बुनियादी सरंचना में निवेश जरुरी

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वित्त मंत्री के सामने चुनौती इकॉनमी को तीव्र गति पर लाने की थी, रोजगार और उत्पादन का सुचक्र पुन: स्थापित करने की थी। जनता को रोजगार मिले तो उसकी आय बढ़ती है। उस आय से जनता बाजार में सेवाएं और माल खरीदती है, जिससे बाजार में मांग उत्पन्न होती है। इससे माल बनाने के लिए निवेश करना उत्पादक के लिए लाभप्रद हो जाता है। उस निवेश से पुन: रोजगार उत्पन्न होते हैं। यही वह सुचक्र है जो नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन की तिहरी मार से कमजोर पड़ गया है। इस सुचक्र को पुन: स्थापित करने के लिए विा मंत्री ने बुनियादी संरचना में भारी निवेश करने का निर्णय लिया है, जो कि सही दिशा में है। लेकिन यह निवेश मुख्यत: पूंजी सघन कार्यों में किया जाएगा, इसलिए इसका जमीनी अर्थव्यवस्था को गति देने में कम ही लाभ मिलेगा। हाईवे बनाने की सार्थकता तब है जब उस पर दौडऩे वाली ट्रकों की कतारें लगी हों। हालांकि हाईवे बनाने की प्रक्रिया से भी बहुत कुछ जुड़ा हुआ है। एक हाईवे बनाने के लिए पहले एसकैवेटर से जमीन खोदी जाएगी, सीमेंट फैट्री से सीमेंट खरीदी जाएगी, सीमेंट फैट्री द्वारा खनिज निकालने के लिए पुन: मशीन का उपयोग होगा, बड़ी ट्रकों से वह सीमेंट हाईवे तक लाई जाएगी और उसके बाद ऑटोमेटिक मशीनों से हाईवे का निर्माण किया जाएगा। जाहिर है, कड़ी से कड़ी जुड़ती जाएगी और बड़े दायरे में आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी। मगर हाईवे बनाने की इस संपूर्ण प्रक्रिया में लगभग 15 प्रतिशत रकम ही श्रमिक के हाथ में जाती है। शेष रकम ऊपर-ऊपर घूमती रहती है।

इस रकम का जमीनी अर्थव्यवस्था से जुड़ाव नहीं हो पाता है। यही वजह है कि बुनियादी संरचना में पूंजी सघन निवेश से अर्थव्यवस्था में पुन: गति आ पाना कठिन होता है। यह वैसा ही है जैसे बेरोजगार हुए कर्मी को फ्रिज खरीदने के लिए रकम देने से उसकी आय में वृद्धि नहीं होती है। जरूरत यह थी कि छोटे और विशेषकर श्रम सघन उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता। इसके लिए श्रम सघन उपायों से उत्पादित होने वाले माल जैसे कपड़े, हवाई चप्पल आदि पर आयात कर बढ़ाए जाते और इन उत्पादों को बनाने वाली बड़ी स्वदेशी कंपनियों पर भी कॉर्पोरेट टैक्स तथा जीएसटी बढ़ाया जाता। ऐसा होता तो इन चीजों के उत्पादक छोटे उद्योगों को बाजार में माल बेचने में सहूलियत होती और वे रोजगार उत्पन्न करते। इससे उत्पादन, रोजगार, बाजार में मांग तथा निवेश का सुचक्र पुन: स्थापित हो सकता था। बीमारी से कमजोर हो चुके व्यक्ति को फिर से खड़ा करने के लिए टॉनिक देना होता है। ठीक वैसे ही संकट में आई अर्थव्यवस्था को इस समय रोजगार का टॉनिक देने की जरूरत थी। लेकिन ऐसी कोशिश इस बजट में नहीं दिख रही है। वित्त मंत्री का अनुमान है कि आगामी वर्ष में वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत होगा। अनुमान का आधार यह है कि अर्थव्यवस्था चल निकलेगी और विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये की रकम अर्जित हो जाएगी। बजट में एक सार्थक पक्ष बुनियादी संरचना के नगदीकरण का है। हाईवे, बिजली की ट्रांसमिशन लाइन, रेल लाइन, बंदरगाह, हवाई अड्डे इत्यादि जो सुचारू रूप से चल रहे हैं, उनका निजीकरण करके अथवा उन्हें निजी संचालकों को ठेके पर देकर रकम अर्जित करने का ऐलान वित्त मंत्री ने किया है।

इस रकम का निवेश दूसरे ऐसे कार्यों में किया जा सकता है जो आज के माहौल में जरूरी हैं। यह नीति सही दिशा में है। साथ-साथ वित्त मंत्री ने तमाम सार्वजनिक इकाइयों के निजीकरण का भी अजेंडा सामने रखा है। इनमें एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन, आईडीबीआई बैंक, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड, पवन हंस इत्यादि कंपनियां हैं। इन मदों से वित्त मंत्री ने 1.75 लाख करोड़ रुपये की विशाल रकम अर्जित करने का आगामी वर्ष में अनुमान लगाया है जो कि वर्तमान वर्ष के 20 हजार करोड़ से लगभग 10 गुना अधिक है। इतनी बड़ी रकम विनिवेश से अर्जित करने का लक्ष्य साधना कठिन है फिर भी यह असंभव नहीं है। हां, इसे अमल में लाना एक बड़ी चुनौती जरूर रहेगी।दो सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की बात भी वित्त मंत्री ने कही है। हालांकि उन बैंकों के नाम का खुलासा नहीं किया है। यह घोषणा अति महत्वपूर्ण है। सरकारी बैंकों की अकुशलता से हुए घाटे की भरपाई करके उन्हें जीवित रखने के लिए बीते समय में सरकार उनमें भारी पूंजी निवेश करती आई है। इस बजट में भी 20,000 करोड़ रुपये की रकम इस कार्य के लिए आवंटित की गई है। अच्छा है कि पूर्व की तुलना में यह कम है। इन बैंकों में पूंजी डालने के स्थान पर इनका निजीकरण करके इनसे रकम अर्जित करना ज्यादा युक्तिसंगत है। इस कदम के लिए वित्त मंत्री बधाई की हकदार हैं।

वित्त मंत्री ने अनुमान लगाया है कि वर्तमान वर्ष 2020-21 के वित्तीय घाटे 9.5 प्रतिशत की तुलना में आगामी वर्ष में वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत होगा। यह अनुमान इस बात पर टिका हुआ है कि अर्थव्यवस्था चल निकलेगी और विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये की रकम अर्जित हो जाएगी। इन दोनों ही स्रोतों से अगर पर्याप्त रकम मिल जाए तो यह संभव हो सकता है लेकिन इसके साथ अनिश्चितता भी जुड़ी है। यदि इन मदों से पर्याप्त रकम नहीं मिल सकी तो आगामी वर्ष में भी हमारा वित्तीय घाटा अनुमानित 6.8 प्रतिशत के स्थान पर इससे अधिक होने की संभावना बनती है। उस परिस्थति में अर्थव्यवस्था पर संकट आ सकता है। यदि उस वित्तीय घाटे की भरपाई रिजर्व बैंक से ऋ ण लेकर की गई और रिजर्व बैंक ने उसके लिए नोट छापे तो महंगाई बढ़ेगी। यदि सरकार ने बाजार से भारी मात्रा में ऋ ण लिए तो ब्याज दर बढ़ेगी, जो पुन: अर्थव्यवस्था को मंद करेगी। कुल मिलाकर देखा जाए तो यह बजट इस आशा पर टिका हुआ है कि बुनियादी संरचना में निवेश से अर्थव्यवस्था की धुरी घूमने लगेगी और निजीकरण से पर्याप्त रकम मिल जाएगी। लेकिन दोनों ही बिंदुओं पर अनिश्चितता बनी हुई है। इसलिए अभी की स्थिति में निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। खतरा टला नहीं है। अर्थव्यवस्था पर संकट बना रह सकता है। शेयर बाजार के उछलने से उत्साहित नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका वास्तविक अर्थव्यवस्था से संपर्क टूट गया सा लगता है।

भरत झुनझनवाला
(लेखक अर्थ विशेषज्ञ हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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