संसार में ही मिलेगा कर्मों का फल

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इंसान अपने उत्थान के समय अपने पतन की नहीं सोचता। जैसा वह अपने से बड़ों के साथ व्यवहार करता है, उसके साथ भी उसकी संतना वैसा व्यवहार करेगी। इसलिए सदैव बड़ों के साथ उत्तम व्यवहार करो ताकि तुम अपनी संतान से भी उसी प्रकार का समान चाहते हो। एक कथा के अनुसार एक वृद्ध अपने बहु-बेटे के यहाँ शहर रहने गया। उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था। वो एक छोटे से घर में रहते थे, पूरा परिवार और उसका चार वर्षीया पोता एक साथ ही खाना खाते थे। लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यति को खाने में बड़ी दिकत होती थी। बहू-बेटे कुछ दिनों तक तो ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता के इस काम से चिढ़ होने लगी। लड़के ने कहा, हमें इनका कुछ करना पड़ेगा। बहु ने भी हां में हां मिलाई और बोली, आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा करेंगे, और हम इस तरह हमारी चीजों का नुकसान होते हुए भी नहीं देख सकते। अगले दिन जब खाने का व़त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के एक कोने में लगा दिया और अपने बूढ़े बाप से बोला कि पिता जी आप यहां पर बैठ कर खाना खाया करो।

बूढ़ा पिता वहीं अकेले में बैठ कर अपना भोजन करने लगा, यहां तक की उनके खाने-पीने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया था। ताकि अब और बर्तन ना टूट सकें। कभी कभार उस बुजुर्ग की आंखो में आंसू दिखाई देते। एक रात खाने से पहले, उस छोटे बालक को उसके मात-पिता ने ज़मीन पर बैठकर कुछ करते हुए देखा, तुम या बना रहे हो? पिता ने पूछा, बच्चे ने मासूमियत के साथ उत्तर दिया, अरे मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ, ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊं तो आप लोग इसमें खा सकें, और वह पुन: अपने काम में लग गया। पर इस बात का उसके माता पिता पर बहुत गहरा असर हुआ। उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और आंखों से आंसू बहने लगे। वो दोनों बिना बोले ही समझ चुके थे कि अब उन्हें या करना है। उस रात वो अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आए। और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया। मनुष्य को अपने वृद्ध होने अहसास होगा तो वह मातापिता से अभद्र व्यवहार करेगा।

-एम. रिजवी मैराज

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