पंचांग भेद की वजह से दो दिन कार्तिक पूर्णिमा

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रविवार, 29 नवंबर को कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि भी रही। ये तिथि दोपहर करीब 12.10 बजे तक रही, इसके बाद पूर्णिमा तिथि शुरू हो गई। पंचांग भेद की वजह से 30 नवंबर को कार्तिक मास की पूर्णिमा मनाई जाएगी। पर साथ ही 29 को भी मनाई गई। इसे देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार रविवार को भगवान विष्णु और शिवजी की विशेष पूजा करनी चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी पर गणेश पूजन से पूजा की शुरुआत करें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति और शिवलिंग की पूजा करें। विष्णुजी को केसर, चंदन मिले जल से स्नान कराएं। चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल चढ़ाएं। शिवलिंग को दूध मिले जल से स्नान के बाद सफेद आंकड़े के फूल, अक्षत, बिल्वपत्र अर्पित करें। दोनों भगवान को कमल फूल भी अर्पित करें। दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाएं। दीप-धूप जलाएं। आरती करें। मंत्रों का जाप करें। कार्तिक मास की पूर्णिमा पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। शाम को नदी में दीपदान करने का विशेष महत्व है। इस तिथि पर किए गए दान-पुण्य, जाप आदि का दस यज्ञों के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा सुनी जाती है। शाम को मंदिरों, चौराहों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप जलाए जाते हैं और नदियों में दीपदान किया जाता है। इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहा जाता है। पुराने समय में इस तिथि पर शिवजी ने त्रिपुरासुर नाम के दैत्य का वध किया था, इस कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं। एक अन्य मान्यता है कि इस दिन देवताओं की दीपावली होती है। इसीलिए इसे देव दीपावली कहते हैं। इस दिन से कार्तिक मास के स्नान समाप्त हो जाएंगे। कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान, दीपदान, पूजा, आरती, हवन और दान का बहुत महत्व है।

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