कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डॉ. मनमोहनसिंह की अध्यक्षता में तीन कमेटियां बना दी हैं, जिनका काम पार्टी की अर्थ, सुरक्षा और विदेश नीतियों का निर्माण करना है। इन कमेटियों में वे कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी भी हैं, जिन्होंने कांग्रेस की दुर्दशा सुधारने के लिए पत्र लिखा था। इस कदम से यह अंदाज तो लगता है कि जिन 23 नेताओं ने सोनियाजी को टेढ़ी चिट्ठी भेजी थी, उनसे वह भयंकर रुप से नाराज़ नहीं हुईं। ये बात और है कि उस चिट्ठी का जवाब उन्होंने उनको अभी तक नहीं भेजा है। उनकी इस कोशिश की तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने कोई ऐसे संकेत नहीं उछाले, जिससे पार्टी में टूट-फूट के आसार मजबूत हो जाएं लेकिन यह समझ में नहीं आता कि उक्त तीनों मुद्दों पर पार्टी के बुजुर्ग नेताओं से इतनी कसरत करवाने का उद्देश्य क्या है ?
मानों उन्होंने कोई दस्तावेज तैयार कर दिया तो भी उसकी कीमत क्या है ? पार्टी में क्या किसी नेता की आवाज में इतना दम है कि राष्ट्र उसकी बात पर कान देगा ? उसकी बात पर ध्यान देना तो बहुत दूर की बात है। सारा प्रचारतंत्र जानता है कि कांग्रेस का मालिक कौन है ? मां, बेटा और अब बेटी। बाकी सबकी हैसियत तो नौकर-चाकर कांग्रेस (एन.सी.= नेशनल कांग्रेस) की है। जो कांग्रेस आज अधमरी हो चुकी है, पहले उसे जिंदा करने की कोशिश होनी चाहिए या देश को बचाने की ? देश बचाने के लिए अभी तो नरेंद्र मोदी ही काफी हैं। यदि कांग्रेस मजबूत होती और संसद में उसके लगभग 200 सदस्य होते तो वह एक वैकल्पिक सरकार बना सकती थी।
वैकल्पिक छाया सरकार के नाते उसके सुझाव में थोड़ा दम भी होता लेकिन अब जो पहल हो रही है, वह हवा में लाठी घुमाने-जैसा है। कांग्रेस के सामने अभी उसके अस्तित्व का संकट मुंह फाड़े खड़ा हुआ है और वह वैकल्पिक नीतियां बनाने में लगी रहेगी। इस समय ये तीन कमेटियां बनाने की बजाय उसे सिर्फ एक कमेटी बनानी चाहिए और उसका सिर्फ एक मुद्दा होना चाहिए कि कांग्रेस में कैसे जान फूंकी जाए ? इस समय कांग्रेस का दम घुट रहा है। यदि उसे ताजा नेतृत्व की हवा नहीं मिली तो हमारा लोकतंत्र कोरोनाग्रस्त हो सकता है। सक्षम विपक्ष के बिना कोई भी लोकतंत्र स्वस्थ नहीं रह सकता।
डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)