गुप्त सेवा मतलब नि:स्वार्थ सेवा

0
325

सेवा करने का एकमात्र उद्देश्य देना होता है। इसलिए बचपन से सिखाया जाता है कि एक हाथ से दान करो, तो दूसरे हाथ को पता न चले। मतलब किसी को दिखावे के लिए, किसी से कुछ पाने के लिए हम सेवा नहीं कर रहे। तभी हमें सेवा की शक्ति मिलती है। गुप्त सेवा मतलब नि:स्वार्थ सेवा। यदि हम निमित भाव, निर्माण भाव और निर्मल वाणी से सेवा करेंगे तो इससे हमारी आत्मा की शक्ति बढ़ेगी और जिनकी हम सेवा कर रहे हैं उनकी भी शक्ति बढ़ेगी। सिर्फ खाना खिलाना, घर का काम करना या बाहर जाकर औरों को खाना खिलाने से सेवा नहीं हो रही, बल्कि खाना खिलाते हुए भी सुकून और शक्ति देने से सेवा हो रही है। यदि आपने अच्छे भाव से दिया तो आपकी मंशा आपके खाने के साथ सामने वाले को मिलती है। आपके द्वारा दिया हुआ धन सामान लाता है लेकिन आपकी शुद्ध मंशा आत्मा की शक्ति बढ़ाती है। तो इससे दो चीजें साथ चल रही हैं। एक जो हम बाहर कर रहे हैं और दूसरी जिस भावना से कर रहे हैं। आज हम चिंता और डर के माहौल में जी रहे हैं, तो हमें खाने के साथ उनको सुकून की ऊर्जा भी देनी है। जब आप लोगों को भोजन खिलाएं, तो इस भाव से कि हम परमात्मा का प्रसाद खिला रहे हैं। हमें चिंता नहीं करनी है क्योंकि इससे सेवा की अपोजिट एनर्जी चली जाती है। हमें समाज से डर और चिंता खत्म करनी है।

जो निमित होगा उसके मन में ये बात नहीं आएगी कि कल आटा कहां से आएगा, धन कहां से आएगा। आप सिर्फ यही कहना कि मैं परमात्मा का निमित मात्र सेवाधारी हूं, वो किसी न किसी को भेज देगा और सेवा हो जाएगी। जब हमारी मंशा अच्छी होती है तो पता नहीं कहां-कहां से लोग आ जाते हैं और सेवा हो जाती है। आजकल देखो छोटे-छोटे बच्चे भी खाना बना रहे हैं और सेवा कर रहे हैं। वही छोटे-छोटे बच्चे जिनके लिए उनके पैरेंट कहते थे ये तो कुछ करते ही नहीं है। आज वही बच्चे आटा गूंथ रहे हैं, रोटी बना रहे हैं, केक बना रहे हैं, झाडू-पोछा कर रहे हैं, गार्डन ठीक कर रहे हैं। जब परिस्थिति आती है तो उसके साथ हमारे अंदर सहनशक्ति, अपने आप में बदलाव लाने की शक्ति स्वत: आ जाती है। जो कि ये सबूत है कि ये सारी शक्तियां हमारे अंदर ही हैं। हम सिर्फ उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे थे। ये बच्चे आज इतनी सेवा क्यों कर रहे हैं क्योंकि इस समय हवा में सेवा के वाइब्रेशन हैं। बच्चे हर सेवा को खेल समझकर करते हैं क्योंकि उनके अंदर अहम नहीं होता। उस बच्चे ने अपने जीवन में अभी कुछ प्राप्त नहीं किया है। वो पवित्रता और विनम्रता उन्हें अहमहीन बनाती है। ये जो बच्चे इस समय अपने पैरेंट्स की सेवा कर रहे हैं, यह हमें सबूत देता है कि अगर हम बच्चे को कुछ सिखाना चाहते हैं, उनमें अच्छे संस्कार डालना चाहते हैं तो इसका सबसे आसान तरीका है कि बच्चे को शुरुआत से ही ये सबकुछ सिखाना शुरू कर देना चाहिए।

कई बार पेरेंटस कहते हैं कि बच्चे ध्यान नहीं करते, योग नहीं करते, उन्हें ये सबकुछ सिखाने का आसान तरीका है कि आस-पास के लोग ये करना शुरू कर दें तो उन्हें देखकर बच्चे अपने आप शुरू कर देंगे। और दूसरी बात कि बच्चों में बड़ों की अपेक्षा एडजस्ट करने की शक्ति ज्यादा होती है। क्योंकि अभी उनके संस्कार बहुत नरम होते हैं, जिन्हें कैसे भी ढाल सकते हैं। तो बच्चों के अंदर कोई भी परिवर्तन लाना सहज हो जाता है। घरेलू कार्यों में सहायता करना भी सेवा है। तो बच्चे घर के छोटे-छोटे कार्यों में सहायता करके भी सेवा का बल जमा कर लेते हैं। मां के गर्भ में जो बच्चा या जो आत्मा होती है, उसके ऊपर पेरेंटस के वाइब्रेशन का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। बच्चे बड़े के वाइब्रेशन के बहुत जल्दी कैच करते हैं। तो उन पैरेंट्स को इस समय बहुत ध्यान रखना होगा कि मन में डर, चिंता के ऐसी कोई विचार नहीं लाने हैं, जिसका प्रभाव उस बच्चे पर पड़ रहा हो। आप उनको सिर्फ यही वाइब्रेशन भेजिए कि आप बहुत सुंदर दुनिया में आने वाले हो, देखो सब कितना सहयोग करते हैं, हरेक एक-दूसरे के लिए हैं, सेवा भाव सबके अंदर कूट- कूट कर भरा है, हरेक परमात्मा का फरिश्ता है। आप भी भगवान का एक फरिश्ता हो जो हमारे घर आ रहे हो। बस ऐसा ही सोचना, बोलना है। जब वो बच्चा आएगा तो इस सृष्टि के लिए एक फरिश्ता आएगा।

बीके शिवानी
(लेखिका ब्रह्मकुमारी हैं ये उनके समाजहित में विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here