दम पर बहुतम की सरकार बनाने की स्थिति में आ गई। नरेन्द्र मोदी पीएम उम्मीदवार थे ही, सो उनकी ही ताजपोशी हुई।

इधर एकाध बरस से फिर भाजपा के बहुमत से दूर रहने की खबरें जोर पकड़ने लगी थीं। ऐसा माना जाने लगा था कि मोदी सरकार रोजगार और किसानों की अपेक्षाओं के मुद्दों पर फेल रही है, जिससे युवाओं और किसानों में काफी आक्रोश है और सहयोगी दल भी तब जिस तरह भाजपा को आंखें दिखाने लगे थे, लग रहा था कि 2004 की तरह मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है या फिर बहुमत से दूर सबसे बड़ी पार्टी हो सकती है।

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