सांप ले रहे हैं हजारों की जान

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ग्रमीण भारत के सामने इन दिनों एक नई मुसीबत मुंह बाए खड़ी है। बीते 3 महीनों में, यानी बरसात के दौरान भारत भर में 20 हजार से ज्यादा लोग सांप के डसने से मौत के मुंह में समा गए हैं। दुनिया भर में हर साल सवा लाख से ज्यादा लोग सांप के काटने से मरते हैं। इसमें से अधिकांश मौतें जून से सितंबर के बीच होती हैं और मरने वालों में आधे से ज्यादा भारतीय होते हैं। मॉनसून से लेकर अभी तक सांप के बिलों और बांबियों में पानी भरा हुआ है। इस वजह से सांप बाहर निकलकर सुरक्षित स्थान की तलाश में हैं। यही समय सांप के मेटिंग का भी है और इसी मौसम में किसान धान, सोयाबीन और बाजरे की फसल बोता है। उसी दौरान सांपों के काटने की ये घटनाएं होती हैं। टोरंटो विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर ग्लोबल रिसर्च ने इंग्लैंड और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, तमिलनाडु की इरुला कोऑपरेटिव सोसायटी व अन्य संस्थाओं के सहयोग से इस मामले पर शोध के नतीजे पिछले दिनों सार्वजनिक किए। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2000 से 2019 के बीच भारत में करीब 12 लाख लोगों की सर्पदंश से मौत हो गई।

इनमें 97 फीसदी मौतें ग्रामीण क्षेत्र में, जबकि 3 फीसदी शहरी क्षेत्र में हुई हैं। इन मौतों में से 70 फीसदी केवल आठ राज्यों- बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में हुईं। जो लोग जिंदा बच जाते हैं, उनमें अधिकांश के शरीर के उस हिस्से या अंग को काटना पड़ता है, जहां सांप ने काटा है। रिपोर्ट के अनुसार सर्पदंश से होने वाली कुल मौतों के पांच गुना लोग तो अपंग बन जाते हैं। राज्य सरकारों ने सर्पदंश को राजकीय आपदा घोषित किया है। इसे भूकंप, बाढ़, सूखा, बादल फटना, सुनामी इत्यादि की सूची में रखा जाता है और राज्य सरकारें बाकायदा इसके लिए मुआवजा देती हैं। दुनिया भर में करीब 2500 प्रजाति के सांप हैं, जिनमें 40 फीसदी सांपों में ही विष पाया जाता है। इनमें से भी मात्र 10 फीसदी ही सांप ऐसे होते हैं, जो जानलेवा हैं। वहीं भारत में सांपों की 270 से ज्यादा प्रजातियां हैं।

इनमें 50 प्रजातियां जहरीली हैं। इसमें पांच सांप कॉमन हैं, जो जानलेवा हैं। भारत में जिन सांपों के काटने से इंसान की मौत होती है, उनमें ‘कोबरा’ सबसे आगे है। ऐसे ही कॉमन करैत सांप है, जो असर रात में ही काटता है। इस सांप को इंसानी गंध पसंद है। रसेल वाइपर और सोस्केल वाइपर सबसे एग्रेसिव सांप माने जाते हैं और इनकी आवाज दूर से ही सुनाई पड़ती है। इनके अलावा पश्चिमी पठार, दलदली एवं वन क्षेत्र में किंग कोबरा सांप भी मिलता है। पहले चारों सांप पूरे भारत में पाए जाते हैं, जिन्हें बिग-4 के नाम से जाना जाता है। सांपों के जहर को न्यूरोटॉसिक ओर हिमोटॉसिक वर्ग में विभाजित किया जाता है। इनका जहर मस्तिष्क एवं तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र, हृदय और सर्कुलेट्री सिस्टम पर प्रभाव डालता है। इसे रोकने के लिए सांप के जहर से ही दवा बनाई जाती है, जिसे एंटीवेनम सीरम कहा जाता है।

कहने को पीएचसी एवं सीएचसी स्वास्थ्य केंद्रों पर यह एंटीवेनम उपलब्ध है, लेकिन अधिकांश पीएचसी एवं सीएचसी केंद्रों पर फ्रिज ही नहीं हैं तो फिर इसे रखें कहां? अगर फ्रिज है भी, तो वहां ट्रेंड स्टाफ नहीं है। ये दोनों मिल भी जाएं, तो एंटीवेनम सीरम की अलग मुसीबतें हैं। आंध्र प्रदेश के कोबरा के जहर से बनने वाला एंटीवेनम सीरम बंगाल या राजस्थान के कोबरा के काटने पर कम असर करता है। जरूरत है कि देश के अन्य स्थानों के सांपों के जहर से भी एंटीवेनम सीरम तैयार हो। वैसे इस क्षेत्र में चेन्नै की ईरुला कोऑपरेटिव सोसाइटी ने काम किया है। इरुला आदिवासी जनजाति है जो सांप पकड़ती रही है। सरकार ने इरुला जनजाति को एंटीवेनम सीरम बनने वाली दवा कंपनी से जोड़ा, जिसके फलस्वरूप सांपों से जहर लेना आसान और सस्ता हुआ, साथ ही सांप भी जिंदा रहे। विभिन्न राज्य सरकारें इरुला की तर्ज पर कालबेलियों, जोगी ओर मुरिया समुदाय से ऐसे काम करा सकती हैं।

अश्विनी शर्मा
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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