राजा वही जो प्रजा मन भाए

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भारत सरकार ने ओवर द टॉप ओ.टी.टी पर प्रस्तुत खबर और वेब सीरीज को सेंसरशिप के दायरे में लाने का कानून पास किया है। यह कैसे किया जाएगा यह अभी तय नहीं हो पाया है। ‘वायर’ खबर में व्यवस्था के निकम्मेपन का पर्दाफ़ाश किया जाता है। वेब सीरीज में अश्लील दृश्य होते हैं। मुद्दा यह है की अश्लील किसे करार दिया जा सकता है।

दुनियाभर की तमाम अदालतों में कभी ना कभी किसी किताब या फिल्म पर लगाए गए अश्लीलता के आरोपों को खारिज किया है। लेडी चैटर्ली और जेम्स जॉयस के उपन्यास ‘यूलिसिस’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग खारिज हुई। मुकदमे में दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद जस्टिस ने फैसला दिया कि किसी भी रचना के एक अंश पर आपत्ति उठने का कोई अर्थ नहीं है। पूरी रचना के समग्र प्रभाव को जानना जरूरी है। क्या लेखक का उद्देश्य मात्र सनसनी फैलाकर पैसा कमाना है? लेखक का उद्देश्य और समग्र प्रभाव देखना आवश्यक है। जेम्स जॉयस के 800 पृष्ठ के उपन्यास में मात्र कुछ प्रश्नों पर तथाकथित आपत्तियां उठाई गई हैं।

भारत के कानून विधान में अश्लीलता को परिभाषित नहीं करते हुए यह संकेत दिया गया है कि इस शब्द के अर्थ के लिए अंग्रेजी भाषा की वेबस्टर डिक्शनरी III के पृष्ठ 1559 पर लिखा है कि तर्क के स्तर पर विद्रूप दिखने वाली सामग्री जो पाठक के मन में जुगुप्सा जगाए और नैतिक मूल्यों को नकारे तथा सनकीपन से भरी हो उसे अश्लील मान सकते हैं।

यह इंडियन पीनल कोड में सेक्शन 292, 293, और 294 के तहत आता है जैसा कि रतन लाल की कानून की किताब में वर्णित है। जज को विवादित किताब या फिल्म दो बार पढ़ना और देखना चाहिए। पहली बार लेखक या फ़िल्मकार के नजरिए से और दूसरी बार पाठक या दर्शक के नज़रिए से। फिल्म में एक निर्वस्त्र स्त्री को किस तरह पेश किया गया है यह समझना जरूरी है। क्या दृश्य जुगुप्सा जगाता है? इस प्रकरण में देखने वाले या पढ़ने वाले के मन में विकृत भावना का ज्वार उठता है?

इरविंग वैलेस के उपन्यास ‘सेवन मिनट्स’ में एक धनवान व्यक्ति के कमसिन उम्र के बेटे पर हिंसा का आरोप लगता है। सफाई पक्ष का वकील कहता है कि एक अश्लील किताब के पढ़ने के बाद उसने हिंसा की है। किताब का प्रकाशक कहता है कि वह लेखक को नहीं जानता। लंबे चले इस मुकदमे का जज ही इस किताब का लेखक है। लड़कपन में उस पर नपुंसकता का हव्वा सवार था और एक तवायफ ने उसे अपने दुलार से इस हव्वे से मुक्त कराया था। उसी अनुभव के आधार पर उसने यह किताब लिखी है।

फैसला देते समय जज यह सब बातें स्वीकार करता है ताकि किताब प्रतिबंधित नहीं की जा सके। इस तरह सिद्ध होता है कि लेखक का इरादा पैसे कमाने का नहीं था वरन वह यह अभिव्यक्त करना चाहता है कि नपुंसकता मनोवैज्ञानिक है जिसकी जड़ में भय है। इस विषय में रोम का चर्च हर वर्ष उन किताबों की सूची प्रकाशित करता है, जिन्हें देखने से बचना चाहिए। फतवा नहीं देते कि फलां फिल्म या किताब प्रतिबंधित की जाती है। हमारे खजुराहो जैसे मंदिरों में अंकित छवियां यौन शिक्षा का काम करती हैं। पाठ्यक्रम में एवं शिक्षा और फिल्म तथा किताब कैसे पढ़ना, देखना चाहिए विषय शामिल करना चाहिए। कुशल शिक्षकों के अभाव के कारण पूरी शिक्षा प्रणाली जर्जर हो चुकी है।

कानून बनाना और उसे क्रियान्वित करना दो अलग-अलग बातें हैं। ग़ौरतलब है कि महामारी, बेरोज़गारी, अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत में गिरावट तथा जीडीपी का माइनस 23 अंक तक गिर जाने जैसी समस्याओं के निदान का कोई काम नहीं किया जा रहा है। अनावश्यक बातों पर फोकस है। बात जाकर यहां रुकती है कि राजा वही जो प्रजा मन भाए। तमाशबीन अवाम खुश है और सभी को इस खुशी में शामिल होना चाहिए। दरअसल वैचारिक विरोध प्रतिबंधित है।

नींद क्यों रात भर आती नहीं: लंदन के अखबारों में लोकप्रिय लोगों के जीवन काल में ही उनके समकालीन लोगों से मृत्यु के बाद प्रकाशित होने वाली श्रद्धांजलि लिखा ली जाती है। युद्ध के समय देश का सफल नेतृत्व करने वाले विंस्टन चर्चिल की शव यात्रा के समय उनके जीवन काल में दिए गए भाषणों का प्रसारण हुआ। उन्हें कब्र में लेटाते समय उनका प्रीरिकॉर्डेड ठहाका गूंज उठा। राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म ‘आनंद’ में भी कैंसर ग्रस्त नायक की मृत्यु के समय उसकी प्रीरिकॉर्डेड आवाज़ सुनाई देती है, जानी वॉकर का कहा गया संवाद राजेश खन्ना की आवाज़ में गूंजता है, ‘बाबूमोशाय, यह दुनिया एक रंगमंच है सभी पात्र अपनी भूमिका अदा करके पटाक्षेप कर जाते हैं’। अमेरिका में पीटी बरनम नामक व्यक्ति तरह-तरह के तमाशे रचकर धन कमाता था। एक बार उसने बंजर जमीन कौडिय़ों के दाम खरीदी। काबुली चने पानी में भिगोकर जमीन में गाड़े। चने के ऊपर उसने एक प्रतिमा रख दी। कुछ दिनों बाद छद्म नाम से पत्रकारों को आमंत्रित किया। काबुली चने और प्रतिमा बाहर आई। इस ‘पवित्र’ जमीन को खरीदने के लिए भीड़ लग गई।

बरनम ने लोहे और सीमेंट का सर्कस बिग टॉप बनाया जिसमें बारहों महीने सर्कस का तमाशा जारी रखा जा सकता था। पीटी बरनम ने ताउम्र स्टंट खड़े करके धन कमाया। उम्रदराज होने पर उसने पत्रकारों से निवेदन किया कि वे उसकी मृत्यु के बाद क्या लिखेंगे, यह मृत्यु के पहले ही प्रकाशित करें तो उसे अच्छा लगेगा। उसकी इच्छानुसार उसके जीवन काल में श्रद्धांजलि लिखी गई। कुछ माह पश्चात उसकी मृत्यु हुई। नोबेल प्राइज़ जीतने वाले लेखक अर्नेस्ट हेमिंग्वे की मृत्यु के समाचार दो बार प्रकाशित हुए। पहली बार हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु का समाचार प्रकाशित हुआ। दरअसल वे जलते हुए जहाज से कूद गए थे और एक घने वृक्ष की डालियों में बेहोश पाए गए थे। बहरहाल अर्नेस्ट हेमिंग्वे एक खंदक में बेहोश पाए गए। ‘द ओल्ड मैन एंड द सी’ तथा ‘फेयरवेल टू आर्म्स’ जैसे उपन्यास उन्होंने लिखे थे। कालांतर में हेमिंग्वे ने आत्महत्या की। उन्होंने आत्महत्या के पूर्व लिखा, ‘मैं अब शिकार नहीं कर सकता। यकृत खराब हो गया है, इसलिए शराब नहीं पी सकता। हाथ कांपते हैं इसलिए लिख नहीं पाता। मुझे अब जीवन निरुद्देश्य लगने लगा है।

इसलिए आत्महत्या कर रहा हूं।’ लंदन के अखबार में विशेष विभाग लोकप्रिय व्यक्तियों के समकालीन लोगों से मृत्यु पूर्व श्रद्धांजलि लिखा लेता है। दो प्रतिद्वंद्वी डॉक्टर एक-दूसरे की प्रतिभा के कायल थे परंतु सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त नहीं करते थे। शेसपीयर के एक नाटक में एंथॉनी नामक पात्र अपने दिवंगत मित्र सीजर को श्रद्धांजलि इस तरह देता है कि अवाम मर गए व्यक्ति के प्रति आदर से ओतप्रोत होकर अन्याय के खिलाफ क्रांति कर देते हैं । कभी-कभी कुछ लोग यह जानना चाहते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद उनके मित्रों और शत्रुओं के क्या विचार होंगे। प्राय: मृत व्यक्ति को बुराई नहीं की जा सकती। ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास ‘आरोग्य निकेतन’ एक नाड़ी वैद्य का जीवन चरित्र प्रस्तुत करता है। नाड़ी वैद्य मृत्यु का समय जान लेता है परंतु मरीज को बताता नहीं। नाड़ी वैद्य जान ले लेता है कि स्वयं उसकी मौत नज़दीक है। इस क्षण का विवरण इस तरह है, ‘मौत पैर में पायल बांध गांव की सीमा में आ गई है। पायल की आवाज बढ़ गई है अब पायल की आवाज नहीं सुनाई देती। शायद मौत सिरहाने खड़ी है’। मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर है, ‘मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर आती नहीं’।

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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