श्चित रूप से हर धर्म, हर वर्ग और हर विचार विद्यालय ने सत्य को मानव कल्याण का स्रोत माना है। हमारे भारत को भी इस बात पर गर्व है कि हजारों साल पहले ऋषि और मुनियों ने दुनिया को सत्य अर्थात सत्य बना दिया है। दर्शनशास्त्र से पता चला। यहां से शुरू होने वाले सभी धर्मों ने सत्य को प्रशंसनीय और झूठ को निंदनीय माना। हमारे देश में ऐसे हजारों किस्से बड़े स्वाद से सुनने को मिलते हैं जो सच्चाई के लिए खुद को कुर्बान कर देते हैं। उल्लेख किया। इस देश में हजारों वर्षों से दशहरा और होली जैसे त्योहार सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस देश की हजारों साल की परंपरा यही रही है कि जो इंसान बौखलाहट करता है । कपड़ा पहनते थे जुबां पर कभी झूठ का शब्द नहीं था लेकिन अफसोस इस दौर में कुछ लोगों ने भगवा कपड़े पहने हैं जो झूठ बोलकर लोगों को गुमराह करना अपना धर्म समझते हैं। हम समझते हैं भगवा का भेष पहनते हैं इसलिए लोग उनके झूठ को सच समझने पर मजबूर हो जाते हैं। कितनी दु:ख की बात है कि वह भूमि जिससे हमेशा झूठ बोला जा रहा है उस सत्य के दो शब्दों पर गर्व किया गया है। गूंजें हैं जिन्हें वैश्विक स्तर पर सुना जा रहा है।
आज हमारे देश में इतने बड़े झूठे हैं कि कोई ताकत नहीं जीत सकती यही कारण है कि कभी-कभी दिल चाहता है कि वैश्विक झूठ बोलने की प्रतियोगिता आयोजित की जाए। दुनिया भर की टीमों ने भाग लिया और हमारे देश से ऐसे लोगों को बाहर भेज दिया जो न केवल झूठ बोलते हैं बल्कि अपनी झूठ की बोतलों पर वैश्विक संगठनों के लेबल भी चिपकाते हैं, हमें यकीन है कि अगर इन लोगों को झूठ की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भेजा जाता है तो ये लोग जरूर भारत को हर साल चैंपियनशिप दिलवाएं। उन्हें लगता है कि उन्होंने हिंदी में झूठ बोला है इसलिए वे यही तक सीमित रहेंगे, दूसरी उम्मीद यह है कि भारतीय न्यूज चैनलों की भाषा को विज्ञापनों के माध्यम से बंद कर दिया है जिससे न्यूज एंकरों को झूठ बोलने की हिम्मत नहीं होती, लेकिन आने वाले हर शब्द का समर्थन करेंगे। लेकिन इन गरीब लोगों को क्या पता कि मीडिया में पत्रकार हैं भारतीय न्यूज एंकर नहीं, जो सच और झूठ के प्रति विनम्र होकर झूठ का पर्दाफाश करते हैं । संयोग, हमारे देश के एक बाबा जी विश्व स्तर पर झूठ बोलने और बार बार झूठ बोलने में भी बहुत माहिर हैं जो गलत साबित होते हैं।
पिछले साल जून में उन्होंने कोरोना से बचाव की दवा का आविष्कार करने का दावा किया था, लेकिन बाद में दावे हवा निकल गई, लेकिन आठ महीने बाद उन्होंने एक नई सांस के साथ मैदान में उतरने का फैसला किया और इतनी हिम्मत से किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने भी उनकी दवा को मंजूरी दे दी है। लेकिन दुर्भाग्य से दूसरे दिन डब्ल्यूएचओ के मुखिया का बयान आया कि उन्होंने किसी देसी दवा को मंजूरी नहीं दी है। इस घोषणा के बाद बाबा झांकने लगे और अलग- अलग व्याया करने लगे, लेकिन भारत का सबसे बड़ा झूठ का खुलासा होने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ऑफ मेडिकल इंस्टीट्यूशंस ने देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन की मौजूदगी में बाबा की दवा के लांच पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
इसमें कोई शक नहीं कि कोई अनधिकृत और झूठा है। वैश्विक प्रमाण पत्र के आधार पर बाजार में लाई गई दवा के शुभारंभ पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति अवाम को गुमराह करने जैसा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का भारत सरकार से सवाल बिल्कुल सही है बाबा अगर कोरोना की दवा इलाज का रामबाण है तो भारत सरकार टीकाकरण पर करोड़ो रूपये खर्च क्यों कर रही है? हमने भी उसी कॉलम में लिखा है कि अगर की दवा से कोरोना के मरीज ठीक हो जाते हैं तो सभी अस्पताल में भर्ती मरीजों को बाबा की दवा देकर अस्पताल से ऑसीजन सिलेंडर और वेंटिलेटर हटाए। और सबको एलोपैथिक की जगह बाबा की बनाई दवा देनी चाहिए। कितने दु:ख की बात है कि बाबा की कंपनी ऐसी घातक बीमारी से पीडि़त लोगों के साथ इस तरह मजाक कर रही है और भारत सरकार ने भी उनके दावे की पुष्टि की। उन्हें बिना किए सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान करा दी गई।
शकील हसन शसी