संकीर्णता कोई दैवी प्रकोप नहीं

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ऑस्ट्रेलिया में क्रिसमस के अगले दिन हर परिवार अपने डाकिए को भेंट देता है। इस कारण इसे बॉक्सिंग डे कहा जाता है। यह धन्यवाद देने का काम है। आम आदमी के जीवन में डाकसेवा का बड़ा महत्व रहा है। हमारी डाक सेवा और रेल सेवा पूरी दुनिया में सराही गई है। रेलगाड़ी में एक कक्ष डाक विभाग का होता था। हर स्टेशन पर शहर से प्राप्त डाक को शहर दर शहर अलग-अलग बॉक्स में रखा जाता था। जिन लिफाफों पर डाक टिकट नहीं होता था उन्हें भी पते पर देते समय डाक टिकट के पैसे ले लिए जाते थे। पत्र प्राप्त करने वाले द्वारा पैसे में असमर्थता जताने पर उस पत्र को भेजने वाले के घर पहुंचाया जाता था। दोनों जगह से इनकार किए जाने पर उसे डैड लेटर बॉक्स में डाल देते थे। साधनहीन पति बिना डाक टिकट लगा खत डालता था और पत्नी समझ लेती थी कि पति खैरियत से है। इस तरह के बिना टिकट लगे ख़त को बैरंग खत कहते थे। साधनहीन लोग इस तरह बिना खर्च किए एक दूसरे की खैरियत जान लेते थे। साधनहीन व्यक्ति हर समस्या का निदान निकालने में समर्थ रहा है। उनके जीवन का प्रेरणा गीत तो बिस्मिल ने लिख दिया था कि देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म में गीत था डाकिया डाक लाया, खुशी की खबर लाया। ज्ञातव्य है कि उस दौर में मृत्यु का समाचार देने वाले पोस्ट कार्ड का एक छोटा-सा अंश काट देते थे। जनरल पोस्ट ऑफिस के दफ्तर के बाहर वे खत एक बोर्ड पर पिन लगाकर रख दिया जाता था कि गुमशुदा खत को खोजने वाला उसे प्राप्त कर सके। प्रेम पत्र लिखने की कला भी लोप हो गई है। आज एसएमएस की भाषा में भी नया आविष्कार कर दिया है। खाकसार ने अपने कई पढ़े-लिखे अनपढ़ मित्रों के प्रेमपत्र लिखकर कुछ पैसे भी कमाए हैं। एक विश्व प्रसिद्ध कथा है कि एक जांबाज़ व्यक्ति अपने मित्र से अपने प्रेमपत्र लिखवाता था। प्रेमिका पत्र में साहित्य का स्पर्श पाकर खुश हो जाती थी। उनका विवाह होने के बाद प्रेमिका को सत्य का ज्ञान हुआ। कुछ समय बाद एक युद्ध में उसका पति और पत्र लिखने वाला दोनों ही मारे जाते हैं, तो उस महिला ने कहा कि उसने एक बार प्रेम किया और दो बार खोया। एक दौर में 10 पैसे का पोस्टकार्ड, 25 पैसे का इंग्लैंड इनलैंड और 50 पैसे का लिफाफा आता था। बाजार की ताकतों ने महंगी कुरियर सेवा प्रारंभ की। महंगाई ईश्वर द्वारा रची गई समस्या नहीं है। लाभ लोभ के लालच में बाजार ने रची है। बाजार ने राजनीतिक विचारधारा का निर्माण किया है। इस तरह संकीर्णता कोई दैवी प्रकोप नहीं है। बाजार द्वारा रची गई व्यवस्था ने महंगाई को रचा है। गरीबी और महंगाई दोनों ही एक ही कारखाने में बने उत्पाद हैं।

साहित्य और सिनेमा दोनों ही माध्यमों ने पत्र का इस्तेमाल किया है। हसरत जयपुरी ने अपनी प्रेमिका को खत में एक नज्म भेजी थी, इसे ही राज कपूर ने संगम में गीत बनाया कि मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कहीं तुम नाराज ना होना। फिल्म में एक स्टॉक सीन है कि पत्र कालीन के नीचे चला गया और प्रेमियों में गलतफहमी हो गई। कालांतर में पत्र मिल जाता है, परंतु इस दरमियान जीवन का बसंत बीत जाता है। फिल्मों में प्रेम पत्र केंद्रित गीत प्रमुख हुए हैं। लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में सितारे बन गए, नजारे बन गए। निदा फ़ाज़ली का गीत है- यह खत है कि बदलती हुई रितु, नींव की क्यारी में खिले चांदी के कंगन। पत्थर की भी पूजा: ईसा मसीह के जीवन पर आजकल एक टेलीविजन सीरियल दिखाया जा रहा है जो भारत में ही बना है। अभी कथा के प्रारंभिक भाग में हम देख रहे हैं कि जन्म के समय ही उन्हें मार देने का आदेश दिया गया था। गोयाकि कंस पर हमारा एकाधिकार नहीं है। रावण, कंस, हिटलर सभी देशों में प्रकट होते रहे हैं। ईसा मसीह को सूली पर लटकाए जाने के समय का विवरण नाटकों में प्रस्तुत किया गया है। एक फिल्मकार ने ईसा के क्रॉस पर लटकाए गए जाने का विवरण फिल्म में प्रस्तुत किया। फिल्म में ईसा की हथेली पर पहला कीला ठोकने से पैर में अंतिम कीला ठोकने तक को प्रस्तुत किया गया। फिल्म के प्रदर्शन पर दर्शक सिनेमाघर में चीखने लगे। फिल्म को हिंसा के इस ग्राफिक वर्णन को दिखाने के कारण प्रतिबंधित करने की मांग की जाने लगी।

फिल्मकार ने बयान दिया कि उसका उद्देश्य उसे प्राप्त हो गया है। अब फिल्म पर प्रतिबंध लगाए जाने पर उसे ऐतराज नहीं है। अगर हम सिनेमा के परदे पर ईसा को कष्ट दिए जाने का विवरण सहन नहीं कर पा रहे हैं तो जब सचमुच यह घटा होगा तो ईसा को कितना दर्द हुआ होगा। केवल इस बात का एहसास जगाने के लिए फिल्म बनाई गई थी कि हमने संवेदना खो दी है। विगत सदी के छठे दशक में काक्का की कथा ‘आउटसाइडर’ का प्रकाशन हुआ। ऐसा पात्र रचा गया जिसे किसी प्रकार की भावना ही महसूस नहीं होती, यहां तक कि जब उसे मृत्युदंड सुनाया जाता है तब भी उसे कोई भय नहीं लगता। इस कथा से प्रेरित खाकसार की कथा ‘एक सेल्समैन की आत्मकथा’ पत्रिका ‘पाखी’ में प्रकाशित की गई थी। उसी दौर में ‘मैट्रिस’ श्रंखला भी बनाई गई, जिसमें प्रस्तुत किया गया कि मशीनें मनुष्य नामक बैटरीज से ऊर्जा प्राप्त करेंगी। मनुष्य का रोबोकरण विज्ञान फंतासी का केंद्रीय विचार रहा है। इसके साथ ही मानव निर्मित रोबो में भावना का उदय होना भी प्रस्तुत किया गया। खेल यह हो गया कि भावना विहीन मनुष्य और मशीनी मानव में भावना का संचारित होना साहित्य और सिनेमा में प्रस्तुत किया जाने लगा। इस विचार की श्रेष्ठ फिल्म ‘बाइसेन्टेनियल मैन’ मानी गई। इस फिल्म में एक रोबो को एक स्त्री से प्रेम हो जाता है। वह अपने विवाह के लिए चर्च और अदालत में प्रार्थनापत्र भेजता है। संस्थाएं असमंजस में पड़ जाती हैं।

कई वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आता है कि विवाह का आधार प्रेम है। वह किसी के साथ भी हो तो कोई ऐतराज नहीं किया जा सकता। मनुष्य तो अपनी भावना के कारण पत्थर को भी पूज कर आशीर्वाद प्राप्त कर लेता है। ‘बाइसेन्टेनियल मैन’ में जब सुप्रीम कोर्ट से विवाह की इजाजत मिलती है, तब तक रोबो की एसपायरी डेट आ चुकी है। रोबो अपनी एसपायरी के समय अपनी मानवी प्रेमिका का हाथ पकड़ता है और दोनों ही एक साथ प्राण देते हैं। अगर दुनिया वाले साथ जीने नहीं देते तो साथ मरना तो उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। दुख होता है कि आदमी झुनझुनों में कैसे बदल गए? यह गौरतलब है कि ईसा की तरह ग्रीक लोककथा से प्रेरित पीबीएस शैली ने ‘प्रोमिथियस अनबॉउंड’ लिखी। यह भी एक व्यति को सूली पर लटकाने की व्यथा- कथा है। प्रोमिथियस पर आरोप लगाया गया था कि उसने आवाम के लिए ज्ञान का प्रकाश चुराया था। धर्मवीर भारती ने से प्रेरित ‘प्रमुथ्यु गाथा’ लिखी परंतु इसमें यह मौलिक बात जोड़ी जिनके लिए प्रमुथ्यु प्रकाश लाया, वे लोग ही तमाशबीन की तरह उसके इर्द-गिर्द खड़े होकर तालियां बजाने लगें। प्रमुश्यु को सूली पर लटकाए जाने से अधिक दर्द आवाम के तालियां बजाने पर हुआ। ईसा और प्रमुथ्यु को दंडित करने की कथाओं का आज के भावनाहीन मनुष्य से या रिश्ता है। या एक लहे की खता सदियों पाई जा रही है। वर्तमान में आम आदमी की उदासीनता बड़ी समस्या है। गांधी जी अनशन पर बैठते तो अनगिनत लोग भी एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करते थे।

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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