जीवन का लक्ष्य ही है ढूंढते रहना

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अभी भी दुनिया की कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें हम नहीं जानते हैं। अगर देखें तो परमात्मा के भी कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में हम जागरूक नहीं हैं। जबकि ईश्वर के नाम में ही सब कुछ स्पष्ट है। एक है परमात्मा को जानना और फिर परमात्मा ने जो-जो बताया उसको जानना। अब दोनों बातें धीरे-धीरे हमारे सामने प्रत्यक्ष होनी हैं क्योंकि यह समय की पुकार है।

हम जानते हैं कि हर चीज समय के अनुसार होती है। जब वो चीज समय पर मिलती है तो जीवन एक अलग मोड़ ले लेता है। चाहे वो राजनीतिक सत्ता हो, या धर्म की शक्ति हो, या विज्ञान की, धन की शक्ति हो। हम सभी शक्तियों को और फिर अपनी दुनिया की हालत को भी देख रहे हैं। सब कुछ करते हुए, सारे प्रयास, विश्व स्तर पर सारी कॉन्फ्रेंस करते हुए भी हम इस दुनिया को थाम नहीं पा रहे हैं। दुनिया को क्या, हम तो अपना जीवन ही नहीं थाम पा रहे। आज हर कोई खोज रहा है। कहीं न कहीं हमें ये बताया गया था कि परमात्मा है, अब परमात्मा की खोज ही जीवन का लक्ष्य बन गया है। शांति, प्रेम, सच्चा प्यार, सुख ये सब हम खोज रहे थे। इन सबसे बड़ी खोज कि मैं कौन हूं। इसके बारे में इतना कुछ लिखा जा चुका है, फिर भी हमारी खोज जारी है। सबने यही समझा कि जीवन का लक्ष्य ही है ढूंढते रहना। अपने आप से पूछना कि क्या हम हमेशा ढूंढते ही रहेंगे। कितने जन्मों से उसे ढूंढते आ रहे हैं। क्या जीवन सिर्फ खोजने के लिए मिला है और फिर खोजते-खोजते ही इस दुनिया से चले जाना है।

ये जो हमारी खोज है, अपने आपको, परमात्मा को और जीवन से जुड़े ढेरों प्रश्नों को जानने की, उसकी खोज अब समाप्त हो चुकी है। क्योंकि जिसको हम कई जन्मों से ढूंढ रहे थे, वो इस सृष्टि पर आ चुका है। जब वो खुद आ चुका है तो फिर ढूंढने की जरूरत नहीं है। अब तो एक शुरुआत है। अब तक हम परमात्मा को ढूंढ रहे थे। जैसे एक बच्चा पिता को ढूंढ रहा था। तो वह कब तक ढूंढता रहेगा। अपने आपको देखें कि जैसे एक बच्चा, जो अपने आपको ही भूल चुका है। पहली बात कि हम अपने आपको ही भूल चुके हैं और अपने माता-पिता से बिछड़ चुके हैं। अपने घर से बिछड़ चुके हैं। हम कौन हैं, हम किसके बच्चे हैं और हम कहां के रहने वाले हैं। इन तीनों का जवाब हमें नहीं मालूम। तो आप सोचिए कि एक बच्चा जो मेले में बिछड़ गया है, कोई उससे पूछे कि आप कौन हो, कहां के रहने वाले हो, किसके बच्चे हो, तो उसे मालूम नहीं है। अगर वो हमें पहुंचाना भी चाहे तो पहुंचा नहीं पाएंगे। सबसे जरूरी है कि हम सभी भटक रहे थे। अब सोचिए उस बच्चे को ये तीन जवाब मिल जाएं और जिसको वो ढूंढ रहा था वो उसको मिल जाए, तो अब क्या फर्क होगा।

एक है ढूंढना और एक है मिलने के बाद का जीवन। अब वो समय आ चुका है। ढूंढने का काम खत्म। अब हम उससे मिलें। मिलने के बाद एक बहुत सुंदर प्यारा-सा रिश्ता बनाएं। फिर वो जीवन कैसा होगा। यह हमारा जीवन है, लेकिन उस जीवन में हम उतनी खुशी, सुख, आराम अनुभव नहीं कर रहें तो फिर हमारा जीवन संघर्ष में ही बीतता है और हम जीवन का आनंद नहीं उठा पाते हैं। चेहरों पर मेहनत दिखाई देती है, इसलिए बहुत कुछ करना पड़ता है खुश रहने के लिए। वो खुशी हमारी निरंतर नहीं है।

आज हम अपने जीवन को देखें तो जीवन की गुणवत्ता क्या है? हमारी निजी गुणवत्ता क्या है, मेरे पेशेवर जीवन की गुणवत्ता क्या है। मेरे पारिवारिक जीवन की गुणवत्ता क्या है। मेरे संबंधों में मधुरता कहां है। कुछ पल रुककर हमें यह सोचना पड़ेगा कि अगर हम जीवन में कुछ बदलना चाहें, तो क्या बदल सकते हैं। तो हमारे पास बहुत कुछ आएगा बदलने के लिए। रिश्तों में कहीं दूरियां आ रही हैं, वापस मुझे सहज बनना है। छोटी-छोटी बातों में, गलतफहमी के कारण हम दूर हो रहे हैं। पेशेवर जीवन का हम आनंद लेना चाहते हैं, लेकिन उसमें आज तनाव, अवसाद आदि सामान्य शब्द बन चुके हैं। लेकिन हमने उनको स्वीकार कर लिया। उन्हीं के साथ अपना जीवन चलाते गए। हम सबकुछ कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से या जिस गुणवत्ता से वो होना चाहिए, उसकी कमी है। कर रहे हैं, लेकिन उसका जो आनंद है, जो उसमें मुधरता चाहिए, सहजता चाहिए, वो नहीं है।

बीके शिवानी
(लेखिका ब्रह्मकुमारी हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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