ऐसा गणतंत्र दिवस कभी नहीं देखा

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मंगलवार को कुछ घंटों के लिए दिल्लीवासियों की सांसें थम गई थीं, जब कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन हिंसक हो गया। दिल्ली की सड़कों पर ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर दिखाई दे रहे थे। सरकार-कानून व्यवस्था गायब ही लग रही थी। माहौल तनावपूर्ण था, बावजूद इसके दिल्ली पुलिस संयम से पेश आई। कुछ एक दुर्घटनाओं के सिवा काफी हद तक सूझबूझ से काम लिया।

दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस पर किसान नेताओं को शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च निकालने की मंजूरी दी थी, तभी से लोगों के मन में आशंका थी कि लाखों किसानों का ट्रैक्टर मार्च शांतिपूर्ण कैसे हो सकता है? एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली के सिंघु, नांगलोई, टीकरी, गाजीपुर और लोनी बॉर्डर पर तीन से चार लाख किसान इकट्ठा हुए थे।

ये ट्रैक्टर परेड में हिस्सा लेने या उसे सपोर्ट करने देश के अलग अलग हिस्सों से राजधानी पहुंचे। ट्रैक्टर हजारों की संख्या में थे। अगर महज 200 ट्रैक्टर भी इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के बीच राजपथ पर जमा हो जाते तो सरकार पर बड़ा दबाव बना सकते थे।

गणतंत्र दिवस का समारोह तो शांति से हो गया, लेकिन किसान बैरिकेड्स तोड़कर दिल्ली में घुसने में कामयाब रहे। सैकड़ों ट्रैक्टर तकरीबन 5-6 घंटे तक समूची दिल्ली को आतंकित करते रहे।

कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर ज्यादातर पंजाब के किसान मैदान में उतरे हैं। आंदोलन में शामिल कई नेता पंजाब और हरियाणा की राजनीति में भी रहे हैं। जमीनी राजनीति का उनका अनुभव दशकों का है, इसलिए माना जाता था कि आंदोलन सरकार को भारी पड़ सकता है। लेकिन, दिल्ली में आज जो कुछ हुआ, उससे आंदोलन को बड़ा धक्का पहुंचा है। जो आंदोलन अब तक सरकार पर हावी हो रहा था, उसे अब अपना बचाव करना पड़ रहा है।

दिल्ली की कड़ाके की ठंड में आंदोलन चला रहे किसानों के प्रति आमजन की भी सहानुभूति थी। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने दिल्ली पुलिस और प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन जो टीवी पर लोगों ने देखा, उसे भुलाया नहीं जा सकता है। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली सड़कों पर अराजकता का ऐसा नजारा देश के लिए शर्मनाक है। ITO और लाल किले पर जो कुछ हुआ, उसकी बड़े-बड़े किसान नेताओं ने भले ही कड़ी निंदा की है, पर आंदोलन में दरार सामने आ गई है।

आज की घटना से यह भी स्पष्ट हो गया है कि जो किसान दिल्ली में घुस आए थे, उनका इरादा दिल्ली में डेरा डालकर एक लंबा आंदोलन चलाने का था। हालांकि जब वे सेंट्रल दिल्ली में ITO से आगे न बढ़ पाए तो लाल किले पर हंगामा मचाया। दिल्ली पुलिस के एक अफसर के अनुसार, पाबंदी के बावजूद दिल्ली में किसानों का ट्रैक्टरों के साथ घुस आना पूर्व नियोजित था।

पंजाब से ट्रैक्टर लेकर आए हुए किसानों ने पुलिस को कई जगह पर मात दी। कुछ किसानों ने ट्रैक्टर ऐसे खतरनाक ढंग से चलाए कि आतंक का माहौल बन गया। सरकार विरोधी आवाज भी ऐसी अराजकता को सपोर्ट नहीं कर सकती है। शायद इसलिए बड़ी मेहनत से खड़े हुए इस आंदोलन को नुकसान होते देख कई नेता यह आरोप लगाने लगे कि लाल किले में हुई घटना एक षड्यंत्र है।

दरअसल, पिछले दो दिनों से कुछ किसान नेता कहने लगे थे कि पुलिस के तय रास्ते पर वे नहीं चलेंगे। कल शाम को लोनी बॉर्डर पर ट्रैक्टर मार्च के रिहर्सल के दौरान भी हंगामा हुआ था। पुलिस को तभी अंदाजा हो गया था कि किसानों की तैयारी आगे बढ़ चुकी है। यह भी जानना भी जरूरी है कि सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर रिहर्सल शांतिपूर्ण रही थी।

गाजीपुर बॉर्डर से कई किसान ट्रैक्टरों के साथ देश की संसद, सुप्रीम कोर्ट, राजपथ और राष्ट्रपति भवन के काफी करीब पहुंच गए थे। लगभग तीन घंटे दिल्ली के अतिविशिष्ट इलाके में आज भय और अंदेशा का माहौल छाया रहा। गांव-गांव से आए किसान मानो अपनी ताकत और गुस्से का प्रदर्शन कर रहे थे।

दैनिक भास्कर ऑनलाइन ने लाल किले पर तैनात पुलिस अफसर से जब सवाल किया कि भीड़ को रोका क्यों नहीं? उनका जवाब था कि किसान बड़ी संख्या में थे और बहुत गुस्से में थे। आंदोलन के नाम पर दिल्ली में जो कुछ हुआ, उसके परिणाम लंबे समय तक दिख सकते हैं। पुलिस अब सख्ती बरतेगी। उधर, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के काफी किसान इस आंदोलन से अलग हो सकते हैं जबकि पंजाब से किसान डटे रहेंगे। एक नई रणनीति के तहत काम करेंगे।

शीला भट्ट
(लेखिका पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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