देश में वैसीनेशन का कार्य शुरू करने की तैयारी चल रही हो, लेकिन उससे पहले ही धार्मिक संगठनों ने विरोध जताना शुरू कर दिया है। यह विरोध भारत के प्रमुख धर्म हिंदू व मुस्लिम संगठनों ने वैसीन में उन पशुओं के अवशेष मिलने के कारण हो रहा है, जिन पशुओं से घृणा या पूजा की जाती है। लगभग चार दिन पहले देश के नौ मुस्लिम संगठनों ने वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन मिलने के कारण वैसीन के इस्तमाल करने से इनकार किया था। उन्होंने इस बाबत फतवा भी जारी किया था। इस्लामिक धार्मिक गुरुओं ने सुअर की चर्बी का इस्तेमाल होने की जानकारी देते हुए बताया था कि पोर्क से बने किसी भी उत्पाद को प्रयोग करना हराम है। जबकि विश्व के शीर्ष इस्लामी संगठन फतवा काउंसिल ने कोरोना वायरस की वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन मिलने पर भी इसे जायज करार देते हुए वैक्सीनेशन की हिमायत की थी। इस बाबत भारत की प्रमुख शैक्षिक संस्था दारुल उलूम में छुट्टी के चलते फलवा विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इंडोनेशिया के इस्लामिक धर्मगुरुओं ने भी वैक्सीन तैयार करने की जानकारी मिलने पर सवाल खड़े किए हैं।
उत्तरी भारत के मुसलमानों पर दारुल उलूम के फतवे का प्रभाव अधिक पड़ता है। चार दिन बाद अब हिंदू महासभा के स्वामी चक्रपाणि का दावा है कि कोरोना वैक्सीन में गाय का खून है। उनका यह कहना कि जब तक इससे बनने की पूर्ण प्रक्रिया की जानकारी न मिले तब तक इसके प्रयोग की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। हिन्दू जनता में भ्रम व उदीसनता पैदा करना है। यदि धार्मिक संगठनों के द्वारा इस तरह का विरोध जारी रहा तो कोरोना की श्रृंखला टूटना असंभव होगा। इससे सरकार के प्रयासों को धका लगेगा। चक्रपाणि का कहना है कोरोना को खत्म करने के लिए धर्म को नष्ट नहीं किया जा सकता। धार्मिक विरोध का प्रभाव भारत की जनता पर कितना पड़ेगा यह तो वैक्सीनेशन के उपरांत ही पता चलेगा, लेकिन लोगों की आशंका यह है कि कहीं वैक्सीनेशन के बहाने विदेशों द्वारा यहां लोगों का धर्म भ्रष्ट करना तो नहीं है। देश की जनता की यह विशेषता रही है कि वह व्यतिगत हितों के सरंक्षण में अपनी धार्मिक भावना की आहुति नहीं दे सकते। चक्रपाणि का दावा है कि अमेरिका में निर्मित कोरोना वैसीन में गोरत का प्रयोग किया गया है।
गाय हिंदू धर्म में पूज्नीय है। धार्मिक भाव रखने वाले हिंदू सहन नहीं कर सकते। इस बारे में सरकार का दावा है कि देश में जो भी वैक्सीन लगाई जाएगी वह देश में निर्मित हुई होगी। अब सवाल यह है कि जो कंपनियां इस वैक्सीन को तैयार कर रही हैं, वह किस देश के फार्मूले पर काम कर रही हैं। यदि उन्होंने उन देशों के फार्मूले को अपनाया है, जिसे लेकर देश के हिन्दु-मुस्लिम धार्मिक संगठन विरोध कर रहे हैं तो या देश की जनता इस वैक्सीन का उपयोग कर पाएगी। धार्मिक संगठन चाहते है कि वैक्सीनेशन से पूर्व सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए जो वैसीन भारत में प्रयोग लाई जाएगी उसे किस प्रकार तैयार किया गया है। उसमें इन दोनों पशुओं के अवशेषों का तो प्रयोग नहीं किया गया है। स्थिति स्पष्ट होने पर ही धार्मिक भाव रखने वाली जनता इसका प्रयोग कर पाएगी। वैक्सीन को लेकर समाज में जो भ्रामक स्थिति बनी हुई है, उसे दूर करने के लिए सरकार को वैक्सीन का फार्मूला स्पष्ट करना चाहिए और यदि धार्मिक भावना आहत न हो तो धार्मिक संगठनों को वैक्सीनेशन की हिमायत करनी चाहिए।