बाजार को पसंद-विपक्ष को नापसंद

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कोविड-19 के कहर के बाद और किसान आंदोलन के बीच आया बजट 2021 उम्मीदों के मुताबिक बाजार को तो खूब भाया, लेकिन विपक्ष ने उसे सिरे से खारिज कर दिया। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का यह बजट असल में सरकार के विरोधियों को उकसाने वाला है। सरकार ने हिम्मत दिखाते हुए पहली बार फिस्कल डेफिसिट को बढऩे दिया है। उसने इन्फ्रास्ट्रचर को बढ़ावा देने के लिए जमकर खर्च करने की तैयारी दिखाई है। सरकार ने बजट में खर्च 34 फीसद बढ़ाया है, जो देश के आर्थिक इतिहास में नया अध्याय होगा। सरकार तीन कृषि कानूनों के चलते अभी जो मुसीबतें झेल रही है, उससे कहीं ज्यादा परेशानी उसे आने वाले दिनों में तब उठानी पड़ेगी, जब वह बजट में प्रस्तावित कदम उठाएगी। सरकार ने हिम्मत दिखाकर लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन का पब्लिक इश्यू लाने की मंशा जताई है। जब देश महामारी के चलते गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा हो, तब सरकार के यह कदम उठाने की वजह समझ में आती है। सरकारी कंपनी एलआईसी अपनी कुछ हिस्सेदारी पब्लिक को बेचेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कंपनी 10 फीसद शेयर भी बेचती है, तो सरकार को अंदाजन एक लाख करोड़ रुपये की आमदनी होगी, लेकिन विपक्ष के रुख और एलआईसी की इम्प्लॉई यूनियनों की ताकत को देखते हुए कंपनी के शेयर बेचना मुश्किल होगा।

पहले की सरकारों ने भी इस बारे में गंभीरता से विचार किया था, लेकिन कंपनी के साथ इतने सारे हित जुड़े हैं कि उसका इशू जल्दी लाना मुश्किल होगा। यह बजट विश्लेषकों को दक्षिणपंथी रुझानों वाला लगा, क्योंकि दो सरकारी बैंक को फिर प्राइवेट बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। इंदिरा गांधी ने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके इतिहास रचा था। बैंकों को बेचना आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से बहुत बड़ी घटना होगी। बजट का एक और प्रस्ताव बहुचर्चित होने जा रहा है। कोविड के चलते जो आर्थिक नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए सरकार ने बजट में बहुत से कदम उठाए हैं, लेकिन राजनीतिक गतिरोध के चलते सुधार के कार्यक्रमों को अमल में लाना मुश्किल होगा और उसमें देरी हो सकती है। शेयर बाजार में आया उछाल बताता है कि मिडिल और बिजनेस लास को बजट अच्छा लगा है, लेकिन यह बजट भारतीय राजनीति में बड़े खेल खिला सकता है। जो काम मनमोहन सिंह की सरकार 10 साल नहीं कर सकी, उसको मोदी सरकार ने करने की मंशा बजट में दिखाई है। आम आदमी पर कोविड के नाम से कोई नया टैक्स नहीं लगा है, जो अच्छी खबर है। बजट में 35,000 करोड़ रुपये का प्रावधान वैक्सीन के वास्ते किया गया है, जिससे आम लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। बजट में विदेशी निवेशकों को प्रभावित करने वाली बहुत सी बातें हैं।

डेवलपमेंट फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इससे इन्फ्रास्ट्रचर से जुड़ी कंपनियों में निवेश करने वाले विाीय संस्थानों को सपोर्ट मिलेगा। बजट में एसेट मॉनिटाइजेशन मैनेजमेंट प्रोग्राम को धार देने की कोशिश की गई है। सरकार इसके जरिए रेलवे, एयरपोर्ट, नेशनल हाईवे, स्पोर्ट्स स्टेडियम से पैसा बना सकती है, लेकिन राज्य सरकारें और विपक्ष सपोर्ट नहीं करेंगी तो यह काम जल्द आगे नहीं बढ़ पाएगा। बहुत से विश्लेषकों ने सराहना की है, लेकिन यह बजट ऐसा है कि इसके प्रस्तावों को लागू करने के लिए सरकार को विपक्ष का सहयोग हासिल करने और विरोधियों को मनाने की जरूरत पड़ेगी। कृषि कानूनों के चलते किसानों में जो असंतोष पैदा हुआ है, उसे देखते हुए इस सुधारवादी बजट के प्रस्ताव कैसे लागू होंगे, यह देखने वाली बात होगी। बजट में बहुत से फैसले ऐसे हैं, जो अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकते हैं। वे साहसिक हैं और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाले हैं, लेकिन उन पर अगर सही से अमल नहीं हुआ तो नफा-नुकसान का लेखा-जोखा फिर से करना पड़ेगा। बजट को इसलिए भी साहसिक मानना पड़ेगा क्योंकि सरकार ने निजीकरण शब्द का प्रयोग निसंकोच किया है। अब तक की सरकारें निजीकरण के नाम से डरती थीं, लेकिन इस सरकार ने विनिवेश के बजाय निजीकरण के प्लान का ऐलान करके हिम्मत दिखाई है।

शीला भट्ट
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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