सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली घटना इस बार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के उस नगर में हुई जिसको तीर्थराज यानि प्रयागराज कहा जाता है। यहां सारी मानवीय हदों को पार करते हुए चिकित्सों के हट के कारण एक मासूम बच्ची इस स्वार्थी दुनिया को अलविदा कह गई। बच्ची के साथ जो हुआ हमारी व्यवस्थाओं पर पश्नचिन्ह लगाने साथ-साथ केंद्र सरकार के उन प्रयासों को धक्का लगा है जिसे प्रधानमंत्री मोदी आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वयं गरीबों के इलाज के लिए चलाना चाहते हैं। धार्मिक ग्रंथों में जिस चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया जाता है। जिसका रोगी से संबंध भक्त-भगवान का होता है। वही आज का चिकित्सक मानवता की सारी सीमाएं लांघता हुआ इतना स्वार्थी हो गया कि उसने बिना पैसे दिए आप्रेशन की बच्ची के टांके लगाने से न सिर्फ इंकार किया बल्कि उसको मरने के लिए अस्पताल से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया। बच्ची दर्द तड़पते हुए दुनिया से चली गई लेकिन इन स्वार्थी चिकित्सकों का दिल नहीं पसीजा। हिंदू धर्म में तो चिकित्सकों की महिमा का वर्णन करते हुए धरती का भगवान कहा गया है।
यानी मानवता की रक्षा करने वाला बताया गया है। अभी पिछले वर्ष जब सारा देश कोरोना की लड़ाई लड़ रहा था उस दौरान भी पीएम नरेंद्र मोदी ने कोरोना के इलाज में जुटे डाक्टरों का उत्साहवर्धन करते हुए देशवासियों से पुष्पवर्षा करने का आह्वान किया था। जब स्वार्थ का भाव हावी हो जाए तो धरती का भगवान भी दौलत का पुजारी हो जाता है। इसके चलते आम मनुष्य भी उसे तुच्छ दिखाई देने लगते हैं जिनकी जान की कीमत भी नजर नहीं आती है। दो दिन पहले प्रयागराज में भी यही हुआ कि धन के अभाव में एक लाचार पिता को अपनी तीन वर्ष की बेटी की जान से हाथ धोना पड़ा। घटना के मुताबिक प्रयागराज के करेली थाना क्षेत्र के अंतर्गत करेंहदा निवासी ब्रह्मदीन मिश्रा की तीन साल की बेटी खुशी मिश्रा को पेट में दर्द था। मजबूर मां-बाप ने इलाज के लिए प्रयागराज के धूमनगंज के रावतपुर स्थित यूनाइटेड मेडिसिटी अस्पताल में भर्ती कराया। आंत में इंफेक्शन बताकर बच्ची के पेट का ऑपरेशन तो किया गया लेकिन टांके वाली जगह पर पस की समस्या हो गई थी। चार-पांच दिन बाद उसी जगह पर एक और ऑपरेशन किया गया।
इस ऑपरेशन के लिए डेढ़ लाख रुपये ले लेने के बाद भी हॉस्पिटल प्रशासन ने पांच लाख रुपये की डिमांड की। जब रुपये नहीं दे पाए तो हॉस्पिटल प्रशासन ने बच्ची को फटे पेट के साथ ही परिवार समेत बाहर भेज दिया। इस घटना ने जहां मानवता को झकझोर दिया वहीं इसने जिला प्रशासन की भी नींद भी उड़ाई। डीएम के द्वारा जांच कमेटी पर निर्भर होगा कि वह इस मासूम बेटी के परिजनों को इंसाफ दिला पाएगी! यदि हम प्राचीन काल का स्मरण करें तो उस समय शिक्षा और चिकित्सा सेवाभाव से देखी जाती थी। उस समय के लोगों में लोभ-लालच नहीं होता था। शिक्षक हो क्या चिकित्सक सभी श्रद्धा भाव से मानवता की सेवा करते थे। आज दोनों ही क्षेत्र में परिवेश बदल गया है। जिसके पास धन-दौलत है वही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है। अर्थात शिक्षा व चिकित्सा अब व्यापार की डगर पर चल रही है, जो सय समाज के लिए ठीक नहीं है। चिकित्सकों को समझना चाहिए कि धन-दौलत अस्थाई है तो मान-सम्मान स्थाई है। उन्हें मान-सम्मान के लिए रोगियों का उपचार सेवा भाव से करना चाहिए। ताकि उनके मान-सम्मान में वृद्धि हो। वह आजीवन लोगों के द्वारा सम्मान पाते रहें।